अजमेर के प्रतीक खंडेलवाल ने दुनिया की सबसे ऊंची जमी हुई पैंगोंग झील पर माइनस 15 डिग्री में 21.9 किमी की हाफ मैराथन पूरी की है। इस दौरान -15 डिग्री में हाथ जम गए। सर्दी के कारण कटने लगे। हाथ के घावों में से खून निकलने लगा। लेकिन प्रतीक ने मैराथन पूरी की। इसके लिए उनके पूरे ग्रुप का नाम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है। इस मैराथन में देशभर के 100 लोगों ने हिस्सा लिया था। प्रतीक ने ये मैराथन 4 घंटे में पूरी की। इस हाफ मैराथन में शामिल होने वाले प्रतीक के साथ सभी 100 लोगों का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज किया गया है।
बता दें कि लद्दाख की पैंगोंग झील 13 हजार 862 फीट ऊंचाई पर है, इन दिनों यह झील बर्फ से जमी हुई है। भारत-चीन सीमा में करीब 700 वर्ग किमी तक यह झील फैली है, सर्दियों के दौरान यहां का तापमान माइनस 30 डिग्री सेल्सियस तक रिकार्ड किया जा चुका है। इस झील पर हॉफ मैराथन का आयोजन पहली बार हुआ है।
21 फरवरी को पैंगोंग झील पर 21 किमी की हुई थी दौड़, 100 धावकों ने लिया था भाग, अजमेर के प्रतीक खंडेलवाल भी हुए शामिल।
प्रतीक खंडेलवाल ने बताया- वह अजमेर के शालीमार्ग कॉलोनी के रहने वाले हैं। उनके पिता राजेश खंडेलवाल रेलवे में इंस्पेक्टर ऑफ स्टोर अकाउंट के पद से 2022 में रिटायर्ड हुए थे। इंजीनियरिंग इलाहाबाद के ट्रिपल आईटी कॉलेज से हुई है। जब 12 साल का था, तब माता-पिता केदारनाथ ले गए थे। तब से पहाड़ों पर जाने का शौक लगा। पहले डर लगा, बाद आदत हो गई। 21 साल की उम्र में अकेला पहाड़ों के टूर करने लगा।
अजमेर के प्रतीक खंडेलवाल ने मैराथन में भाग लेकर गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम किया दर्ज।
2015 में हुआ था हादसा
प्रतीक ने बताया पहाड़ों पर चढ़ने का कोर्स किया हुआ है। 2015 में ट्रेनिंग के दौरान दार्जलिंग की बर्फीली पहाड़ी पर हादसा हो गया था। प्रतीक ने बताया- जब वह पहाड़ पर ऊपर पंहुचा तो खड्डे में जा गिरा। जो काफी गहरा था। एक बार तो सोचा कि मौत आ गई है। मैंने रस्सी बांध रखी थी। लोगों ने इससे मुझे ऊपर खींच लिया।
प्रतीक ने बताया की बर्फीली पहाड़ो पर ट्रेकिंग करते वक्त हाथों में कट लग जाते है, जिससे हाथ से खून तक निकल जाता है।
ट्रैकिंग पर स्किन कटने से निकलता है खून
प्रतीक ने बताया- अलग-अलग तरह के बर्फ के पहाड़ो पर ट्रैकिंग कर चुका हूं। माइनस डिग्री के तापमान में कई समस्या झेलनी पड़ती है। सांस तक लेने में दिक्कत आ जाती है। हाथों की खाल फट जाती है। इससे हाथों से खून निकलना शुरू हो जाता है।
छह दिनों तक कठिन परिश्रम, खुद को बनाया वहां के मौसम के अनुकूल
लद्दाख की पैंगोंग झील में हुई 'द लास्ट रन' में राजस्थान से सिर्फ प्रतीक ने हिस्सा लिया। पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर प्रतीक ने बताया- जलवायु परिवर्तन और हिमालय को बचाने का संदेश देने के लिए आयोजित इस अनोखी मैराथन को 'द लास्ट रन' नाम दिया गया था। जिस समय मैराथन शुरू हुई, उस समय माइनस में तापमान था। मैराथन मार्ग पर पांच एनर्जी स्टेशन बनाए गए थे।
