विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के लिए भाजपा ने पिछले तीन साल के विधानसभा चुनावों में एक-एक सीट के परिणाम का एनालिसिस किया है। इस एनालिसिस में कई तथ्य सामने आए।
- 100 सीटें ऐसी हैं, जहां भाजपा 10 हजार से कम वोट के अंतर से हारी। पार्टी का मानना है कि अगर इन सीटों पर ग्राउंड वर्क बढ़ाएं तो कई सीटों पर जीत हासिल हो सकती है।
- 100 सीटों के 10 हजार बूथ ऐसे हैं, जहां पिछले पिछले तीनों चुनाव भाजपा हारी है। 2013 में भारी बहुमत से जीत के बावजूद इन बूथों पर पार्टी को कम वोट मिले थे।
- बूथों के एनालिसिस में सबसे हैरान करने वाला फैक्ट ये था कि ज्यादातर बूथों पर लोकसभा चुनाव में पार्टी ने जीत हासिल की।
- इन 10 हजार बूथों में ज्यादातर एससी-एसटी प्रभाव वाले हैं।
ऐसे में इस बार इन कमजोर बूथों पर एससी-एसटी को साधने के लिए भाजपा ने खास एक्शन प्लान बनाया है।
पढ़िए- पूरी रिपोर्ट…
प्रदेश में कई बूथ हैं, जहां पिछले दोनों लोकसभा चुनाव में बीजेपी आगे रही, लेकिन पिछले तीनों विधानसभा चुनावों में इन बूथों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था।
जब भी भाजपा सत्ता से बाहर हुई, उसका बड़ा कारण : एससी-एसटी वोट कम मिले
2023 के चुनाव में भाजपा वो कोई गलती नहीं दोहराना चाहती, जो वह पिछले चुनावों में कर चुकी। यही कारण है कि प्रदेश संगठन महामंत्री चंद्रशेखर की मॉनिटरिंग में स्ट्रैटेजी पर काम हो रहा है। भाजपा इस बार एससी-एसटी वर्ग के मतदाताओं को अपने पक्ष में करने पर पूरा जोर लगा रही है। सबसे खास ध्यान इस बात का है कि किस तरह ऐसे वोटर्स को कन्वर्ट किया जाए जो अभी तक कांग्रेस और अन्य दलों से जुड़े हैं।
भाजपा ने जिन 100 कमजोर सीटों पर खास रणनीति बनाई है, उनमें से प्रत्येक सीट पर 100 बूथ ऐसे चिह्नित किए हैं, जहां एससी-एसटी वर्ग के मतदाताओं की संख्या 300 से लेकर 800 तक है। यानी 100 सीटों पर 10 हजार बूथ टारगेट किए गए हैं।
इन दस हजार बूथों पर एससी--एसटी वर्ग से ही एक-एक वोलिएंटर लगाकर भाजपा ने ग्राउंड वर्किंग कराई। इन वोलिएंटर्स को टास्क दिया गया कि वे प्रत्येक बूथ से ऐसी डिटेल एकत्र करें कि वहां कौन-कौन इंफ्लूंएसर हैं? वहां के सामाजिक रिश्ते किन--किन क्षेत्रों में हैं? उस बूथ में प्रभावी नेता कौन है? विरोधी पार्टी का प्रभावी नेता कौन है? उसका उसी पार्टी में प्रतिद्वंद्वी कौन है?
