सिर पर पगड़ी...योद्धा की तरह सजे युवा लगातार फायरिंग कर रहे थे। पास में ही तोप से हर 7 मिनट में गोले दागे जा रहे थे। गांव 2 घंटे तक धमाकों से गूंजता रहा। ऐसा लग रहा था जैसे कोई भयंकर युद्ध छिड़ गया हो।
लेकिन, यह माहौल था उदयपुर के मेनार गांव में शौर्य पर्व जमरा बीज का। यहां होली का जश्न रंगों से नहीं, बल्कि बारूद से खेलकर मनाया गया। 15 साल के युवा से लेकर 70 साल के बुजुर्ग भी शामिल हुए। इस मौके पर स्थानीय 3 हजार लोगों के अलावा आसपास गांवों के 10 से 12 हजार लोग भी देखने पहुंचे।
दरअसल, होली के तीसरे दिन मनाए जाने वाले जीत के इस पर्व पर 5 तोपें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर लगाई गईं। यहां हर 7 मिनट में बारूद के गोले दागे जा रहे थे।
करीब 2 हजार बंदूकों से एक के बाद एक हवा में फायर किए गए। धमाकों की गूंज आसपास 5 किमी तक सुनाई देती रही।
हर साल इस पर्व का आयोजन किया जाता है। बुधवार रात करीब 12 बजे तक ये आयोजन चला। यहां इस तरह की 5 तोप लगाई गईं।
14 घंटे लगातार बजा ढोल, 1 करोड़ रुपए के पटाखों से आतिशबाजी
बुधवार दोपहर 2 बजे से गुरुवार अल सुबह 4 बजे तक बिना रुके लगातार रणकपुर ढोल बजता रहा। इसके लिए बकायदा दो व्यक्ति लगाए जाते हैं। इस मौके पर करीब 1 करोड़ रुपए के महंगे पटाखों से आतिशबाजी की गई। गांव के हर घर से हजारों-लाखों रुपए के बारूद और पटाखे खरीदे जाते हैं। फायरिंग और तोप गोले दागने के बाद पुरुषों द्वारा गैर नृत्य किया जाता है। महिलाएं भी दूसरी तरफ नृत्य करती हैं।
तेली समाज मशालों में तेल भरता, रावत-मीणा समाज के बनते हैं सेनापति
इस पर्व पर साम्प्रदायिकता की भी अनूठी मिसाल देखने को मिली। यहां परंपरा अनुसार तेली समाज मशालों में तेल भरता है। जश्न के दौरान जैन समाज द्वारा ही कई क्विंटल गुलाल उड़ाई जाती है तो वहीं मीणा, रावत समाज के प्रमुख लोग फेरावत यानी सेनापति की भूमिका में होते हैं।
अलग-अलग गलियों से आने वाली युवाओं की टोली के सबसे आगे यही सेनापति धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए चलते हैं। वहीं, ढोली समाज का एक परिवार यहां मौजूद लोगों को करीब 400 साल पुराना इतिहास पढ़कर सुनाता है। पूरा समाज मिलकर इस पर्व को मनाता है।
इस आयोजन की खास बात ये है कि इसमें सभी समाज के लोग शामिल होते हैं।
लंदन, दुबई, अमेरिका सहित कई देशों से लोग पहुंचे
मेनार गांव के कई लोग देश-विदेशों में रहते हैं तो कुछ जॉब को लेकर गए हैं। वे खासतौर पर जमरा बीज पर्व में शामिल होने आते हैं। इस बार लंदन से नारायण गदावत, ओमान से ओंकारलाल मेरावत, दुबई से मनोहर मेरावत व ओमप्रकाश दियावत, अमेरिका से नंदलाल चित्तौड़ा, मस्कट से शांतिलाल मेरावत और बेल्जियम से कमलेश एकलिंगासोत आदि यहां परिवार सहित इस पर्व में शामिल होने आए।
इस आयोजन को देखने के लिए आसपास के कई गांवों से लोग पहुंचते हैं।
गांव में मुगलों से युद्ध की जीत के जश्न की परंपरा 400 साल पुरानी
छगन मेनारिया ने बताया कि जमरा बीज पर्व का इतिहास मेवाड़ के महाराणा रहे अमरसिंह प्रथम के समय करीब 400 साल पुराना है। जब मेनार गांव के लोगों ने मुगलों से युद्ध लड़कर मेवाड़ की रक्षा में अहम भूमिका निभाई थी।
मुगलों से युद्ध में विजय की खुशी में जश्न मनाने के लिए हर साल गांववासी बारूद की होली खेलते हैं। महाराणा अमर सिंह के समय मेनार में मुगल सेना की चौकी थी, जिसे मेनारिया ब्राह्मणों कुशल रणनीति से लड़ाई कर चौकी को ध्वस्त किया था। इसी की खुशी में सालों से जमरा बीज पर जश्न मनाने की परंपरा चली आ रही है।
मुगलों से युद्ध की जीत के जश्न की ये परंपरा करीब 400 साल पुरानी हैै। लोग पारंपरिक वेशभूषा में शामिल होने पहुंचते हैं।
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