17 अप्रैल 2023 की शाम UP के उन्नाव में मौरावां एरिया के एक घर में आग लग गई। जलने वाला घर 12-13 साल की गैंगरेप पीड़िता का है। आग में उसका 6 महीने का बच्चा झुलस गया। 2 महीने की एक बच्ची भी जख्मी है।
लड़की से गैंगरेप के आरोप से एक शख्स बरी हो चुका है, दूसरा जमानत पर है। लड़की की मां ने 17 अप्रैल को ही उन दोनों समेत कुल 5 लोगों पर घर जलाने, पीटने और गैंगरेप का केस वापस लेने का दबाव बनाने का आरोप लगाकर रिपोर्ट दर्ज कराई है।
हालांकि पुलिस का दावा अलग है। उसने आग लगाने के आरोप में लड़की के चाचा और दादा समेत 4 लोगों को अरेस्ट किया है। चाचा और पीड़ित परिवार के बीच जमीन को लेकर विवाद चल रहा है। पुलिस के मुताबिक चाचा और गैंगरेप के आरोपियों ने मिलकर आग लगाने की साजिश रची थी, ताकि उसका जमीन का विवाद और आरोपियों से गैंगरेप का केस खत्म हो जाए।
उन्नाव SP सिद्धार्थ शंकर मीणा का कहना है कि लड़की के चाचा और गैंगरेप के आरोपियों के घर आसपास हैं। FIR में परिवार ने कहा है कि इन सभी ने मिलकर मारपीट की और घर जला दिया।
गैंगरेप पीड़िता इसी घर में रहती है, सामने की तरफ घास का छप्पर बना था, जो अब जल चुका है।
SP बोले- चाचा को जेल भेजा, बच्चों ने कहा था कि उन्होंने ही आग लगाई
बच्ची से गैंगरेप और उसके मां बनने की वजह से ये मामला पहले से चर्चा में रहा है। उसके घर में आग लगाने के आरोप लगे, तो SP सिद्धार्थ शंकर मीणा गांव में पहुंचे। उन्होंने चश्मदीदों और गांववालों से बात की। गांववाले कुछ बोलने को तैयार नहीं थे, लेकिन लड़की के घर में मौजूद बच्चों ने बताया कि चाचा आए थे और लाइटर से आग लगाकर भाग गए।
हालांकि पीड़िता की मां की तहरीर पर पुलिस ने गांव के रोशन, सतीश, रंजीत, महिला के ससुर, देवर, सुखदीन और अमन डोम के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की है। पुलिस सतीश, सुखदीन, दादा और चाचा को अरेस्ट कर चुकी है। सतीश गैंगरेप मामले में भी आरोपी है और अभी जमानत पर है। अमन पहले ही बरी हो चुका है।
पीड़िता की मां की तरफ से दी गई शिकायत पर दर्ज FIR, इसमें 7 लोगों पर घर में आग लगाने का आरोप है।
मां का आरोप- आरोपी गांव छोड़ने के लिए दबाव बना रहे
पीड़िता की मां ने बताया, ‘गैंगरेप के आरोपी जेल से छूटने के बाद से हम पर गांव छोड़ने का दबाव बना रहे हैं। 13 अप्रैल 2023 को मैं पति के साथ केस की पैरवी कर उन्नाव से घर लौट रही थी। रास्ते में रोशन और मेरे देवर ने रोक लिया। गैंगरेप का केस वापस लेने के लिए कहने लगे। इनकार करने पर पति को कुल्हाड़ी मार दी। वे 5 दिन से जिला अस्पताल में भर्ती हैं।’
17 अप्रैल को पुलिस ने मारपीट के आरोप में रोशन, सतीश, श्याम बहादुर, लड़की के चाचा, दादा और पंचम के खिलाफ केस दर्ज कर लिया।