दस हजार बूथों पर जिन कार्यकर्ताओं को तैनात किया गया है उनको पहले भीम वोलिएंटर्स, बाद में नया नाम नमो वोलिएंटर्स दिया गया। ये वोलिएंटर्स सभी बूथों से पार्टी की ओर से तय किए गए फोकस पॉइंट्स पर डिटेल जुटाकर पार्टी तक पहुंचा चुके हैं। अब यहां वर्किंग शुरू कर दी गई है। सभी बूथों पर तय पॉइंट्स पर काम करने और मॉनिटरिंग के लिए बूथ पालक और बूथ प्रभारी तैनात किए गए हैं।
राजस्थान भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री चंद्रशेखर की मॉनिटरिंग में विधानसभा चुनाव के लिए स्ट्रैटजी पर काम हो रहा है।
एससी-एसटी प्रभाव वाले बूथों के लिए बीजेपी का प्लान
- ‘की वोटर्स’ पर फोकस: ऐसे वोटर्स जो उस बूथ पर इंफ्लूएंर्स हैं। जो लोगों को प्रभावित करने की हैसियत रखते हैं। ऐसे लोगों की सूची बनाकर उनसे लगातार संपर्क किया जा रहा है। देखा जा रहा है कि किस इंफ्लूएंसर को कौन नेता पार्टी से जोड़ने में सक्षम है। जिन लोगों को पार्टी से जोड़ने का काम किया जा रहा है, उनमें क्षेत्र के डॉक्टर, वकील, सरकारी टीचर, बड़े व्यवसायी, सरपंच, पूर्व जनप्रतिनिधि, पंडित-पुजारी और क्षेत्र के नामचीन व्यक्तियों पर फोकस किया जा रहा है।
- बूथ क्षेत्र के मंदिर-मठ सूचीबद्ध: मंदिर-मठ पर बीजेपी इस लिए फोकस है क्योंकि ये ऐसी जगह हैं, जहां लोगों का आना-जाना रहता है। मंदिर-मठ के प्रमुखों से लगातार संपर्क के जरिए वहां आने वाले लोगों को भाजपा से जोड़ने की कोशिश।
- एनजीओ, स्वयं सहायता समूह से संपर्क : बूथ क्षेत्र में काम कर रहे सभी एनजीओ और स्वयं सहायता समूह का डेटा एकत्र किया जा रहा है ताकि इनसे संपर्क साध कर चुनाव तक इनको पार्टी से जोड़ा जा सके।
- बूथ स्तर के पार्टी कार्यकर्ताओं में कॉर्डिनेशन : भाजपा चाहती है कि पार्टी में ऊपर से नीचे तक की चेन जुड़ी रहे। इसके लिए बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं में आपस में कनेक्टिविटी पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। बूथ प्रभारी को इसके लिए जिम्मेदार बनाया गया है।
- दूसरे दलों के प्रभावी नेताओं की लिस्टिंग : हर बूथ पर यह पता लगाया गया है कि वहां दूसरी पार्टियों में कौन-कौन अपना प्रभाव रखता है। इस तरह की रणनीति बनाई जा रही है कि ऐसे लोगों को किस तरह से भाजपा में शामिल किया जाए या उनको न्यूट्रल करके विपक्षी पार्टी को कमजोर किया जा सके?
- सामाजिक संपर्कों का पता लगाया जा रहा : बूथ क्षेत्र में जितने भी वोटर हैं, उनके सामाजिक रिश्ते कहां-कहां है, इसकी भी जानकारी जुटाई गई है। ऐसा इसलिए ताकि दूसरे स्थानों पर रह रहे ऐसे लोगों से संपर्क करके उन्हें पार्टी से जोड़ने पर काम किया जा सके।
- नेताओं का बूथ पर सामाजिक प्रवास : अलग-अलग समाजों के परिवारों से संपर्क के लिए भाजपा उसी समाज के अपने नेताओं के बूथ प्रवास तय कर रही है ताकि उनको प्रभावित करके वोट में कन्वर्ट किया जा सके।
- बूथ पालक और बूथ प्रभारी की जिम्मेदारी : संगठन की मजबूती के लिए प्रत्येक बूथ के प्रभारी और बूथ पालक को जिम्मेदारी दी गई है कि वह संबंधित बूथ की समिति को सक्रिय रखें ताकि लगातार मीटिंग्स हो और पार्टी के कार्यक्रम लगातार बूथ स्तर पर हो सके।
- मोदी की योजनाओं से माहौल : हर बूथ पर केंद्र सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों की सूची तैयार की गई है। केंद्र की मोदी सरकार की योजनाओं से माहौल बनाकर लोगों को यह जताया जा रहा है कि केंद्र सरकार की ओर से जनता को क्या-क्या लाभ दिया जा रहा है।
राजस्थान में चुनावों को लेकर भाजपा पूरी तरह एक्टिव हो गई है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी समेत तमाम बड़े राष्ट्रीय नेताओं के दौरे तय किए जा रहे हैं।
