प्रियांशु UP के गाजीपुर के छोटे से गांव जखनिया के रहने वाले हैं। करीब 130 दिन से फीस बढ़ने के विरोध में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के कैंपस में धरने पर बैठे हैं। पिता का नाम राम आसरे हैं। छोटी सी खेती से गुजारा चलता है।
रुआंसे होकर कहते हैं- ‘दो बहनें हैं। सोचा था, पढ़-लिख लूं तो उनकी शादी करने में पिताजी की मदद करूंगा। अब तो फीस इतनी बढ़ गई है कि पढ़ाई पूरी होगी, इसी का भरोसा नहीं। उम्मीद थी बजट से कुछ राहत मिलेगी, कोई ऐलान होगा, लेकिन सब छलावा है।’
1 फरवरी को मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल का आखिरी बजट पेश किया। इस बजट पर एक्सपर्ट्स ने मिले-जुले रिएक्शन दिए हैं। किसी ने 7 लाख तक इनकम टैक्स फ्री करने की तारीफ की, तो किसी ने इसे बेरोजगारों और किसानों के लिए बुरा बताया।
एक्सपर्ट्स अपनी जगह हैं, लेकिन स्टूडेंट्स, होम मेकर्स, किसान और टैक्सपेयर्स को ये बजट कैसा लगा। क्या उनकी जिंदगी में इससे कोई बदलाव आएगा, राहत मिलेगी? इन सवालों को लेकर हमने 6 शहरों में अलग-अलग लोगों से बात की…
प्रयागराज: मम्मी-पापा से फीस मांगने में शर्म आती है
बजट से स्टूडेंट्स को क्या मिला, ये जानने के लिए हम उन छात्रों से मिलने पहुंचे, जो 14 सितंबर 2022 से एक बार में 400% फीस बढ़ाए जाने के विरोध में धरने पर बैठे हैं। एक वक्त था, जब इलाहाबाद यूनिवर्सिटी को पूरब का ऑक्सफोर्ड कहा जाता था, यहां आज भी यूपी और आस-पास के राज्यों से आने वाले और आर्थिक रूप से कमजोर स्थिति वाले हजारों बच्चे पढ़ते हैं।
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में फीस बढ़ाने का नोटिफिकेशन 14 सितंबर 2022 को हुआ था। इसमें BA की 975 रुपए से बढ़ाकर 3,901 रुपए, BSc की 1,125 रुपए से 4,151 रुपए और B.Com की फीस 975 रुपए से 3,901 रुपए कर दी गई। स्टूडेंट इसका विरोध कर रहे हैं।
यहां हमारी मुलाकात ग्रेजुएशन सेकेंड ईयर में पढ़ रहे रवि सिंह रिंकू से हुई। रिंकू भी प्रोटेस्ट कर रहे लोगों में शामिल हैं। बजट का सवाल करते ही भड़क जाते हैं, कहते हैं- ‘स्टूडेंट्स के लिए कोई राहत नहीं दी। उम्मीद थी कि बढ़ती हुई फीस पर कुछ बोलेंगे, कोई घोषणा करेंगे। सोचा था, मेरे जैसे गांव-देहात से आने वाले स्टूडेंट्स के लिए सस्ती पढ़ाई का कोई इंतजाम करेंगे।’
गाजीपुर के प्रियांशु से सवाल किया तो बोले- ‘कौशल विकास के नाम पर 3 साल तक युवाओं को भत्ता दे रहे हैं। इससे क्या फ्यूचर बनेगा? नौकरी दे देते, पढ़ाई सस्ती कर देते, तो हमें कुछ मिलता भी। नौकरियों और बेरोजगारी पर तो कुछ बोला ही नहीं।’
बातचीत सुनकर पास में खड़े BA फाइनल ईयर के स्टूडेंट अभिषेक यादव भी आ जाते हैं, कहते हैं- ‘मैं जौनपुर का हूं। मेरे गांव में आज भी ज्यादातर लोग 12वीं से आगे नहीं पढ़ पाते, पढ़ भी लें तो नौकरी नहीं मिलती। पिताजी की कमाई मुझे पता है, उनसे फीस मांगने में शर्म आती है।’
पटना: 10 साल से नौकरी ढूंढ रहा, डिग्री है, एग्जाम पास किया, लेकिन वैकेंसी कहां है