घर जलाने के मामले में कानूनी कार्रवाई चल रही है, गैंगरेप पीड़िता और उसकी मां दो झुलसे बच्चों के साथ हॉस्पिटल में हैं। पीछे गांव में जला घर बचा है। 28 नवंबर, 2022 को भास्कर ने पीड़ित के घर से रिपोर्ट की थी। जिस छप्पर के नीचे बैठकर लड़की और उसकी मां से बात की थी, वह जलकर खत्म हो चुका है। पक्के बने कमरे बचे हैं, उन पर भी जले के निशान हैं।
भास्कर से बातचीत में पीड़ित लड़की, उसकी मां और पिता ने वो सब बताया था, जो उन्होंने बेटी से गैंगरेप के बाद झेला है। आगे पढ़िए, जो इस परिवार ने हमसे साझा किया था…
13 फरवरी 2022 को उन्नाव के मौरावां थाने के एक गांव में 11-12 साल की बच्ची अपने घर से देर शाम चीनी खरीदने के लिए निकली। गांव के ही 3 लोग उसे उठाकर पास के कब्रिस्तान ले गए। चाकू की नोक पर उससे गैंगरेप किया और तड़पता छोड़कर भाग गए।
पीड़ित परिवार पुलिस के पास गया, FIR दर्ज हुई, आरोपी गिरफ्तार हुए और कोर्ट-कचहरी के चक्कर शुरू हो गए। न घरवालों ने ध्यान दिया और न ही पुलिस ने जरूरी समझा, बच्ची प्रेग्नेंट हो गई। 4 महीने गुजर गए थे, अबॉर्शन नहीं हो पाया और 20 सितंबर, 2022 को इस बच्ची ने एक बच्चे को जन्म दिया।
विक्टिम के बच्चे और उसके छोटे भाई-बहनों की उम्र में ज्यादा फर्क नहीं है। सभी को उसकी मां ही संभालती है।
मैं उसका घर ढूंढते हुए लखनऊ से करीब 55 किमी दूर उन्नाव के इस गांव में पहुंचता हूं। रास्ता पूछते-पूछते घर तक आया, तो सामने एक साफ सुथरी जगह पर छप्पर पड़ा हुआ था। परिवार कोर्ट में पेशी के लिए जाने की तैयारी कर रहा था। मां चूल्हे के बगल में बैठी रोटियां सेंक रही थी।
दो छोटे-छोटे बच्चे खाने की आस में चूल्हे के सामने ही बैठे थे। नााबालिग रेप पीड़िता भी अपने दो महीने के बच्चे को गर्म कपड़े में लपेटे हुए गोद में खिला रही थी। पिता का चेहरा परेशानियों से वक्त से पहले बूढ़ा हो गया है। वे बार-बार कोर्ट ले जाने वाले कागजात चेक करते हैं।
नाबालिग पीड़िता से पूछता हूं, कैसी हो? क्या सब ठीक है? वो थोड़ी रुआंसी हो जाती है, कहती है- ‘अब घर से बाहर नहीं निकलती। गांव की सहेलियों से मिलना नहीं होता। जो पहले घर आते थे, अब उन्होंने भी घर आना छोड़ दिया है। कोई आ भी जाए तो घर का पानी भी नहीं पीता।’
वो बोलते-बोलते चुप हो जाती है। मेरी भी आगे पूछने की हिम्मत नहीं होती।
कुछ देर चुप रहने के बाद फिर बोलना शुरू करती है- ’जब ये सब हुआ, मैं छठी क्लास में थी। अब सब छूट गया है। किस-किसको जवाब दूं। सबको लगता है कि मेरी ही गलती है। उन लोगों ने चाकू दिखाकर मुझसे गलत काम किया। मुझे पता भी नहीं था कि ये बच्चा आने वाला है। वो आठ महीने मेरे लिए नरक थे, हर कोई मेरे पेट को ही देखता था।
पुलिस वाले जब अल्ट्रासाउंड कराने ले गए, तो कह रहे थे कि तुम्हारे साथ रेप नहीं हुआ है। पुलिस, डॉक्टर और नर्स सब मुझे खूब बुरा-भला कहते थे, कहते- जो किया है वह भुगतो।’
वो फिर चुप हो जाती है, मुझे उसकी आंखों में आंसू नजर आते हैं। मैं ‘सब्र रखो, सब ठीक होगा’ जैसा कुछ बोलना चाहता हूं, लेकिन मुंह से कुछ नहीं निकलता। सोचता हूं, क्या अब कभी भी सब ठीक हो पाएगा।
