‘दंगाइयों ने मेरा गांव जला दिया। मेरा घर भी जल गया। सरकार ने रहने के लिए घर दिया है। ये बहुत छोटा है। इसी में हम 5 लोग रहते हैं। बारिश होती है तो पानी अंदर आ जाता है। यहां गंदगी भी बहुत है। मैं गांव में चावल की खेती करता था, अब सरकार से मिले चावल पर परिवार पल रहा है।’
इंफाल ईस्ट जिले के दोलाइथाबी गांव में रहने वाले बसंता सजीवा जेल के पास बनी अस्थायी बस्ती में रहते हैं। यहां वे लोग रहते हैं, जिनके घर मणिपुर में कुकी-मैतेई के बीच चल रही हिंसा में जला दिए गए। सरकार रिलीफ कैंपों से निकालकर लोगों को यहां बसा रही है। ऐसे ही घर हिंसा से प्रभावित दूसरे जिलों जैसे चुराचांदपुर, काकचिंग, बिष्णुपुर जिलों में बन रहे हैं।
इंफाल ईस्ट जिले में सजीवा जेल के पास 200 घर बनने हैं। हर घर में रूम और एक टॉयलेट है। लाइन से बने 10 घरों पर एक कॉमन किचन है।
70 हजार लोग सरकारी मदद के भरोसे
मणिपुर में लोकसभा सीटों की दो सीटें इनर और आउटर मणिपुर हैं। यहां दो फेज में 19 और 26 अप्रैल को चुनाव है। मणिपुर में बीते 11 महीने से कुकी और मैतेई कम्युनिटी के लोगों के बीच हिंसा चल रही है। इससे राज्य दो हिस्सों में बंट गया है। कुकी आबादी मैतेई इलाकों में नहीं जा सकती और मैतेई, कुकी इलाकों में नहीं जा सकते। आम लोग तो दूर, सांसद-विधायक, पुलिस फोर्स के जवान भी सुरक्षित नहीं हैं।
इन हालात में दैनिक भास्कर ने लोगों से जाना कि उन्हें सरकार की योजनाओं का कितना फायदा मिला और इसका चुनाव पर क्या असर पड़ेगा। एक बात साफ है कि हिंसा की वजह से सरकारी योजनाओं का फायदा ज्यादातर लोगों तक नहीं पहुंच पाया। 70 हजार लोग रिलीफ कैंप में रह रहे हैं, उनके डॉक्यूमेंट जल गए। वे फिलहाल सरकारी मदद पर ही जी रहे हैं।
इंफाल में 170 घरों की अस्थायी बस्ती, गांव वापस भेजने का वादा अधूरा
मणिपुर में हिंसा शुरू होने के करीब एक महीने बाद जून, 2023 में गृह मंत्री अमित शाह इंफाल पहुंचे थे। उन्होंने हिंसा में घर खोने वाले लोगों को दोबारा बसाने का भरोसा दिया था। ये भी कहा कि पीड़ित परिवारों को जल्द उनके गांवों में घर बनाकर दिए जाएंगे।
इसके बाद अलग-अलग जिलों में कुल 3 हजार अस्थायी घर बनाने की योजना तैयार की गई। इंफाल में सजीवा जेल के पास बने घरों का उद्घाटन खुद मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने किया था।
लोगों की शिकायत है कि गृह मंत्री और राज्य सरकार के वादे के बावजूद अब तक किसी को वापस उसके गांव में नहीं बसाया गया है। यहां मिले बसंता कुमार कहते हैं, ‘मैं गांव में पसंद का काम करता था। खुशी से जी रहा था। मैंने गाय पाली थी, खेती करके घर चलाता था। मछली का कारोबार करता था। अभी दिहाड़ी पर घर बनाने का काम कर रहा हूं।’
प्रधानमंत्री आवास योजना के बारे में पूछने पर बसंता कहते हैं, ‘मेरे पास तो खुद का घर था। गांव में कई लोगों के घर सरकार की मदद से बन रहे थे। लोग उनमें रहने जाते, उससे पहले ही जला दिए गए।’
यहीं मिले देवेंद्र बताते है कि हमारे डॉक्यूमेंट घर के साथ जल गए थे। डिप्टी कमिश्नर ने सभी कागजात बनवाकर दे दिए हैं। देवेंद्र की बात खत्म होने से पहले बसंता उन्हें टोक देते हैं।