पटना में बीते कई महीनों से सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे और टीचर्स ट्रेनिंग कर चुके युवा प्रदर्शन कर रहे हैं, लाठियां खा रहे हैं। दिसंबर 2022 में हुए एक सरकारी सर्वे में बिहार के 19% पढ़े-लिखे लोगों ने खुद को बेरोजगार बताया है। बेरोजगारी पर बजट कैसा रहा, ये जानने निकले तो पटना में आशीष कुमार से मिले। आशीष 10 साल से सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं। सहरसा से पटना आए थे।
बिहार लोक सेवा आयोग और बिहार कर्मचारी आयोग की दो परीक्षाओं में शामिल हुए। दोनों के पेपर लीक हो गए। अब नौकरी के लिए प्रदर्शन में शामिल हैं। पिछले दो महीने में तीन बार लाठियां खा चुके हैं।
वे कहते हैं- ‘बजट में कितनी नौकरियों ऐलान हुआ है? आपको पता चले तो हमें भी बता देना। हमारे पास केंद्र और राज्य में टीचर की नौकरी के लिए सभी जरूरी डिग्री हैं, CTET-STET एग्जाम भी पास किया है, लेकिन वैकेंसी कहां है? स्किल देने के नाम पर योजनाएं चल रही हैं, ट्रेनिंग हो रही। सर्टिफिकेट मिल जाता है, लेकिन नौकरी है ही नहीं।’
आशीष के साथ ही सौरभ कुमार भी लाठी खा रहे लोगों में शामिल हैं। साल 2010 में वैशाली जिले के भगवानपुर से पीजी करने के बाद पटना नौकरी के एग्जाम देने आ गए थे। नौकरी की तैयारी करते- करते पटना साइंस कॉलेज से MSc कर ली और आजकल पटना यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कॉलर हैं। 6 साल से बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन (BPSC) की तैयारी कर रहे हैं। दो बार प्री-एग्जाम निकाला, मेंस परीक्षा पास की और इंटरव्यू भी दिया, लेकिन नौकरी नहीं मिली।
बजट के सवाल पर कहते हैं- ‘नौकरी की उम्मीद थी, लेकिन कोई घोषणा ही नहीं हुई। हजारों लोग बेरोजगार हैं, उनके लिए बजट में कुछ नहीं था। 2 करोड़ नौकरी और 20 हजार करोड़ के स्पेशल पैकेज का वादा था। इस बार भी स्किल से जुड़ी योजनाओं का ऐलान हुआ है, लेकिन उनसे सिर्फ सर्टिफिकेट मिलते हैं।’
दिल्ली: आटा, दाल, दूध सब महंगा, बजट से कोई राहत नहीं
घर के बढ़ते बजट पर बात करने के लिए राजधानी दिल्ली पहुंचे। यहां नेवी से रिटायर्ड कर्मचारी रामनिवास पांडे जनरल स्टोर चलाते हैं। बजट के सवाल पर कहते हैं- ‘पहले दुकान में सामान भरने के लिए जितना पैसा खर्च करना पड़ता था, अब उससे 22% ज्यादा करना पड़ता है। हमें तो पता ही है कि महंगाई किस रफ्तार से बढ़ी है। लोग कम खरीदने लगते हैं, हमारा नुकसान बढ़ जाता है।’
रामनिवास आगे बताते हैं- ‘कोविड के बाद तो जैसे सब कुछ महंगा हो गया है। मुनाफा कम हो गया। बजट में हम जैसे छोटे कारोबारियों के लिए कुछ भी नजर नहीं आया। हम ही रोजगार देते हैं, बड़ी कंपनियां तो मशीनें लगाकर सारा काम करती हैं।’
रामनिवास की दुकान से सामान खरीद रहीं रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी रेणु शाह कहती हैं- ‘विदेशों में जो हो रहा है, उससे देश में भी महंगाई बढ़ रही है। महंगाई सब जगह ही बढ़ रही है, सरकार इस मामले में ज्यादा कुछ नहीं कर सकती। जो दाम बढ़ चुके अब वापस नहीं होंगे, महंगाई कम होगी, उम्मीद कम है। सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर में काफी बढ़िया काम कर रही है।’
