रेस्टोरेंट में एक थाली की कीमत क्या हो सकती है…500, 1000 या फिर 1500 रुपए तक। लेकिन, क्या आपने कभी 5 हजार रुपए कीमत वाली थाली खाई है!
अगर आपका जवाब नही है तो हम आपको बताते हैं यह थाली आपको कहां मिलेगी। इस खास थाली का स्वाद चखने के लिए आपको जयपुर आना पड़ेगा।
इसकी थाली को खास बनाता है इसमें परोसा जाने वाला खाना, जिसमें मिलती है 60 तरह की वैरायटी। इस थाली को 10 लोग मिलकर भी नहीं खा सकते हैं।
यहां इस तरह की एक नहीं करीब 25 से ज्यादा तरह की थाली है। इन थालियों का आइडिया आया देश के 100 मंदिरों से। यानी इन थालियों में परोसे जाने वाले खाने को लोगों तक पहुंचाने के लिए देश के अलग-अलग मंदिरों में मिलने वाले प्रसाद पर रिसर्च किया गया और उसे चखा गया।
पहले इस थाली की शुरुआत पुणे से हुई थी, लेकिन बाद में यह जयपुर आई और महज 6 महीने में इसका स्वाद लोगों की जुबां पर चढ़ने लगा। आप जयपुर में है और किसी से पूछते हैं कि सबसे स्वादिष्ट थाली कहां मिलेगी? तो जवाब मिलेगा…श्री मोटूराम प्रसादम के यहां।
तो आइए राजस्थानी जायका की कड़ी में आपको भी ले चलते हैं इस खास रेस्टोरेंट पर…
एक चैलेंज से आया आइडिया
इसकी शुरुआत करने वाले हैं जयपुर के अभिषेक। अभिषेक ने बताया कि इस रेस्टोरेंट का आइडिया एक फ्रैंचाइजी इवेंट में आया था। उन्हें भी वहां इनवाइट किया गया। इस दौरान किसी ने वहां चैलेंज दिया कि एक ऐसा रेस्टोरेंट खोलना है जो हमारे इंडिया के अलग-अलग कल्चर को दिखाए और उसे रिप्रजेंट करें।
इस दौरान आइडिया आया कि क्यों न देश के अलग-अलग मंदिरों में मिलने वाले ट्रेडिशनल फूड को नए तरीके से मार्केट में लाया जाए। देश के प्रसिद्ध मंदिरों में मिलने वाले प्रसाद की अलग-अलग वैरायटी तैयार की जाए। अभिषेक बताते हैं कि यहीं से प्रसादम थाली का आइडिया आया।
आगे बढ़ने से पहले देते चलिए आसान से सवाल का जवाब…
डेढ़ साल में देश के 100 से ज्यादा मंदिरों में घूमे
अभिषेक ने बताया कि माइंड में पहले से ये सेट था कि मंदिरों में मिलने वाले प्रसाद को लोगों तक एक फूड वैरायटी में पहुंचाना है। लेकिन, इसके लिए जरूरी था कि देश के बड़े मंदिर में चढ़ने वाले प्रसाद पर रिसर्च करना। इसलिए सबसे पहले महाराष्ट्र के मुंबई, नासिक और शिर्डी से इसकी शुरुआत की।
इसके बाद पंजाब, साउथ, राजस्थान और गुजरात के 100 से ज्यादा मंदिरों के दर्शन किए और वहां मिलने वाले प्रसाद को टेस्ट कर उन पर रिसर्च किया। यहां प्रसाद को बनाने के तरीके से लेकर उनके टेस्ट को समझा और तय किया कि खाने को भी प्रसाद के तौर पर ही लोगों को परोसा जाएगा।
2018 में इस रेस्टोरेंट की शुरुआत की गई थी और महज 6 महीने में यहां का स्वाद लोगों की पसंद बन गया।
2016 में सबसे पहली शुरुआत लेकिन उसे बंद करना पड़ा
अभिषेक बताते हैं कि श्री मोटूराम प्रसादम इस नाम की भी अजब कहानी है। उन्हें बचपन में भाई-बहन और दोस्त मोटू राम कहकर बुलाते थे। जब उन्होंंने इसकी शुरुआत करने की सोची तो तय किया कि सारा कॉन्सेप्ट प्रसाद की थीम पर होगा। क्योंकि इसमें वे देश के प्रसिद्ध मंदिरों का खाना परोसेंगे। इसलिए 2016 में जब उन्होंने पुणे से इसकी शुरुआत की तो नाम रखा मोटू राम प्रसादम।
पुणे में जहां से शुरुआत हुई थी, वह बिल्डिंग रेंट पर थी। लेकिन, कुछ समय बाद पता चला कि बिल्डिंग अवैध थी और उस वजह से उसे सीज कर दिया गया।
इसके बाद वे जयपुर शिफ्ट हो गए। यहां इसकी शुरुआत करने से पहले एक पंडित से मिले, जिन्होंने नाम के आगे श्री लगाने को कहा। 2018 में सी स्कीम में श्री मोटूराम प्रसादम की शुरुआत हुई। महज 6 महीने में ही यहां का स्वाद लोगों पर चढ़ने लगा।