फिर कहते हैं, ‘सभी का वोटर ID बन रहा है, लेकिन मिला नहीं है। 11 महीने हो गए हिंसा को, आज तक हमें न हमारा घर वापस मिला और न सरकार हिंसा रोक पाई है। सरकार बस हमें फिर से हमारे गांव भिजवा दे। यहां हमें कुछ भी मिले, लेकिन हम खुश नहीं है। बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पा रही है। उन्हें ट्यूशन पढ़ाने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं।’
बसंता और देवेंद्र के करीब बैठीं बेबे मणिपुरी स्कर्ट बनाती हैं। वे कहती हैं, ‘तीन बच्चे स्कूल जाते है। फीस का इंतजाम तो हो जाता है, लेकिन परिवार का खर्च नही निकाल पाते। सरकार ने एडमिशन करा दिया, लेकिन किताबें, यूनिफॉर्म समेत रोज का खर्च मुश्किल से निकलता है। बच्चों के स्कूल पर 2 हजार खर्च होते हैं। परिवार में 9 लोग हैं। सरकार की तरफ से खाने-पीने के सामान के अलावा कुछ नही मिला।’
ये बेबे हैं। बड़ा परिवार है, लेकिन कमाई बहुत कम। इसलिए इन्होंने किराए पर सिलाई मशीन ली है, ताकि कुछ पैसा आए और बच्चों को पढ़ा सकें।
हर घर जल योजना बनी, लेकिन पानी नहीं पहुंचा
केंद्र सरकार ने 2019 में हर घर जल योजना लागू की थी। इसके तहत राज्य सरकार की मदद से 2024 तक गांवों में हर घर तक नल के जरिए पानी पहुंचाने का प्लान है। इस योजना का कैसा असर है, ये जानने हम काकचिंग जिले के सुगनु गांव पहुंचे। ये गांव मैतेई बहुल है, लेकिन ये आउटर मणिपुर सीट का हिस्सा है।
गांव के किसान प्रेम सिंह कहते है, ‘राज्य और केंद्र दोनों जगह BJP की सरकार है। यहां राज्य सरकार ने काम तो किया है, लेकिन अब भी बहुत कमी है। हमारे यहां पानी का इंतजाम नहीं है।’
किसान बुल्लू शर्मा भी सरकार से नाराज हैं। वे कहते हैं, ‘हम आउटर मणिपुर सीट पर वोट देते हैं, लेकिन हमें कुछ फायदा नहीं मिलता है। सारी सुविधाएं और फायदे ट्राइब लोगों को मिलते हैं। हिल एरिया में दिए जाते हैं। सरकार की योजनाएं हमारे गांव तक नहीं आतीं। इसकी एक वजह ये भी है कि हमारे विधायक कांग्रेस से हैं और राज्य में सरकार BJP की है।'
59 साल के मायरंगठेम मनीचंद्र सिंह 20 साल से धान की खेती कर रहे है। वे कहते हैं, ‘हिंसा से पहले मैं साल में 40 हजार रुपए कमाता था। अब 15 हजार रुपए कमा पाता हूं। परिवार में 8 लोग हैं। कमाई नहीं है, इसलिए बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाता। पहले तो सरकार 2 बच्चों को पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप देती थी, लेकिन अब सरकार से कोई सपोर्ट नहीं मिलता।’
सुगनु में लोग 500 लीटर पानी के लिए 200 रुपए खर्च करते हैं। 50 साल के खैदेम प्रेमजीत की कहानी भी मायरंगठेम जैसी है। घर में 5 लोग है। प्रेमजीत आर्मी से रिटायर्ड हैं और उन्हें पेंशन मिल रही है।
प्रेमजीत बताते है, ’पहले मैं धान की खेती करके 20 से 30 हजार रुपए कमा लेता था। 3 मई के बाद सब बदल गया है। इस साल 10 हजार रुपए भी नहीं कमा पाया। हिंसा की वजह से पानी की सप्लाई रुक गई है।’
राशन मिल नहीं रहा, 500 लीटर पानी के लिए 200 रुपए खर्च