मैराथन में मोबाइल एंबुलेंस के साथ डॉक्टर्स का दल और ऑक्सीजन सिलेंडर आदि की व्यवस्था थी। प्रतीक बताते हैं कि इस मैराथन में शामिल होने से पहले धावकों ने छह दिनों तक वहां रहकर मौसम के अनुकूल ढलने का काम किया। चार दिन लेह और दो दिन पैंगोग में गुजारे। सभी धावकों का मेडिकल परीक्षण किया गया। इसके बाद मैराथन के लिए अनुमति मिली।
12 साल की उम्र से प्रतीक को पहाड़ो पर जाने का लगा शौक, ट्रेनिग का कर चुके है कोर्स।
आठ महिला धावकों ने भी लिया हिस्सा
मैराथन में भारतीय सेना और आईटीबीपी का पूरा सहयोग मिला। साथ ही मैराथन मार्ग में लद्दाख माउंटेन गाइड एसोसिएशन के कर्मचारी तैनात किए गए। मैराथन में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान पर सेना के जवान व अधिकारी रहे।
कई राज्यों के धावकों का हुआ चयन
प्रतीक खंडेलवाल ने बताया- इस मैराथन में कश्मीर, तमिलनाडु, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक सहित राजस्थान से लोग शामिल हुए। उन्होंने बताया- 50 लोग अलग-अलग स्टेट से मैराथन में पहुंचे थे। बाकी 50 लोग लोकल और आर्मी के थे। माइनस 15 डिग्री के बीच टेंपरेचर में इस मैराथन को कंप्लीट किया गया।
जूतों के नीचे काटे लगाकर चले
प्रतीक ने बताया- वहां इतनी ठंड थी कि चलना भी मुश्किल था। जूतों के नीचे कांटे लगाकर चलना पड़ा। इसके साथ ही पूरे शरीर पर 3 से 4 लेयर के कपड़े पहने गए। सिर को टोपी और मफलर से कवर कर रखा था। जिसे हटाते ही सांस लेने में दिक्कत होने लग रही थी। सभी ने इस मैराथन को कंप्लीट कर लिया।
मैराथन पूरी करने के बाद प्रतीक ने लद्दाख की यूटी कांगड़ी पहाड़ी भी फतह की।
मैराथन के बाद यूटी कांगड़ी की पहाड़ी पर चढ़े
प्रतीक खंडेलवाल ने बताया कि मैराथन कंप्लीट होने के बाद 22 फरवरी को वह अपने दोस्त के साथ लद्दाख की यूटी कांगड़ी की पहाड़ी पर चढ़े थे। 6000 मीटर की हाइट पर माइनस 25 डिग्री के तापमान को झेलते हुए 5 दिन में पूरा सफर कंप्लीट किया।
गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड की कोशिश, प्रतीक -20 डिग्री में चादर ट्रैक पूरा कर चुका है
प्रतीक ने दार्जिलिंग के हिमालय पर्वतारोहण संस्थान से वर्ष 2016 में ए-ग्रेड के साथ बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स, उत्तरकाशी के नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग से 2018 में ए ग्रेड के साथ एडवांस माउंटेनियरिंग कोर्स पूरा किया। प्रतीक ने 2016 में चादर ट्रैक पूरा किया था, जो भारत के सबसे ठंडे ट्रैक में से एक है। ट्रैक के आखिरी दिन तापमान -20 डिग्री सेल्सियस के आसपास था। 2019 में माउंट एवरेस्ट बेस कैंप ट्रैक पूरा किया। इस ट्रैक को पूरा करने में उन्हें 9 दिन लगे जबकि आमतौर पर लोगों को 13-15 दिन लगते हैं। 2019 में टोक्यो में जब प्रतीक माउंट फूजी पर चढ़ा प्रतीक ने कहा कि वह देश का सबसे तेज आयरनमैन बनने और माउंट एवरेस्ट फतेह करने की कोशिश कर रहा है।
राज्य का सबसे तेज आयरनमैन
प्रतीक वर्ष 2022 गोवा में आयोजित आयरनमैन 70.3 रेस पूरी कर चुके हैं। इस रेस से वे राजस्थान के सबसे तेज व्यक्ति बन गए।
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