हालांकि सरकार की तारीफ के बीच ही उनका दर्द भी सामने आ जाता है। कहती हैं- ‘दिक्कत आटा और दूध के दाम लगातार बढ़ने से है। हर दो-तीन महीने में दूध के दाम बढ़ रहे हैं। दूध ऐसी चीज है, जिसके बिना नहीं रहा जा सकता। सरकार को इस बारे में कुछ करना चाहिए। एक दिन पहले ही अमूल ने एक लीटर दूध की कीमत 3 रुपए बढ़ा दी है।’ वे दूध का पैकेट उठाए दुकान से चली जाती हैं।
मार्केट में हमारी मुलाकात नेहा से होती है। वे कहती हैं- ‘सरकार ने महिलाओं के लिए महिला सम्मान बचत पत्र शुरू किया है। ये अच्छी योजना है, लेकिन अभी हम बचत कहां से करें, हम तो पहले ही महंगाई से परेशान हैं। कुछ बच ही नहीं रहा। ये योजना अभी किसी काम की नहीं है।’
दिल्ली में एक छोटी दुकान चलाने वाले अनिल भी बजट से नाराज नजर आते हैं। वो कहते हैं-’हमें उम्मीद थी कि आम आदमी को कुछ राहत मिलेगी। आटा, दाल या नमक और रोजमर्रा के सामान की महंगाई पर कोई असर नहीं पड़ने वाला।’
लखनऊ: जनरल डिब्बा चढ़ने लायक नहीं, स्लीपर भी ‘कैटल क्लास’ बना
पहले अलग रेल बजट आता था, लेकिन अब आम बजट में ही इसके ऐलान कर दिए जाते हैं। रेलवे औसतन हर रोज 2.5 करोड़ लोगों को सफर कराता है। ऐसे में हमने रेल से रोज यात्रा करने वाले यात्रियों से बजट पर सवाल किए। इसके लिए हम पहुंचे UP की राजधानी लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन।
यहां हमारी मुलाकात मोहम्मद अशरफ खान से हुई। वे मेरठ से सफर कर शादी में शामिल होने के लिए लखनऊ आए हैं। सरकारी नौकरी से रिटायर्ड हैं। बजट के सवाल पर कहते हैं- ‘ट्रेन से हर महीने 2-3 बार सफर करना हो ही जाता है। जनरल क्लास चढ़ने के लायक ही नहीं। स्लीपर क्लास कैटल क्लास है। जानवरों वाला क्लास है। रिजर्वेशन करवाकर बैठा पैसेंजर भी टॉयलेट तक नहीं जा सकता। लोग घुस आते हैं, रोकने वाला कोई नहीं। लोग भी क्या करें, ट्रेनें कम हो गई हैं। हर कोई तो टैक्सी से नहीं चल सकता।’
आगे कहते हैं- ‘हमारे जैसे आदमी के लिए सिर्फ वादे और नारे होते हैं। हम तो उसी में खुश हो जाएंगे कि ट्रेन राइट टाइम चल जाए और टाइम से पहुंचा दे। आज भी ट्रेन आउटर पर घंटों खड़ी रहती है, जब से पैदा हुए यही देख रहे हैं।’
स्टेशन पर ही हमारी मुलाकात देवेंद्र से होती है। देवेंद्र यूट्यूबर हैं और फूड ब्लॉगिंग करते हैं। महीने में कई बार ट्रेन से ट्रेवल करते हैं। देवेंद्र कहते हैं- ’ट्रेन में सफाई न होना सबसे बड़ी दिक्कत है। जनरल, स्लीपर और थर्ड AC में तो आप वॉशरूम जा ही नहीं सकते। जिन ट्रेनों में जनरल डिब्बे नहीं होते, लोग स्लीपर-AC में घुस आते हैं। आम लोग तो जनरल में ही सफर करेंगे, सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए। मोबाइल कितना जरूरी है, लेकिन AC के अलावा कहीं उसे चार्ज करने की सुविधा नहीं।’