रेस्टोरेंट में सुबह सबसे पहले भगवान को भोग लगाया जाता है। इसके बाद कस्टमर को परोसा जाता है।
बिना प्याज लहसुन का खाना, सबसे पहले लगता है भगवान को भोग
यदि आप यहां जाते हैं तो आपको 200 रुपए से लेकर 5 हजार रुपए तक की थाली मिल जाएगी। यहां परोसे जाने वाली 90 प्रतिशत थालियां बिना प्याज- लहसुन की होती है। खाने को मंदिरोंं की तरह पत्ते और दोनों में सर्व किया जाता है। आज भी यहां सबसे पहले थाली भगवान के लिए परोसी जाती है। यानी पहला भोग भगवान को ही लगाया जाता है।
दीवार पर इस तरह के मंत्र लिखे हुए हैं। इतना ही नहीं खाना खाने के दौरान भी आपको यहां भजन और मंत्र सुनाई देंंगे।
मंदिर जैसा माहौल, बॉलीवुड सॉन्ग की बजाय सुनाई देंगे भजन
यहां का पूरा खाना भक्तिमय माहौल में परोसा जाता है और खिलाया भी जाता है। रेस्टोरेंट में एंट्री पर मंदिर की तरह एक घंटी लगाई गई है। मेहमान के यहां आने पर तिलक लगाकर आरती उतारी जाती है।
यहां की दीवारों पर भी मंत्र लिखे हुए हैं। और, जब आप खाना खाने बैठेंगे तो आपको कोई म्युजिक या बॉलीवुड सॉन्ग की बजाय भजन या फिर मंत्र सुनाई देंगे। इतना ही नहीं मैन्यू में सभी चीजों पर 1 रुपए का शगुन है। यानी यहां रेट 201, 501 और 5001 है।
यहां की थालियां मंदिरों के नाम, सबसे फेसम श्री छप्पन भोग
यहां के मेन्यू में सभी थालियाें के नाम मंदिरोंं के नाम पर रखे गए हैं। अभिषेक ने बताया कि जिस-जिस मंदिर में घूमे और जहां रिसर्च की उसी के हिसाब से इनके नाम रखे गए हैं।
यहां वैसे 25 से ज्यादा तरह की थालियां हैं, लेकिन सबसे खास है श्री छप्पन भोग थाली। इसमें कई तरह की सब्जियां, रोटी, घर के बने आचार, चटनी, छाछ, मिठाई,स्टाटर आदि सर्व किए जाते हैं।
इसके अलावा यहां की मारवाड़ी दाल बाटी, वेंकटेश, अयियप्पन, श्रीनाथ भोग, श्रमण भोग और गोविंद भोग के लोग दीवाने हैं।
आपको हर स्टेट का स्वाद मिलेगा यहां पर
अभिषेक बताते हैं इंडिया में लोग थाली तो दे रहे हैं, लेकिन वो बस 2 या 3 वैरायटी की होती है। इसमें कस्टमर्स को ज्यादा च्वॉइस नहीं मिलती है। जबकि हमारा पूरा कॉन्सेप्ट थाली बेस्ड है। इसलिए यहां इतनी तरह की थालियां मिल जाएंगी कि आप हर स्टेट के खाने का स्वाद ले सकते हैं। राजस्थानियों के लिए दाल बाटी भोग, मारवाड़ी भोग, साउथ से श्री अयीयप्पन भोग, श्री वेंकटेश्वरा भोग, पंजाब से श्री नानक भोग, बिहार से भोजपुरी थाली, गुजरात से श्री गोविंद भोग थाली है। इतना ही नहीं, वीगन डाइट वालों के लिए स्पेशल वीगन थाली भी है।
ये अभिषेक शर्मा है। इस पूरे कॉन्सेप्ट को लॉन्च करने से पहले डेढ़ साल तक देश के अलग-अलग राज्यों में ट्रैवल किया।
खाने का ऐसा शौक, झाडू किया, बर्तन धोए
अभिषेक ने बताया कि जब वे 4th क्लास में थे तभी उन्हें खाना बनाने और खाने का शौक था। फाइनेंशियली परिवार काफी साउंड रहा। दादाजी अंबालाल शर्मा यूको बैंक के फाउंडर मेंबर रहे। इसलिए परिवार चाहता था कि वे फाइनेंस या इंजीनियरिंग दोनों में से किसी एक फील्ड को चुने। परिवार के कहने पर 12th साइंस के बाद B.sc. की। लेकिन, उनके खाने का शौक बिल्कुल भी कम नहीं हुआ। क्रिकेट कोचिंग के बहाने MC.DEE में 15 रुपए पर प्रति घंटे की जॉब की। यहां वे झाडू लगाते, डस्टिंग करते और बर्तन धोते थे। लेकिन, एक दिन परिवार से उन्हें पकड़ लिया और खूब डांट लगाई।
