जोधपुर में आज से मारवाड़ी हॉर्स शो की शुरुआत हो रही है। पहली बार इस शो में 3 हजार मारवाड़ी घोड़े आएंगे। ऑल इंडिया मारवाड़ी हॉर्स सोसायटी पिछले डेढ़ दशक से इस काम में जुटी है। हालांकि शुरुआत में ऐसे 500 घोड़े ही थे, लेकिन इस बार रिकॉर्ड संख्या में घोड़े आएंगे।
यहां आने वाले 3 हजार घोड़ों का पासपोर्ट भी बनाया जाएगा। क्योंकि ये घोड़े विदेश भी भेजे जाएंगे। घोड़ों के लिए दूसरे देश जाना इतना आसान नहीं होगा। पासपोर्ट बनवाने के लिए इन घोड़ों को कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। सबसे बड़ी परीक्षा तो ये कि इन्हें साबित करना पड़ता है कि असली है या नकली।
शो की एक खास बात ये भी होगी कि इसमें दुनिया का सबसे छोटी नस्ल का घोड़ा भी आएगा, जो दिखने में कुत्ते जैसा होता है। पहली बार राजस्थान में अरबी और सबसे छोटी नस्ल के घोड़े भी दिखाए जाएंगे। इनकी स्पेशल प्रोटीन डाइट इंसानों से महंगी होती है।
पढ़िए- कैसे बनता है पासपोर्ट और क्या होती है डाइट…
स्टड बुक: मारवाड़ी घोड़ों की एक स्टड बुक बनाई जाती है। मारवाड़ी घोड़े के मालिक यहां रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं। यहीं से घोड़ों के डीएनए टेस्ट और पासपोर्ट का प्रोसेस शुरू होता है।
DNA टेस्ट: मारवाड़ी घोड़ों का पासपोर्ट बनने के लिए सबसे जरूरी प्रोसेस होता है डीएनए टेस्ट। इससे ये पता लगाया जाता है कि घोड़ा असली है या नकली।
टेस्ट के लिए घोड़े के ब्लड और बाल के सैंपल लेकर पुणे लैब में भेजे जाते हैं। लैब की रिपोर्ट के आधार पर असली-नकली की पहचान होती है।
यूनिक नंबर: डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट आने के बाद घोड़े का यूनिक नंबर और बार कोड जारी किया जाता है। इन यूनिक नंबर और बार कोड में घोड़े से संबंधित सारी जानकारी होती है।
पासपोर्ट: डीएनए टेस्ट, यूनिक नंबर और बार कोड की जानकारी आने के बाद मारवाड़ी हॉर्स सोसायटी द्वारा घोड़े के पासपोर्ट के लिए अप्लाई किया जाता है।
पासपोर्ट में घोड़े के नाम से लेकर इसकी हाइट, रंग, खासियत के साथ ही इसके माता-पिता के अलावा चार पीढ़ियों का जिक्र होता है। इस पूरे प्रोसेस में एक से डेढ़ महीने का समय लग जाता है।
वहीं इसमें हेल्थ से जुड़ी जानकारी भी होती है कि कहीं घोड़ा बीमार तो नहीं, या फिर ये मारवाड़ी नस्ल की मिक्स ब्रीड तो नहीं।
ये पासपोर्ट ही तय करता है कि ये असली मारवाड़ी घोड़ा है। इसी पासपोर्ट के जरिए इन घोड़ों को विदेश भेजा जाता है।
ये है मारवाड़ी घोड़ा आबूराज का पासपोर्ट। इस पासपोर्ट में घोड़े से संबंधित सारी जानकारी होती है।
और, इसलिए पड़ी पासपोर्ट की जरूरत
कई बार मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों के नाम से कई दूसरी ब्रीड के घोड़े बेच दिए जाते हैं। हाइब्रिड घोड़ों को भी मारवाड़ी नस्ल बताकर बेचने के कई मामले सामने आ चुके हैं। ऐसे में मारवाड़ी नस्ल को बढ़ावा देने के लिए पासपोर्ट की जरूरत पड़ी।
दूसरी ओर UK में स्टड फार्म पहले से ही घोड़ों के लिए पासपोर्ट की व्यवस्था कर चुके थे। अभी वर्तमान में डीएनए मैपिंग और बिना डीएनए मैपिंग के 2 प्रकार के पासपोर्ट बनाए जाते हैं। जोधपुर में 17 और 18 फरवरी को 8वां मारवाड़ी हॉर्स शो आयोजित हो रहा है। इसमें पूरे देश से मारवाड़ी नस्ल के हजारों घोड़े आएंगे। इन घोड़ों का भी पंजीयन होकर पासपोर्ट प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
