एक बार असफल होने के बाद स्टूडेंट्स, परीक्षार्थी हिम्मत हार जाते हैं। कई बार असफलता को झेल नहीं पाने की वजह से गलत कदम तक उठा लेते है। कोटा में इस तरह के मामले आए दिन सामने आते है। लेकिन कोटा के स्टेशन क्षेत्र के रहने वाले वीरेंद्र की कहानी, हार से टूट जाने वाले स्टूडेंट्स के लिए प्रेरणा भरी है। यूपीएससी यानी संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सर्विस परीक्षा में उन्होंने सफलता हासिल की है। वीरेन्द्र को यह सफलता पहली बार में या आसानी से नहीं मिले। एक समय तो ऐसा भी आया जब वह पूरी तरह टूट चुके थे। डिप्रेशन में चले गए लेकिन परिवार ने उनकी हिम्मत को टूटने नहीं दिया। इसके बाद दो बार और कोशिश की लेकिन हार नहीं मानी। लेकिन अब कोटा के स्टेशन क्षेत्र के रहने वाले वीरेन्द्र कुमार मीणा ने यूपीएससी सिविल सेवा में 883 रैंक हासिल की है।
तीन बार पहले एग्जाम दिया लेकिन अलग अलग लेवल पर फेल हुए, लेकिन इसके बाद उनका हौसला दोगुना ही हुआ। अब सफलता उनके कदम चूम रही है और परिवार में खुशियों का माहौल है। लोग बधाई दे रहे है, माला पहना रहे। सफलता हासिल होने के बाद, पहले जो भी परेशानियां हुई वह अब छोटी लग रही है। वीरेन्द्र ने बताया कि एक समय ऐसा था कि मुझे करियर बनाने के लिए सोचना था कि किसी आईटी कंपनी में जॉब करूं या जो मैंने ठानी है वह करूं। घर पर बात की तो उन्होंने यही कहा कि जो मन में है वह करो, बस वही किया और सफलता हासिल की। वीरेन्द्र ने भास्कर को बताए कैसे उन्होंने एग्जाम की तैयारी की और कैसे असफलताओं को अपनी हिम्मत बनाया.......
सवाल-अपनी जर्नी के बारे में बताईए, कब ठाना कि यूपीएससी करनी है, प्रेरण स्त्रोत कौन है
जवाब- साल 2014 की बात है। उस समय में 12वीं में गया था। तब मैंने इरा सिंघल की जर्नी के बारे में पढ़ा और देखा था। दिव्यांग होकर भी उन्होंने सफलता हासिल की और अपनी सफलता के लिए हर संभव लड़ाई लडी। मैं उनसे बहुत इंस्पायर हुआ। बस यहीं मन में ठान लिया था कि यूपीएससी क्रैक करना है। मेरे मन में आया कि जब इतनी परेशानियों को झेलते हुए भी इरा टॉप कर सकती हैं तो हमारे पास तो सब सुविधाएं है, शरीर से सक्षम है। हम क्यों नही कर सकते। मैं उन्हें अपना प्रेरणा स्त्रोत मानता हूं। इसके बाद मेरा इंजीनियरिंग में सलेक्शन हो गया। राजस्थान में अजमेर में मुझे सरकारी कॉलेज मिला जहां बीटेक किया।
सवाल-बीटेक की, फिर कैसे अचानक यूपीएससी की तैयारी में जुटे
जवाब-अचानक नहीं, मन में ठान पहले ही रखा था कि यूपीएससी देनी है। बीटेक करने के दौरान ही पहली बार साल 2016 में मुझे पहला स्मार्टफोन मिला। उस समय जीओ ने अपनी सर्विस शुरू की थी और मैंने पहला स्मार्ट फोन लिया था। उसके बाद मैंने यूपीएससी के एग्जाम के बारे में ऑनलाइन खोजना शुरू किया। ऑनलाइन जितनी जानकारी ले सकता था उतनी जानकारी ली। इस दौरान मन में पूरी तरह पक्का हो चुका था कि अब मुझे यूपीएससी ही क्लियर करनी है। साल 2019 में लास्ट ईयर था। कंप्लीट करने के बाद अब ऑप्शन था कि कॉलेज प्लेसमेंट में किसी कंपनी में ज्वाइन कर लूं या जो मन में ठान रखा है वह करूं। घर पर बात की तो परिवार वालों ने कहा कि जो मन में है वही करो। बस इसके बाद मैंने यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी।
घर पर बात की तो परिवार वालों ने कहा कि जो मन में है वही करो। बस इसके बाद यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी।
सवाल- यूपीएससी की तैयारी के बारे में बताएं, कोई कोचिंग ली
