पाकिस्तान सरकार और TTP (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) के बीच सीजफायर खत्म होने का असर नजर आने लगा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, TTP ने अफगानिस्तान की बॉर्डर से सटे खैबर पख्तूख्वा में एक पाकिस्तानी सैनिक का कत्ल किया। इसके बाद उसका शव पेड़ पर लटका दिया। डेड बॉडी के साथ एक धमकी भरी चिट्ठी भी लगाई। इसमें स्थानीय लोगों से कहा गया था कि कोई भी मरने वाले के जनाजे में शिरकत न करे, वरना अंजाम बुरा होगा।
फौज और सरकार ने चुप्पी साधी
मारे गए पाकिस्तानी फौजी का नाम रहमान जमान बताया गया है। अफगानिस्तान के जर्नलिस्ट सुहैब जुबेरी ने सोशल मीडिया पर तालिबान क्रूरता की जानकारी दी है। कुछ और लोगों ने भी इस बारे में सोशल मीडिया पर ही जानकारी दी है। हैरानी की बात यह है कि पाकिस्तान फौज या सरकार की तरफ से इस बारे में अब तक कोई बयान जारी नहीं किया गया है।
सुहैब के मुताबिक- फौजी रहमान का सिर काटने की घटना बन्नू जिले के जानी खेल इलाके में हुई। बाद में उसका सिर बाजार में एक पेड़ से लटका दिया गया। शव के साथ स्थानीय पश्तो भाषा में लिखी एक चिट्ठी भी थी। इसमें लिखा था कि कोई भी व्यक्ति मारे गए सैनिक के जनाजे में शिरकत न करे। वरना इसका अंजाम बुरा होगा।
यह तस्वीर मलाला यूसुफजई के पिता जियाउद्दीन ने शेयर की है। जिया के मुताबिक- तालिबान ने इस बच्ची के पिता और भाई को मार डाला।
मलाला के पिता ने कहा- एक परिवार को भी मार डाला
नोबेल पीस प्राइज विनर पाकिस्तान की एक्टिविस्ट मलाला यूसुफजई के पिता जियाउद्दीन ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर इसी इलाके की एक और घटना के बारे में जानकारी दी है।
जियाउद्दीन के मुताबिक- सोमवार देर रात बन्नू जिले के जानी खेल एरिया के एक घर में TTP के आतंकी घुसे। यहां उन्होंने रहमानउल्लाह और उनके बेटे शाहिद की गोली मारकर हत्या कर दी। रहमानउल्लाह का शव भी पेड़ से लटका दिया गया। इस परिवार में सिर्फ एक 10 साल की बच्ची ही बची है। जियाउद्दीन ने उसका फोटो भी शेयर किया है।
इमरान और शाहबाज दोनों फेल
- खैबर पख्तूनख्वा में 9 साल से इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) की सरकार है। इस राज्य में लॉ एंड ऑर्डर के हालात इस कदर खराब हैं कि तालिबान पाकिस्तान यानी TTP यहां कारोबारियों से हफ्ता वसूली करता है। सरकार में तालिबान के मुखबिर मौजूद हैं। ये फौज या पुलिस के किसी भी ऑपरेशन की जानकारी पहले ही TTP को दे देते हैं।
- पाकिस्तान की शाहबाज शरीफ सरकार ने पिछले हफ्ते विदेश राज्यमंत्री हिना रब्बानी खार को अफगानिस्तान दौरे पर भेजा था। खार ने तालिबान हुकूमत से अपील में कहा था कि वो TTP को पाकिस्तान में हमले करने से रोकें। हिना के पाकिस्तान लौटने के चंद घंटे बाद ही काबुल में पाकिस्तान की ऐंबैसी पर हमला हो गया था। इसके बाद पाकिस्तान में सवाल उठ रहे हैं कि सरकार और फौज दोनों TTP को रोकने में नाकाम हो चुके हैं।
क्या है TTP की सच्चाई
- साल 2002 में अमेरिकी सेना ने 9/11 आतंकी हमले का बदला लेने अफगानिस्तान में धावा बोलती है। अफगानिस्तान में अमेरिकी कार्रवाई के डर से कई आतंकी पाकिस्तान के कबाइली इलाके में छिप जाते हैं। इसी दौरान पाकिस्तान की सेना इस्लामाबाद की लाल मस्जिद को एक कट्टरपंथी प्रचारक और आतंकियों के कब्जे से मुक्त कराती है। हालांकि कट्टरपंथी प्रचारक को कभी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI का करीबी माना जाता था, लेकिन इस घटना के बाद स्वात घाटी में पाकिस्तानी आर्मी की खिलाफत होने लगी। इससे कबाइली इलाकों में कई विद्रोही गुट पनपने लगे।
- ऐसे में दिसंबर 2007 को बेतुल्लाह मेहसूद की अगुवाई में 13 गुटों ने एक तहरीक यानी अभियान में शामिल होने का फैसला किया, लिहाजा संगठन का नाम तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान रखा गया। शॉर्ट में इसे TTP या फिर पाकिस्तानी तालिबान भी कहा जाता है। आतंकवाद की फैक्ट्री कहे जाने वाले पाकिस्तान में अब तक जितने भी आतंकी संगठन अस्तित्व में आए हैं, उनमें तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान सबसे खतरनाक माना जाता है। खास बात यह है कि इस संगठन के पाकिस्तान फौज में हजारों समर्थक हैं और यही पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
- कहा तो यहां तक जाता है कि अमेरिका ने पाकिस्तान को सीधे शब्दों में बता दिया है कि फौज में TTP समर्थक होने के मायने ये हैं कि इन आतंकियों के जद में पाकिस्तान के एटमी हथियार भी आ सकते हैं।