अब बात करते हैं इनकी डाइट और मेंटेनेंस की
इन मारवाड़ी घोड़ों की डाइट पर विशेष ध्यान रखा जाता है। हर साल 2 लाख से ज्यादा का खर्चा इनके खान-पान और मेंटेनेंस पर आता है।
साल में 2 से तीन लाख का खर्चा
मारवाड़ी घोड़ों की बात करे तो इनकी कद-काठी के चलते खान-पान का काफी ध्यान रखा जाता है। एक्सपर्ट की माने तो एक साल में इनके खाने का खर्चा 2 से 3 लाख रुपए का है। ऑल इंडिया मारवाड़ी हॉर्स सोसायटी के सचिव जगजीत सिंह ने बताया कि इनको खाने में बार्ली, ओट्स, मक्का, सोयाबीन व अन्य सप्लिमेंट भी दिए जाते हैं। इनमें खास तौर प्रोटीन डाइट का ध्यान रखना पड़ता है।
सुबह-शाम 4 घंटे प्रैक्टिस, लगवाई जाती है दौड़
मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों का ट्रेनिंग सेशन सुबह-शाम दो समय किया जाता है। इन्हें सुबह की डाइट देने के साथ ही मैदान का चक्कर भी लगाते हैं। सुबह 2 घंटे प्रैक्टिस सेशन चलता है।
दोपहर में खाना देने के बाद इन्हें आराम करवाया जाता है। इसके बाद शाम को 2 घंटे और प्रैक्टिस सेशन होता है। हर 7 से 10 दिन में इनकी बालों की कटाई और सफाई की जाती है। घोड़ों को दौड़ लगवाने के लिए जॉकी को इन पर बैठकर राइड की प्रैक्टिस भी करवाई जाती है।
और, इस हॉर्स शो में पहली बार दिखेगा अरबी और सबसे छोटी नस्ल का घोड़ा
स्पीड के कारण अरबी घोड़े की डिमांड
मारवाड़ी हॉर्स शो के दौरान अरबी घोड़े को डिस्प्ले किया जाएगा। ये नस्ल मूल रूप से अरब में पाई जाती है और यह अपनी तेज रफ्तार के कारण खासी चर्चा में रहती है। इनका वजन भी सामान्य घोड़ों से ज्यादा होता है। इन घोड़ों को ज्यादातर युद्ध और रेस में उपयोग किया जाता है।
अरबी घोड़े की गर्दन 2 फीट तक होती है। पूंछ सामान्य घोड़ों से 2 से 3 इंच ऊंची होती है। मारवाड़ी घोड़े अपनी चाल और देखने में सुंदरता के कारण आकर्षक होते हैं। जबकि अरबी घोड़े अपनी रफ्तार के कारण पहचाने जाते हैं।
घोड़ा जो दिखता है कुत्ते जैसा
मारवाड़ी हॉर्स शो में सबसे छोटे आकार का जानी मिनिएचर घोड़ा भी शो केस किया जाएगा। इसे मुंबई से जोधपुर लाया गया है। इस घोड़े की खास बात यह है कि इसकी ऊंचाई महज 60 से 70 सेंटी मीटर तक ही होती है। दूर से देखने पर यह एक कुत्ते के आकार का ही नजर आता है। इस प्रकार के घोड़ों का ज्यादा उपयोग नहीं है। महज हॉर्स शो में डिस्प्ले के लिए ही इन्हें उपयोग में किया जाता है। यह नस्ल मुख्य रूप से अर्जेंटीना की है जो बाद में स्पेन समेत अन्य देशों में फैलती गई।
जोधपुर हॉर्स शो दो दिन तक चलेगा। इसको लेकर तैयारियां शुरू हो गई है। गुरुवार को कई घोड़े यहां पहुंच चुके हैं।
2022 में बांग्लादेश भेजे गए थे 6 मारवाड़ी घोड़े
मारवाड़ी घोड़ों की संख्या कम होने की वजह से इसे प्रतिबंधित श्रेणी में रखा गया था। ये राजस्थान से किसी दूसरे देश में नहीं जा सकते थे। पिछले कुछ सालों में इनकी संख्या 500 से ज्यादा हुई तो इन्हें रेस्ट्रिक्टेड कैटेगरी में रखा, यानी जहां से भेजे जाने है वहां के स्टेट की परमिशन लेकर इन्हें एक्सपोर्ट किया जा सकता है।
