पाकिस्तान बॉर्डर पर झड़पों से परेशान अफगान हुकूमत को अब ईरान की सीमा पर भी हिंसक झड़पों का सामना करना पड़ रहा है। रविवार को ईरान-अफगान बॉर्डर पर हुई फायरिंग मे 4 लोग मारे गए। तीन ईरानी सैनिक थे तो एक तालिबान भी मारा गया।
सवाल ये है कि दोनों देशों के बीच जंग के हालात क्यों बने? मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इसकी वजह पानी है। ईरान करीब 30 साल से सूखा झेल रहा है तो अफगानिस्तान के हालात भी जुदा नहीं हैं। यहां भी 79% घरों में रोजमर्रा की जरूरतों के मुताबिक पानी मुहैया नहीं है।
वाटर रिसोर्स टकराव की वजह
- ‘अरब न्यूज’ के मुताबिक रविवार को हुई झड़प भले ही अचानक हुई हो, लेकिन लंबे वक्त से दोनों देशों के बीच जल स्रोत यानी वाटर रिसोर्स को लेकर टकराव है। फिलहाल, फायरिंग भले ही रुक गई हो, लेकिन ये आग फिर कब भड़क जाए, कहा नहीं जा सकता।
- झड़प उसी सासुली बॉर्डर एरिया में हुई, जहां हेलमंद नदी बहती है। इसके पानी के बंटवारे को लेकर अफगान-ईरान सरकारों ने 1973 में समझौता किया था। पिछले ही हफ्ते ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने तालिबान को वॉर्निंग दी थी कि उसे इस वाटर ट्रीटी की तमाम शर्तों को मानना होगा।
- हेलमंद नदी अफगानिस्तान से ईरान की तरफ जाती है। यह करीब एक हजार किलोमीटर लंबी है। ईरान का पूर्वी इलाका इसी के पानी से प्यास बुझाता है। इसी के पानी से सिंचाई होती है, जो एटमी ताकत हासिल करने की कोशिश में लगे ईरान पर लगी पाबंदियों के असर को कम करती है।
अफगानिस्तान-ईरान बॉर्डर पर मौजूद सैनिक। रविवार को फायरिंग के दौरान तीन ईरानी सैनिक मारे गए थे।
तो अब बात क्यों बिगड़ी
- इसके लिए दो साल पीछे जाना होगा। दरअसल, नदी अफगानिस्तान से शुरू होती है। यहां बिजली और पानी की भारी किल्लत है। अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबान हुकूमत इस पर बांध यानी डैम बनाना चाहती है। मकसद है कि डैम में स्टोर किए गए पानी से न सिर्फ बिजली बनाई जाए, बल्कि फसलों की सिंचाई का रास्ता भी साफ हो सके।
- 2021 तक दोनों मुल्कों के बीच हालात इस हद तक खराब नहीं हुए थे। 2021 में ईरान में किसान सड़कों पर उतरे। उनकी मांग थी कि सरकार सिंचाई और पीने के लिए जरूरी पानी मुहैया कराए। इसकी वजह यह है कि ईरान का 97% हिस्सा किसी न किसी तौर पर सूखे से प्रभावित है।
- ‘अफगान टाइम्स’ के मुताबिक 18 मई को अफगान फॉरेन मिनिस्टर आमिर खान मुत्तकी और ईरानी काउंटर पार्ट हुसैन अमीरदोल्हीयान ने इसी मुद्दे पर लंबी बातचीत की थी। इसके बाद शनिवार को काबुल में ईरान के एम्बेसडर हसन काजमी अफगान विदेश मंत्री से मिले।
- अफगान हुकूमत ने कहा- हम 1973 में हुए समझौते का पालन करेंगे, लेकिन हुकूमत को ये भी देखना है कि सूखे का असर कितनी तेजी से बढ़ रहा है। हम लगातार तीसरे साल सूखा झेल रहे हैं। सिस्तान और बलूचिस्तान में सूखा जानलेवा साबित हो रहा है।
तालिबान ने कहा है कि वो पुराने समझौते की हर शर्त मानने को तैयार है, लेकिन ये भी देखना चाहिए कि उसके मुल्क में सूखा है।
दोनों हालात से परेशान
- ईरान के मौसम विभाग के एक अफसर ने अरब न्यूज से कहा- सच्चाई ये है कि दोनों मुल्कों को अपने अवाम की फिक्र है। दोनों तरफ सूखा है। अच्छा ये होगा कि मसले का जल्द से जल्द हल निकाला जाए और इस पर सियासत फौरन बंद हो।
- अफगान हुकूमत ने कहा- हम दो साल से सत्ता में हैं। तालिबान हुकूमत ईरान से पानी का मुद्दा जल्द से जल्द सुलझाना चाहती है। रविवार को अचानक हालात बिगड़े, क्योंकि ईरान ने हमारे लोगों पर फायरिंग की। इसका जवाब तो दिया ही जाना था। अब हालात काबू में हैं।
- दूसरी तरफ, ईरान सरकार ने कहा- हमला तालिबान ने किया। हमें काफी नुकसान हुआ है। हमारे दो सैनिक मारे गए। अगर मसले का हल जल्द न निकाला गया तो आगे हालात ज्यादा खराब हो सकते हैं।
- इस मसले से वाकिफ एक ईरानी डिप्लोमैट ने कहा- तालिबान हुकूमत को यह सोचना होगा कि वो पाकिस्तान बॉर्डर पर पहले ही तनाव का सामना कर रही है। अगर इस तरफ भी हालात बिगड़े तो उसकी परेशानी कई गुना बढ़ जाएगी।
तालिबान और ईरानी अफसरों के बीच बातचीत शुरू हो गई है। इसमें कोशिश यही है कि आगे किसी भी तरह से हिंसा को रोका जा सके। विवाद पानी से जुड़ा है।
अफगानिस्तान को झुकना पड़ेगा
- UN की रिपोर्ट के मुताबिक इस वक्त करीब 6 लाख अफगान पासपोर्ट होल्डर ईरान में रहते हैं। इनके अलावा 7 लाख 80 हजार अफगान रिफ्यूजी भी ईरान में हैं। करीब 21 लाख अफगानी गैर कानूनी तौर पर ईरान में रहते हैं।
- ये आंकड़े बताते हैं कि अगर तालिबान ने ईरान से रिश्ते खराब किए तो करीब 35 लाख अफगान नागरिकों का ईरान में रहना मुश्किल हो जाएगा। इस वक्त अफगानिस्तान के जो हालात हैं, उसमें काबुल यह रिस्क नहीं ले सकता।
- पिछले साल एम्नेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि ईरान में 11 अफगान नागरिकों को सिक्योरिटी फोर्सेज ने मार डाला। एक एक्सपर्ट ने कहा- तालिबान को टकराव से बचना ही होगा। वो 40 साल से जंग में हैं। अब और क्या चाहते हैं? उनकी मदद के लिए कोई मुल्क आगे नहीं आएगा। ईरान को भी ऑयल-गैस एक्सपोर्ट के लिए अफगानिस्तान की जरूरत है।