पुलिस ने अल्ट्रासाउंड की फर्जी रिपोर्ट बना दी थी
पिता शायद इन सब सवालों-जवाबों को सुन-सुनकर तंग आ चुके हैं। थोड़ा सा चिढ़ते हुए कहते हैं- ‘साहब जल्दी बात कर लो, अभी 7-8 किमी पैदल जाना है। उसके बाद उन्नाव जाने के लिए बस मिलेगी।’
मेरे बात करने के दौरान ही आस-पड़ोस के कुछ लोग इकठ्ठा हो जाते हैं। परिवार और पीड़िता को कोसने लगते हैं, गालियां भी सुनाई देती हैं। मैं सवालिया नजरों से पिता की तरफ देखता हूं तो जवाब मिलता है- ‘आरोपियों में एक पड़ोसी भी शामिल है, ये उनके ही रिश्तेदार हैं। अक्सर ऐसे ही गालियां बकते हैं, कौन रोज-रोज झगड़ा करे।’
इसी बीच पीड़िता की मां बोलने लगती हैं- ’मेरी बेटी पहले स्कूल जाती थी। दूसरे बच्चों की तरह गांव में खेलती-कूदती भी थी। जिस दिन उसे उठा कर ले गए, वो लौटी तो तब से ही चुप रहने लगी। हम पुलिस-कोर्ट कचहरी में लग गए थे। अप्रैल में उसने मुझे बताया कि उसके पेट में दर्द होता है। मैं भी नहीं समझ पाई, वो बस 12 बरस की है।
डॉक्टर को दिखाया तो उसने भी दर्द की दवाएं दे दीं। करीब एक महीना निकल गया, दर्द बार-बार हो रहा था तो हमने दूसरे डॉक्टर को दिखाया। उसी ने बताया कि ये प्रेग्नेंट है। ये पता चलने के बाद तो जीना मुश्किल हो गया। हमने डॉक्टर से बच्चा गिराने के लिए कहा तो उन्होंने बताया कि बेटी की जान को खतरा हो सकता है।
हमने पुलिस को भी बताया, उन्होंने अल्ट्रासाउंड तो कराया, लेकिन रिपोर्ट गलत बना दी। कहा गया कि हमारी बेटी गर्भवती नहीं है। हमारी कोई मदद नहीं हुई। हम लोगों ने अपने रुपए-पैसों से बेटी का इलाज कराना शुरू किया। उसका तो बचपन ही छिन गया।
आठवें महीने में जब उसे ज्यादा दर्द बढ़ा तो हमने उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया। यहां डॉक्टर बोले कि बेटी को हैलेट अस्पताल कानपुर ले जाओ। हम उसे लेकर वहां 15 दिन पड़े रहे। कभी-कभी तो ऐसा भी दिन गया कि पूरा परिवार भूखा सोया। मेरे भी छोटे-छोटे बच्चे हैं। उनको भूख से बिलखता देख मैं रो ही सकती थी। 15 दिन बाद ऑपरेशन से बेटी को एक बेटा पैदा हुआ।’
डॉक्टर-नर्स, पुलिस सब हमसे ऐसे बात करते हैं जैसे हमने गुनाह किया हो
मां चुप हो गई तो पिता एक बार फिर बोलने लगे- ’हम दिनभर मेहनत-मजदूरी कर शाम को खाना खाने वाले लोग हैं। इतना रुपया-पैसा नहीं है कि सब भरपेट खाना भी खा सकें। लोगों से उधार लेकर आठ महीने तक बिटिया का इलाज कराया। जिला अस्पताल और हैलेट अस्पताल में भी डॉक्टर और नर्स हम लोगों से ऐसे बात करते कि जैसे हम गुनहगार हों।'
'अब लौट आए हैं तो पूरा गांव ताने देता है। आरोपी के परिवार वाले धमकी भी देते हैं। सरकार से भी कोई मदद नहीं मिली। मैं इस बच्चे को पालूंगा और अपनी बेटी को भी पालूंगा। बेटी की शादी हो पाएगी तो उसकी भी कोशिश करूंगा।’
इनपुट: विशाल मौर्य