इस पर परिवार के सामने जिद की और JNU से होटल मैनेजमैंट किया। इसके बाद होटल ताज, ओबरॉय जैसे कई बड़ी होटल्स पर काम किया।
अभिषेक एक शेफ ही नहीं बल्कि सीनियर शेफ कंसलटैंट हैं जो SUBWAY, पिंड बलूची, नैरुलास, कैफ कॉफी डे जैसे कई बड़े ब्रैंड्स सहित 150 से भी ज्यादा लोगों को एक सक्सेस फुल रेस्ट्रा खुलवा चुके हैं।
अब पढ़ें, यहां की सबसे 5 फेमस थालियां
खासियत: इस थाली को लेकर आइडिया था कि कोई भी यदि साउथ से लेकर नॉर्थ के मंदिरों का प्रसाद और रीजनल फूड टेस्ट करना चाहता है तो उसके लिए ये बेस्ट ऑप्शन है। इस थाली में उन्होंने डेढ़ साल के ट्रैवल एक्सपीरियंस को भी शामिल किया है, जो 100 मंदिरों के प्रसाद का उदाहरण है।
खासियत: इस थाली के लिए अभिषेक ने देलवाड़ा जैन मंदिर और ओसवाल दादावाड़ी विजिट किया था। जहां उन्हें जैन थाली के बारे में पता चला। इसी से जैन थाली का आइडिया। इसमें आपको बिना प्याज-लहसुन का खाना मिलेगा।
खासियत: गुजराती लोग श्रीनाथ जी को बहुत मानते हैं और अपने बिजनेस में भी वे अपने आराध्य को पार्टनर बनाते हैं। इस थाली का आइडिया नाथद्वारा के श्रीनाथ जी मंदिर से मिला। राजभोग के दर्शन के बाद अधिकांश लोग इसे प्रसाद के तौर पर लेते हैं। ऐसे में ये थाली खास श्रीनाथजी के भक्तों के लिए है।
खासियत: लोगों का मानना है कि साउथ की हर थाली में डोसा होता है,जबकि ऐसा नहीं है। आंध्रा और केरल जैसी जगह केवल चावल और ईडली ही खाई जाती है। ये भोग अय्यपन मंदिर से निकला है।अय्यपा भगवान यानी शिवजी के बेटे कार्तिकेय भगवान का मंदिर है। यहां इनकी पूजा होती है। यहां करीब 10 से 20 मंदिरों में दर्शन किया था। लेकिन, आंध्र प्रदेश में फेमस अय्यपन भोग थाली को फाइनल किया गया।
खासियत: इस भोग का आइडिया तिरूपति जी में मिलने वाली थाली से मिला। इसे केले के पत्तों पर परोसा जाता है। ये करीब 5 हजार साल पुराना स्वाद है। इसकी एक अलग से किताब भी है, जो साउथ में परिवार के सबसे लायक शिष्य को दी जाती है और वो ही पूरा खाना बनवाता है।
जयपुर-अजमेर हाईवे पर 'श्री कलाकंद वाला' जायका का वो ठिकाना है, जहां स्वाद के शौकीनों की भीड़ एक या दो नहीं 8 वैरायटी वाला कलाकंद खाने आती है। क्या मैंगो, क्या ठंडाई, गर्मियों में सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले जिस भी फ्लेवर का नाम लोगे, उसका कलाकंद यहां मिल जाएगा। इस स्वाद की शुरुआत तो अजमेर से हुई, लेकिन दो साल पहले जयपुर वासियों के लिए अजमेर की खंडेलवाल फैमिली ने वैशाली नगर में अपना पहला स्टोर खोला। कलाकंद के शौकीन बढ़ते गए तो 1 साल के अंदर ही जयपुर में दूसरी फ्रेंचाइजी भी खोल ली।
राहुल खंडेलवाल ने बताया कि पेशे से हलवाई उनके दादा मोहन खंडेलवाल ने अजमेर में करीब 40 साल पहले अजमेर में एक छोटी सी दुकान से कलाकंद बेचना शुरू किया था। पहले तो केवल सादा कलाकंद ही बनता था, लेकिन मिठाई को लेकर जुनूनी मोहन खंडेलवाल कुछ ऐसा बनाना चाहते थे,जिसके स्वाद की चर्चा दूर-दूर तक हो। कलाकंद पर लगातार नए प्रयोग करते रहते थे। पहले आम की वैरायटी तैयार की फिर केसर और गाजर से कलाकंद का स्वाद मोहन खंडेलवाल ने ही तैयार किया। (यहां क्लिक कर पढ़ें पूरी खबर)
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5 किलो का बेलन, 45 किलो वजन का ढाई इंच मोटा तवा। उस पर देशी घी में सिकते शक्कर, बनाना, अनार, मावा, मैगी और चॉकलेट जैसी 40 वैरायटी के पराठे। क्या आपने इन पराठो का स्वाद चखा है?
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