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ज्यादातर बूथों पर लोकसभा में जीत रही बीजेपी
भाजपा की स्टडी में एक बात यह भी चौंकाने वाली सामने आई कि चिह्नित किए गए 10 हजार बूथों पर भाजपा विधानसभा चुनाव में हार जाती है, लेकिन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में वह इनमें से अधिकतर बूथों पर जीती है।
इन बूथों के चयन का यही आधार है कि जब लोकसभा में ज्यादातर बूथों पर जीत मिल रही है तो विधानसभा चुनाव में भी स्थानीय समीकरणों को ठीक करके जीत हासिल की जा सकती है। क्योंकि एक्सपट्र्स का कहना है कि लोकसभा में स्थानीय मुद्दे इतने अहम नहीं होते, लेकिन विधानसभा चुनाव में सबसे अहम स्थानीय मुद्दे ही होते हैं।
बूथों पर जिन वोटर्स को भाजपा अब तक अपनी रणनीति में कन्वर्ट करने में सफल रही है उनको जब बड़े नेताओं की सभाएं या पार्टी के बड़े आयोजन होते हैं तो वहां ले जाने पर प्राथमिकता दी जा रही है। पिछले दिनों भरतपुर में अमित शाह का कार्यक्रम हुआ वहां भी चयनित बूथों से भीड़ जुटाई गई थी। ऐसा इसलिए ताकि इन बूथों पर बीजेपी का प्रभाव कायम किया जाए और जिन लोगों को कार्यक्रम में ले जाया वे वापस आकर भाजपा की माउथ पब्लिसिटी में सहयोग करें।
भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष मुकेश दाधीच कहते हैं- हम जिस रणनीति पर काम कर रहे हैं, यह सिर्फ सरकार वापस बनाने का ही फॉर्मूला नहीं है बल्कि यह भाजपा को अजेय बनाने का फॉर्मूला है। पार्टी चाहती है कि निचले स्तर तक इतनी बारीकी से वर्किंग हो कि आने वाले कई सालों तक भाजपा की सरकार रहे।
चिह्नित किए गए 10 हजार बूथों पर भाजपा विधानसभा चुनाव में हार जाती है, लेकिन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में वह इनमें से अधिकतर बूथों पर जीती है।
100 सीटें किस-किस जिले की जहां बीजेपी फोकस कर रही?
भाजपा ने जिन 100 सीटों पर 100-100 बूथ सलेक्ट किए हैं उनमें पूर्वी राजस्थान, शेखावाटी, मारवाड़ की ज्यादा सीटें हैं। जिलावार देखें तो अलवर की 11 सीटें, भरतपुर की 7, धौलपुर की 4, करौली की 4, दौसा की 5, सवाईमाधोपुर की 4, झुन्झुनूं की 7, सीकर की 8, चुरू की 6, गंगानगर की 3, हनुमान गढ़ की 2, बीकानेर की 4, नागौर की 10, जोधपुर की 10, बाड़मेर की 7, डूंगरपुर की 4, बांसवाड़ा की 5 सीटें शामिल हैं।
सीटवार बात करें तो भाजपा उन 76 सीटों पर इस बार ज्यादा काम कर रही है, जहां वह पिछले 3 में से 2 चुनाव हारी। इनमें सादुलशहर, गंगानगर, करणपुर, रायसिंहनगर, हनुमानगढ़, भादरा, कोलायत, लूणकरणसर, श्रीडूंगरगढ़, नोखा, सादुलपुर, सरदारशहर, सुजानगढ़, मंडावा, उदयपुरवाटी, धोद, सीकर, नीमकाथाना, श्रीमाधोपुर, दूदू, आमेर, जमवारामगढ़, हवामहल, सिविल लाइंस, बगरू, तिजारा, बानसूर, अलवर ग्रामीण, कामां, डीग-कुम्हेर, हिंडौन, करौली, बांदीकुई, महुआ, दौसा, गंगापुरसिटी, बामनवास, सवाईमाधोपुर, खंडार, निवाई, टोंक, देवली-उनियारा, किशनगढ़, मसूदा, केकड़ी, लाडनूं, डीडवाना, जायल, खींवसर, नावां, ओसियां, लूणी, पोकरण, शिव, बायतू, पचपदरा, गुढ़ामलानी, चौहटन, खैरवाड़ा, डूंगरपुर, सागवाड़ा, चौरासी, बांसवाड़ा, कुशलगढ़, बेगूं, निंबाहेड़ा, मांडल, सहाड़ा, हिंडौली, पीपल्दा, सांगोद, कोटा नोर्थ, अंता, किशनगंज, बारां-अटरू, राजाखेड़ा सीट शामिल है।
इसके साथ ही 37 में से उन 24 सीटों पर भाजपा एससी-एसटी बूथों पर काम कर रही है, जो पिछले तीन में से एक बार हारी है। इनमें जोधपुर, बिलाड़ा, पिलानी, खंडेला, विराटनगर, शाहपुरा, झोटवाड़ा, किशनपोल, आदर्शनगर, चाकसू, मेड़ता, डेगाना, परबतसर, मारवाड़ जंक्शन, लोहावट, शेरगढ़, भोपालगढ़, जैसलमेर, सिरोही, प्रतापगढ़, भीम, नाथद्वारा सीट शामिल है।