जवाब- मैनें बिल्कुल भी स्ट्रेस नही लिया। पढ़ाई को भी मैनें सिर्फ रूटीन में 6 से 7 घंटे ही दिए। मेरा सब्जेक्ट पॉलिटिकल सांइंस था, पसंदीदा सब्जेक्ट है इसलिए ज्यादा दिक्कत नही आई। जब कोई चीज आपको पसंद होती है तो उसे समझना आसान हो जाता है। हां एग्जाम से पहले जरूर पढ़ाई का समय बढ़ाया और आठ से दस घंटे पढ़ाई को दिए। एग्जाम के लिए मैने कोई कोचिंग नही की। शुरू से ही सेल्फ स्टडी ही की है। इसके अलावा ऑनलाइन जानकारी जुटाता, बुक्स पढ़ता था। मेरा माध्यम भी हिंदी था।
सवाल-हिंदी मीडियम वालों के लिए यूपीएससी मुश्किल कहा जाता है, आपको भी लगा
जवाब-बिल्कुल मुश्किल तो होता ही है। इसमें अलग अलग कारण है। एक तो हिंदी में उतना कंटेंट ही मौजूद नहीं है यूपीएससी की तैयारी के लिए जितना अंग्रेजी में उपलब्ध है। इसके अलावा फिर हिंदी भाषा अपने आप में कठिन है। एग्जाम में कम शब्दों में जल्द से जल्द जवाब देने होते है। ऐसा होता है कि आप अंग्रेजी में जो जवाब एक मिनट में लिख रहे हैँ हिंदी में उसे लिखने में आपको दो मिनट लगेंगे। यह अंतर आखिर में बढ़ता जाता है, इसलिए हिंदी माध्यम वालों के सामने परेशानी आती है। कुछ ऑप्शन होते हैं जो अंग्रेजी माध्यम वालों के लिए आसान होते है। हालांकि अब काफी इम्प्रूव हो रहा है।
वीरेन्द्र कुमार मीणा ने यूपीएससी सिविल सेवा में 883 रैंक हासिल की है
सवाल-ज्यादातर लोग इंटरव्यू में रह जाते हैं, कमेटी इंटरव्यू के दौरान कैसे जज करती है
जवाब- मैंने जो समझा है उसके हिसाब से, इंटरव्यू ले रही कमेटी यह चेक करना चाहती है कि जो इंटरव्यू दे रहा है वह सिविल सेवा को अफोर्ड कर भी सकता है या नहीं, यानी सिविल सेवक बनने लायक है या नही। इसे ऐसे समझें कि वह यह चेक करते हैं कि सिविल सेवक बनने के बाद आपके सामने जो चुनौतियां आएगी उसे आप कैसे हैंडल करेंगे। आपकी नॉलेज तो चेक करते ही है, आपके प्रेशर हैंडल करने की कैपेसिटी भी देखी जाती है। इसलिए कई बार ट्रिकी सवाल किए जाते हैं। ऐसे सवाल पूछे जाते हैं जिससे पता लगे कि प्रेशर हैंडल कब तक इंटरव्यू देने वाला कर सकता है। मुझसे जो सवाल किया उसमें भारतीय संविधान की प्रस्तावना को हिंदी में पूछा गया, नक्सल समस्या, बाल श्रम को लेकर सवाल किए गए।
तीन बार पहले एग्जाम दिया लेकिन अलग अलग लेवल पर फेल हुए, लेकिन इसके बाद उनका हौसला दोगुना ही हुआ
सवाल-कभी लगा कि अब नही होगा, गलत चॉइस ले ली
जवाब- इतना बढ़ा प्रेशर हैंडल करते हैं तो कई बार मन में आता ही है। मैनें साल 2019 में कॉलेज करते समय ही यूपीएससी दिया था लेकिन मेरा प्री में भी नही हुआ। फिर अगले साल दुबारा दिया तो प्री क्लियर हो गया लेकिन मेंस क्लियर नहीं हुआ। बस यही वो वक्त था जब में टूट गया था। कोरोना का समय चल रहा था, प्री क्लियर हुआ तो लगा कि हो जाएगा। कोरोना के दौरान अपने आस पास के लोगों को खोया था। वैसे ही परेशान था, जब मैन में नहीं हुआ तो टूट गया। एक समय तो ऐसा आया जब डिप्रेशन में चला गया था लगा था सब खत्म हो गया। लेकिन मेरा परिवार मेरे साथ खड़ा रहा। मां पापा, बहन यही कहते, अगली बार हो जाएगा, परेशान होने की बात नही है। और नहीं भी होगा तो क्या हुआ, करियर थोड़ी खत्म हो जाएगा। कुछ ही समय में मैं नॉर्मल हो गया। फिर मैंने दोबारा एग्जाम दिया इस बार भी मैं मैन में रह गया। लेकिन अब हार नहीं मानी और वापस दिया, नतीजा 2022 के एग्जाम में तीनों ही लेवल क्लियर हो गए।
सवाल- पहली च्वाइस क्या थी
जवाब-मेरी च्वाइस तो शुरू से ही रेलवे मैनेजमेंट सर्विस रही थी। पिता पवन लाल मीणा रेलवे में लोको पायलट है। मां हाउस वाईफ है। बहन अंजली जेडीबी कॉलेज में छात्रसंघ अध्यक्ष है। पिता जी रेलवे में है तो रेलवे से जुडाव है। इसलिए पहली च्वाइस यही थी दूसरी च्वाइस आएएस थी। अब रैंक के हिसाब से उम्मीद है कि इंडियन रेलवे मैनेजमेंट ही मिलेगा।