पिछले साल गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर में थे, तब उन्होंने कहा था कि मणिपुर के लोगों को तय कोटे से अलग 30 हजार मीट्रिक टन चावल दिया जाएगा। एक कैंप भी खोलेंगे, जहां से लोगों को राशन मिलेगा। हालांकि, इंफाल से सटे कुकी बहुल चुराचांदपुर से लेकर म्यांमार बॉर्डर से सटे तेंगलुपाल जिले के मोरे तक लोगों ने कहा कि उन्हें राशन नहीं मिल रहा है।
हम मणिपुर के आखिरी गांव मोरे पहुंचे, तब वहां कर्फ्यू लगा था। इलाके में जाने के लिए पास की जरूरत होती है। मोरे में पता चला कि लोगों को पानी की बहुत दिक्कत है। मोरे में कुकी, मुस्लिम और तमिल समुदाय के लोग रहते हैं। मैतेई भी थे, लेकिन हिंसा शुरू होने के बाद गांव छोड़कर चले गए।
हिंसा से पहले गर्मी की वजह से मोरे में पानी की झील सूख गई थी। लोगों को टैंकर से पानी मिलता है। मणिपुर मुस्लिम काउंसिल के चेयरमैन मोहम्मद रजाउद्दीन कहते हैं, ‘हम फैसला नहीं ले पा रहे हैं कि चुनाव में क्या करें। सरकार की तरफ से सिर्फ चावल मिलता है। वो भी 2-3 महीने में एक बार।’
रजाउद्दीन अपनी परेशानी बता रहे थे कि ऑटो ड्राइवर शहाबुद्दीन कहते हैं, ‘ईद आ रही है। हम क्या करेंगे, समझ नहीं आ रहा है। सब बंद है तो व्यापार कैसे होगा। सरकार ने बॉर्डर भी बंद कर दिया है।’
यहीं मौजूद अशरफ कहते हैं, ‘बॉर्डर सील होने से म्यांमार के साथ मोरे के लोग भी परेशान हैं। दोनों तरफ शांति बनाना सरकार का काम है। 11 महीने हो गए मैं 100 रुपए कमाता हूं और 500 रुपए खर्च होते हैं। पहले हम म्यांमार से सामान लाकर यहां बेच देते थे। अब सब बंद है।’
मोरे में ही मिले मोमोम कहते हैं, ‘हमें सरकार से कुछ नहीं मिलता। इसलिए यहां के लोग वोट नहीं देंगे। हमारा भरोसा सरकार से उठ गया है।’
अब पार्टी लीडर्स की बात पढ़िए
BJP: सरकार चावल दे रही है, बताइए कहां पहुंचाना है
मणिपुर में BJP की प्रदेश अध्यक्ष शारदा देवी कहती हैं, ‘सरकार सभी को चावल दे रही है। जहां नहीं पहुंचा है, आप हमें जगह बता दीजिए, हम पहुंचा देगें।’
लोगों के पास बच्चों को पढ़ाने के लिए पैसा नहीं है। इस पर सरकार क्या कर रही है? जवाब में शारदा देवी कहती हैं, ‘मणिपुर सरकार फ्री में बच्चों को प्राइवेट और सरकारी स्कूलों में पढ़ा रही है। इसमें थोड़ी कमी हो सकती है, क्योंकि एक ही समय में सभी समस्याएं दूर कर पाना मुश्किल हो सकता है। कई बार नहीं हो पाता है।’
कांग्रेस: सरकार ने बातें की, जिम्मेदारी नहीं निभाई
इनर मणिपुर से कांग्रेस प्रत्याशी जेएनयू के प्रोफेसर बिमोल से कहते हैं, ‘भारत सरकार ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था 15 दिन के बाद फिर लौटूंगा, लेकिन वापस नहीं आए। बातें करना अलग बात है और काम करना अलग।’
सरकार की योजनाओं पर हमने ‘फ्रंटियर मणिपुर’ के चीफ एडिटर धीरेन ए. सदोकपम से बात की। धीरेन कहते हैं, ‘केंद्र सरकार की योजनाएं मणिपुर में हैं, लेकिन हालात की वजह से जरूरतमंद लोगों को इसका फायदा नहीं मिल रहा है।’ .........................................................
स्टोरी में सहयोग: विशाल चौहान, भास्कर फेलो
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