ये पाबंदी हटने के बाद 2022 में छह मारवाड़ी नस्ल के घोड़े बांग्लादेश एक्सपोर्ट किए गए थे। यह घोड़े बांग्लादेश के राष्ट्रपति की बग्गी के लिए थे।
6 साल पहले 1 करोड़ में बिका था मारवाड़ी नस्ल का घोड़ा
करीब 6 साल पहले पाली में एक व्यापारी नारायण सिंह ने मारवाड़ी नस्ल के एक घोड़े की अब तक की सबसे महंगी डील की थी। उन्होंने एक करोड़ 11 लाख में मारवाड़ी नस्ल का घोड़ा खरीदा था। उनके लिए अलग से फार्म भी बनवाया था। इसे अब तक सबसे महंगी डील बताया जा रहा है। इसके अलावा मारवाड़ी नस्ल के घोड़े सामान्य तौर पांच से 50 लाख तक की कीमत पर बिकते हैं।
इस शो में करीब 2600 से ज्यादा मारवाड़ी घोड़ों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है। पहले दिन विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा।
जोधपुर के उम्मेद पैलेस में शुरू हुई इन्हें बचाने की मुहिम
उम्मेद पैलेस में पूर्व राजपरिवार के स्टड फार्म में इन घोड़ों काे प्रमोट किया जाता है। यहां 50 से ज्यादा भी मारवाड़ी नस्ल के घोड़े हैं। इनके अलावा थोर प्रजाति के घोड़े भी हैं। बालसमंद लेक पैलेस में भी मारवाड़ी नस्ल के प्रमोट के लिए स्टड फार्म बनाया गया है। इसके अलावा पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में लोग मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों को प्रमोट कर रहे हैं। खास बात यह है कि केरल व साउथ में जहां नमी ज्यादा होती है वहां भी मारवाड़ी ब्रीड सर्वाइव कर रही है।
बताया जाता है कि आजादी से पहले जब प्रथम विश्वयुद्ध में मारवाड़ की सेना अंग्रेजों की ओर से लड़ने के लिए गई, तब भी मारवाड़ी घोड़ों ने अहम भूमिका निभाई। अब इन घोड़ों को एक बार फिर से अपना पुराना अस्तित्व लौटाने के लिए प्रमोट करने का काम शुरू किया। यह पहला मौका है, जब मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की संख्या 2600 को पार कर चुकी है। इसके अलावा पहली बार केन्द्र सरकार ने इन घोड़ों को प्रतिबंधित श्रेणी से हटाया है।
ये आयोजन पूर्व राजपरिवार सदस्यों की ओर से आयोजित किया जा रहा है। इसमें आने वाले घोड़ा मालिकों के लिए रहने के लिए टेंट बनवाए गए हैं।
वफादारी की मिसाल है मारवाड़ी घोड़े
ऐसा कहा जाता है कि महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक भी मारवाड़ी नस्ल का था, हालांकि इतिहास इसमें अपने अलग-अलग मत रखते हैं। कुछ रिपोर्ट में यह भी लिखा गया है कि चेतक की ब्रीड काठियावाड़ी थी। लेकिन, मारवाड़ हॉर्स सोसायटी यह मानती है कि चूंकि उस समय मेवाड़ी रियासत में घोड़ों को पालने वाले गुजरात में रहते थे, इसलिए यह प्रचलित हो गया कि चेतक की ब्रीड काठियावाड़ी थी, लेकिन सोसायटी आज भी उसे मारवाड़ी नस्ल का घोड़ा ही मानती है। इसके अलावा वीर दुर्गादास राठौड़ का घोड़ा भी असली मारवाड़ी नस्ल का था, जिसकी स्वामिभक्ति कई किस्सों व किताबों में प्रचलित है।
मारवाड़ी घोड़ा अपनी कद-काठी की वजह से जाना जाता है। इसकी चमक और कान इसे यूनिक बनाते हैं।
क्या है मारवाड़ी नस्ल