बलिया से लखनऊ आए मनीष और उन्नाव से रोजाना लखनऊ आने वाले मुजाहिद अंसारी भी स्टेशन पर बैठे हैं। कहते हैं- ‘वेटिंग लिस्ट कंफर्म नहीं होती है। तत्काल इतना महंगा है कि आम आदमी कैसे ले। किराया तो बढ़ रहा है, लेकिन सुविधाएं कम हो रही हैं।’
दिल्ली-NCR: अब तो अपने घर की उम्मीद नहीं, रेंट देना ही मुश्किल हुआ
दिल्ली के मयूर विहार में पकौड़े की दुकान लगाने वाले रोहताश यादव ग्राहकों के इंतजार में हैं। बजट के सवाल पर कहते हैं, ‘मुझे बजट की ज्यादा समझ नहीं, सरकार ने अच्छा ही किया होगा। बस महंगाई पर कुछ कर दे, नमक से लेकर आटा, बेसन, गैस सब महंगा हो गया है। पेट पालना ही मुश्किल हो गया है।’
रोहताश अपने परिवार के साथ नोएडा से सटे न्यू अशोक नगर इलाके में किराए के मकान में रहते हैं। कहते हैं, ‘सारा पैसा किराए में चला जाता है। घर है ही नहीं, न ही उम्मीद है कि कभी हो पाएगा। महंगाई देखकर तो लगता है आगे कैसे जिएंगे।’
रोहताश के पास रमेश हाथ-रिक्शा लेकर खड़े हैं। रमेश बिहार से आए थे और अब मयूर विहार में रिक्शा चलाते हैं। बजट की बात सुनकर कहते हैं- ‘पिछले साल तो मुफ्त राशन मिल रहा था। पत्नी की मौत हो गई, तो अब वो भी नहीं मिल रहा। राशन कार्ड बिहार का है। अंगूठे का छाप नहीं आता है, इस वजह से राशन कार्ड आधार से नहीं जुड़ा पाया। दिल्ली में तो डीलर राशन देता ही नहीं, भगा देता है।’
रमेश आगे कहते हैं, ‘पहले आराम से तीन-चार सौ रुपए कमा लेता था। अब दिनभर में दो सौ-ढाई सौ भी नहीं कमा पाता। तीन हजार कमरे का किराया है। क्या खाएं, कैसे बच्चे पालें?’
बढ़ते रेंट और महंगाई के अलावा बीते कई साल से दिल्ली में दीवाली के आस-पास पटाखों और पराली से स्मॉग की समस्या बढ़ती जा रही है। गाजियाबाद दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में टॉप पर है। अनिल जैसे दिल्ली के लोगों को उम्मीद थी कि सरकार प्रदूषण को रोकने के लिए भी बजट में कोई प्रावधान करेगी। कुछ नजर तो आया नहीं।
नोएडा में अपने परिवार के साथ किराए के घर में रहने वाली अमृता कहती हैं, ‘हम किराए पर रहते हैं, सैलरी पहले से ही कम है। पूरी सैलरी किराए में चली जाती है। खाने-पीने से भी ज्यादा रेंट में चला जाता है। सरकार को किराए पर रहने वाले लोगों को कुछ राहत देनी चाहिए।’
महाराष्ट्र: कपास का भाव पहले 10 हजार था, अब 8 हजार हो गया
किसानों को भी इस बजट से काफी उम्मीदें थीं। किसान लगातार MSP के लिए आंदोलन कर रहे हैं। हम महाराष्ट्र के जलगांव पहुंचे, यहां हम कपास की खेती करने वाले विकास पाटिल से मिले। बजट के सवाल पर कहा- ‘किसानों के लिए इसमें कुछ भी नहीं। जलगांव में सबसे ज्यादा कापूस (कॉटन) की खेती होती है। पिछले साल कपास का भाव 10 हजार रुपए प्रति क्विंटल था और आज भाव 8 हजार रुपए है। अब बताइए अगले साल कैसे बुवाई करेंगे।’
जलगांव में ही हमारी मुलाकात 30 साल से कपास की खेती कर रहे संतलाल यादव से हुई। संतलाल भी बजट से खुश नहीं हैं, कहते हैं- ‘हम देश को कपड़ा पहनाते हैं, कपास का रेट 4000 कम हो गया है। सोचा था सरकार दाम बढ़ाएगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। केंद्र और राज्य में BJP की सरकार है, फिर भी किसानों की नहीं सुनी जा रही। पहले ही सूखे की मार से कपास की फसल बर्बाद हुई है।’
