बांसवाड़ा में प्रयाग के नाम से प्रसिद्ध बेणेश्ववर धाम कई मान्यताओं और रहस्य से जुड़ा है। माना जाता है कि यहां के आबूदर्रा (सोम, माही और जाखम नदी का संगम) कई रहस्य समेटे हुए है। इसी रहस्य को जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम ने SDRF के जवानों के साथ मिलकर 70 फीट की गहराई में 2 दिन तक गुफा और चट्टानों के बीच सर्च किया। इस दौरान जो तस्वीरें सामने आई वो चौंकाने वाली थी।
स्कूबा डाइविंग के साथ भास्कर के साथ एसडीआरएफ जवान, भास्कर के दो रिपोर्टर व फोटोग्राफर ऐसी तस्वीर सामने लेकर आए जो आपने कभी नहीं देखी। टीम खुद चौक गई जब उन्हें गहराई में संत मावजी जैसी दिखने वाली प्रतिमा और शिवलिंग के साथ कई पौराणिक महत्व के स्ट्रक्चर दिखाई दिए। ये पहली बार मौका है जब संगम स्थल के तलहटी की तस्वीरें सामने आई है। । बताते हैं कि आबूदर्रा राजा बली की यज्ञ भूमि हैं। भगवान ने जहां पहला पग धरा, वहीं आबूदर्रा है। जनश्रुति है कि इसके भीतर संत मावजी का एक महल है, जाे संत मावजी का निज धाम है।
आबूदर्रा का रहस्यजानने के लिए 70 फीट नीचे तक उतरे SDRF के जवान।
लाेग समझे काेई डूब गया, लगा मजमा
सर्च अभियान के दाैरान SDRF के जवानों काे नाव लेकर पानी में गोते लगाते देख लाेग समझे कि यहां कोई डूब गया है। थाेड़ी ही देर में घाट पर मजमा लग गया, लेकिन जैसे ही लाेगाें काे पता चला कि दैनिक भास्कर की ओर से पानी के भीतर खोज कराई जा रही है ताे सभी ने इसे नेक कार्य बताते हुए सराहा।
गहराई में संत मावजी जैसी दिखने वाली प्रतिमा मिली।
पानी में गिर पड़ा कैमरा, ऑक्सीजन सिलेंडर खत्म
पानी में सर्चिंग के दाैरान गोताखोर एक कैमरा अपने हाथ में लेकर और दूसरा सिर पर फिट करके गया। कुछ तस्वीरें क्लिक करने के बाद जब लौटा ताे सिर लगाया कैमरा नहीं था। वह भीतर गर्त में ही गिर गया था। गोताखोर वापस गोता लगाने लगा लेकिन पता चला कि ऑक्सीजन कम बची थी। बांसवाड़ा से सिलेंडर रीफिलिंग हाेने के बाद गोताखोर रमेशचंद्र ने गोता लगाया और तीसरी बार के प्रयास में कैमरा लेकर ऊपर आ गए। दाे दिन तक चले सर्च ऑपरेशन में गोताखोर ने 5 घंटे से भी ज्यादा समय पानी में बिताया।
आबूदर्रा में पौराणिक महत्व से जुड़ी प्रतिमा मिली। पहली बार ऐसी रहस्यमयी जगह सामने आई।
26 सालाें में 900 शव निकाल चुका हूं, ऐसी रहस्यमयी जगह पहली बार देखी
एसडीआरएफ के गोताखोर रमेश चंद्र ने बताया कि सभी हिस्सों की गहराई अलग-अलग है। कहीं 10 फीट ताे कहीं 20 फीट। किसी-किसी जगह 30 से 50 फीट और इससे भी ज्यादा। उन्होंने बताया कि 26 सालाें में 900 के करीब शव, वाहन और मूर्तियां तलाश चुका हूं, लेकिन आबूदर्रा जैसी रहस्यमयी जगह पहली बार देखी है। मैं इसे रहस्यमयी इसलिए कह रहा हूं क्योंकि, इसमें हर गोते में नया मंजर दिखाई देता था।
आाबूदर्रा में अलग-अलग हिस्सों की गहराई में यह प्रतिमा मिली।
बेणेश्वर धाम और आबूदर्रा ही क्यों ?
- बेणेश्वर धाम काे बैण वृंदावन धाम के नाम से भी जाना जाता है, जहां संत मावजी महाराज ने योग साधना की। इस बात का राजस्थान सरकार द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित गजेटियर (सन् 1974) में भी प्रमाण है।
- धाम पर सोम , माही और जाखम नदियों का संगम स्थल है। यह त्रिवेणी संगम के नाम भी जाना जाता है। संगम स्थल पर अलग-अलग घाट बने हुए है। इनमें से एक घाट आबूदर्रा नाम से जाना जाता है। इसके नजदीक राधा कुंड है।
- यहां माघ पूर्णिमा पर मेला भरता है। जिसमें लाखों भक्त शामिल होते हैं। यह आदिवासियों के कुंभ के नाम से भी जाना जाता है।
- त्रिवेणी संगम पर अस्थि विसर्जन की भी परंपरा रही है। इस लिहाज से यहां काफी पूजन कार्य होते हैं।
इन रहस्यमयी मूर्तियों को सामने लाने के लिए 2 दिन तक सर्च ऑपरेशन चलाया गया।
गोताखोर ने करीब 40 बार गोते लगाए। तब जाकर ये तस्वीरें सामने आई।
संगम स्थल पर शिविलिंग जैसी प्रतिमाएं भी मिली।
दाे दिन तक चले सर्च ऑपरेशन में गोताखोर ने 5 घंटे से भी ज्यादा समय पानी में बिताया।
रिपोर्ट: चिराग द्विवेदी/ प्रियंक भट्ट
वीडियो व फोटो- भरत कंसारा