राजस्थान की सबसे बड़ी घोड़ों की नस्ल है। रियासतकाल में पूरे राजस्थान या यूं कहें राजपूताना में यही ब्रीड उपयोग में होती थी, लेकिन जब अंग्रेजों का आगमन हुआ तो वे अपने साथ अंग्रेजी नस्ल के घोड़े और थोर प्रजाति के घोड़ों को साथ लाए। इस कारण समय के साथ मारवाड़ी घोड़ों की संख्या घटती गई। अब जोधपुर के पूर्व राज परिवार ने इस पर फोकस किया तो इसका पालन करने वाले पूरे देश में बढ़े हैं।
ये है खासियत
- इसका शरीर काफी चमकदार और गर्दन मोर की तरह घुमावदार होती है।
- कान दोनों ऊपर की ओर होते हैं, आपस में मिलते नहीं है लेकिन V आकार बनाते हैं।
- मारवाड़ी नस्ल का उपयोग रेसकोर्स की बजाय अधिकांश शो में प्रदर्शन के लिए किया जाता है, क्योंकि यह दिखने में काफी आकर्षक होते हैं।
- अपनी चाल के कारण भी मारवाड़ी घोड़े देश-विदेश में काफी पसंद किए जाते हैं।
अब पढ़े देश की सबसे चर्चित घोड़े की नस्ल
काठियावाड़ी घोड़ा
जन्म स्थान: इनका मुख्य स्थान गुजरात का काठियावाड़ क्षेत्र रहा है।
पहचान : कानों के आगे का हिस्सा नुकीला होता है। ये अंदर की तरफ 360 डिग्री तक घूम जाते हैं। घुटनों के जोड़े के स्ट्रक्चर काठियावाड़ी घोड़ों की मुख्य पहचान है। सिर, सीने, खुर, पीठ पर चौड़े छेह होते हैं। ऊंचाई 1.30-50 मीटर होती है।
उपयोग : घुड़सवारी, घुड़दौड़, खेलों, सुरक्षा व सफारी में होता है।
मणिपुरी घोड़े
जन्म स्थान : मणिपुर एवं असम प्रदेश में पाए जाते हैं।
पहचान : ये दूसरे घोड़ों की तुलना में छोटे होते हैं। ऊंचाई 1.10-1.30 मीटर होती है। इन घोड़ों का चेहरा लंबा होता है। नाक के आगे का हिस्सा चौड़ा होता है। इनकी ब्यूटी और स्पीड की वजह से ये माने जाते हैं।
उपयोग: यातायात, सामान ढुलाई, सवारी तथा पोलो के खेल के लिए बेहतर माने जाते हैं।
जांसकारी घोड़े
जन्म स्थान : लेह-लद्दाख क्षेत्र में पाए जाते हैं।
पहचान : ये भूरा-सफेद रंग का होता है। इसकी पूंछ लम्बी होती है जो लगभग जमीन तक पहुंचती है। ऊंचाई 1.20-1.40 मीटर होती है। सिर चौड़ा और काठी मजबूत होती है।
उपयोग : पहाड़ी क्षेत्रों में यातायात, सामान की ढुलाई, सवारी तथा पोलो खेलने में किया जाता है।
भूटिया घोड़े
जन्म स्थान: हिमालय पर्वत के निचले क्षेत्रों तथा भूटान में पाए जाते हैं।
पहचान : इनका रंग भूरा, बादामी या चितकबरे रंग का होता है। पूंछ पर घने और गर्दन पर लंबे बाल होते हैं। ऊंचाई 1.30-1.32 मीटर तक होती है।
उपयोग : पहाड़ी क्षेत्रों में इनकी संख्या अधिक होती है। जहां ये मुख्यत सवारी करने तथा बोझा ढोने के काम आते हैं।
स्पीति घोड़े
जन्म स्थान : हिमाचल प्रदेश के स्पीति घाटी में पाए जाते हैं।
पहचान : ये छोटे कद के होते हैं और इनकी ऊंचाई महज 1.20 मीटर तक होती है। हड्डियां मजबूत होती है और पैरों तक लंबे बाल होते हैं, जो इन्हें ठंड से बचाते हैं। इनका रंग गहरा स्लेटी, काला व लाल भूरा होता है।
उपयोग : पहाड़ी व दुर्गम क्षेत्रों में आसानी से चलने और बोझा ढोने के काम के लिए उत्तम होते हैं।
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मोदी ने आबूरोड (सिरोही) के ब्रह्मकुमारीज संस्थान में वर्चुअल कार्यक्रम से इसकी शुरुआत की। उन्होंने कहा कि यह मिशन ऐसे समय शुरू हो रहा है जब पानी कमी को लेकर दुनिया भारत को देख रही है। जल है तो कल है, इसके लिए हमें आज से ही सोचना है।
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