हालांकि सरकार ने बजट में कहा है कि कपास किसानों के लिए पब्लिक प्राइवेट भागीदारी (पीपीपी) के जरिए क्लस्टर आधारित और वैल्यू चेन सिस्टम अपनाएंगे। किसानों, राज्य और इंडस्ट्री की मदद से इनपुट सप्लाई एक्सटेंशन सर्विस और मार्केट लिंक बनाएंगे।
भोपाल: सरकारी हॉस्पिटल बेहतर करने पर बात होती, तो अच्छा होता
राकेश दीवान भोपाल में रहते हैं। सोशल वर्कर हैं। उन्हें सरकारी हॉस्पिटलों में डॉक्टर न होने से शिकायत है। डॉक्टर ही नहीं होंगे तो इलाज तो दूर की कौड़ी है।
बजट के सवाल पर वे कहते हैं- ‘सबसे ज्यादा खर्च हमारा हेल्थ पर होता है। हाल ही में भाई के इलाज पर काफी खर्च हुआ। उम्मीद थी कि इस बजट में कुछ मिलेगा। मैं ये नहीं चाह रहा कि कुछ पैसे मिल जाएं या आयुष्मान योजना का पैसा बढ़ जाए, लेकिन मेडिकल फैसिलिटी तो मिले। उसे प्राइवेट सेक्टर से बाहर कर पब्लिक सेक्टर में डालें। सरकारी हॉस्पिटल को ठीक से तैयार करें। तब लोग सस्ती कीमतों पर इलाज करा पाएंगे।
राकेश दीवान आगे कहते हैं- ‘दोस्त के पिता को हार्ट अटैक हुआ था। उनका इलाज भोपाल एम्स में कराना चाहते थे। वहां गए तो पता चला कि कार्डियोलॉजिस्ट ही नहीं है। डॉक्टर ही नहीं हैं, इलाज कौन करेगा। फिर हमीदिया हॉस्पिटल गए। वहां पता चला कि एनिस्थीसिया वाले नहीं है, एंजियोग्राफी नहीं होगी। आखिर में प्राइवेट हॉस्पिटल ही ले जाना पड़ा। बजट में ऐसा कर देते कि हर अस्पताल में डॉक्टर होना जरूरी हो जाता।’
भोपाल में ही रहने वाले विलास आफ्ले रेलवे से रिटायर्ड हैं। उनकी उम्र 57 साल है। शुगर, बीपी, उम्र के साथ लगने वाली प्रोस्टेट की प्रॉब्लम है। कहते हैं- ‘दवाइयों पर बहुत खर्च होता है। परिवार में पत्नी और मां हैं। 4-5 हजार रुपए महीने में खर्च हो जाते हैं। एक कंपनी जो दवा 50 रुपए की दे रही है, उसी तरह की दवा दूसरी कंपनी 200 रुपए में दे रही है। कोई 10% डिस्काउंट दे रहा है, कोई 15% दे रहा है। इस पर कोई रेगुलेटरी अथॉरिटी होनी चाहिए। इस बारे में चर्चा भी नहीं है। इसलिए इस बजट से नाखुश हूं।’
इनपुट: दिल्ली से पूनम कौशल, महाराष्ट्र से आशीष राय, यूपी से रवि श्रीवास्तव, बिहार से शंभू नाथ और मध्यप्रदेश से अजीत पंवार
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आम बजट की घोषणाओं के तहत अब महिलाओं को 2 लाख रुपए तक की बचत पर 7.5% का ब्याज मिलेगा। 157 नए नर्सिंग कॉलेज खोलने की घोषणा हुई। हालांकि महिलाओं की पहली पसंद ‘गहने’ महंगे हो गए। सोने और चांदी के आयात पर टैक्स बढ़ा दिया गया है।
दूसरी ओर, पति, बेटे या भाई की सिगरेट की लत से परेशान महिलाओं के लिए ये बजट खुशखबरी लेकर आया है। सिगरेट पर टैक्स बढ़ा दिया गया है। इसके अलावा साइकिल और स्कूटी भी सस्ती होंगी। ऐसे में 2023 के बजट के 23 महत्वपूर्ण बातें जान लें जो आपके घर-परिवार, किचन और जेब पर सीधा असर डाल सकती हैं- पढ़िए पूरी खबर...