राजस्थान के तलवाड़ा की खदानों के बीच बना भीमकुंड झरना बारिश में बहने लगा है। तलवाड़ा को दुनिया भर में बेशकीमती पत्थरों के लिए पहचाना जाता है। पथरीले पहाड़ों के बीच ये झरना करीब 200 फीट ऊंचाई से गिरता है। झरने का पानी जिस कुंड में गिरता है वो गर्मी में तपती चट्टानों के बीच भी नहीं सूखता। जो चट्टानों को चीरकर बाहर निकलता है। इन चट्टानों के बीच ही एक गुफा भी है, जो करीब 40 किलोमीटर लंबी बताई जाती है।
बांसवाड़ा मुख्यालय के तलवाड़ा कस्बे से करीब 5 किलोमीटर दूर भीमकुंड है। मान्यता है कि इस स्थान पर पांडवों ने अज्ञातवास बिताया था। तब पत्थरों के बीच गुजर बसर करने के लिए भीम ने गदा मारी थी। इस जगह पातालतोड़ कुआं बन गया था। कई मीटर गहरे इस गड्ढे में बरसात के दिनों के बाद पानी स्वत: ही नीचे से ऊपर आता है। यहां एक मंदिर भी है, जिसके दर्शन के लिए लोग आते रहते हैं। बारिश में भीमकुंड का झरना और भी खूबसूरत हो जाता है। इस बार बारिश कम होने के साथ ही झरने में पानी की आवक भी निरंतर कम होती जा रही है।
बांसवाड़ा में 40 घंटे लगातार हुई बारिश के बीच बहने लगा भीमकुंड का झरना।
भीमकुंड का झरना जमीन से करीब 200 फीट ऊपर से गिरता है। पहाड़ी से आने वाला प्राकृतिक पानी चट्टानों से टकराकर नीचे गिरता है। जिससे नुकीली चट्टानें चिकनी हो गई हैं। विशेष मौकों पर धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। लोग पिकनिक मनाने भी आते हैं।
चट्टानों के बीच खड़े हैं पेड़
बारिश के दिनों के अलावा भीमकुंड मंदिर के अधिकांश हिस्से में पत्थर दिखाई देते हैं। पत्थरों की बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच पेड़ों का बड़ा होना भी लोगों को अचंभित करता है। हैरान करने वाली बात ये है कि मंदिर के ऊपर की ओर खड़े वृक्ष पूरी तरह से ठोस चट्टानों पर भी हरे-भरे हैं।
भीमकुंड का नाम, लेकिन लोगों को बताने वाला इतिहास नहीं है।
सुरक्षा के इंतजाम नहीं
भीमकुंड के झरने और कुंड को लेकर सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं। इस कुंड के चारों ओर रैलिंग या बाउंड्री नहीं है। सीढ़ी नुमा कुंड के किनारों पर चिकनी काई जमी है। लोग पानी के बीच पहली और दूसरी सीढ़ी में उतरकर खुद को पवित्र करने के लिए मंदिर जाने से पहले हाथ-पैर धोते हैं।
चट्टानों बीच निकले पेड़।
ऐसे जा सकते हैं कुंड तक
यहां जाने के लिए मात्र एक ही रास्ता है। जिला मुख्यालय से डूंगरपुर रोड पर आते हुए 12 किलोमीटर आगे तलवाड़ा कस्बा है। यहां से मां त्रिपुर सुंदरी को जाने वाले मार्ग पर तालाब है। करीब एक किलोमीटर आगे दाहिनी ओर पर एक संकरी पक्की सड़क मुड़ती है। करीब एक से डेढ़ किलोमीटर आगे जाकर दो रास्ते कटते हैं, लेकिन हमें सीधे रास्ते पर ही आगे बढ़ना होता है। जिससे भीमकुंड पहुंच जाएंगे। दिन के समय स्थानीय लोग मिल जाते हैं, लेकिन रात में इस मार्ग से गुजरना सुरक्षित नहीं है।
बांसवाड़ा में बारिश से हरी-भरी हुई वादियां।
गुफा पहुंचाती है बेणेश्वर धाम तक
भीमकुंड के लिए कहते हैं कि यहां मंदिर की तरफ मुंह करके खड़े होने पर बाएं हाथ में पत्थरों की दीवार में एक गुफा का दरवाजा है। स्थानीय लोग बताते हैं कि इस गुफा का कनेक्शन यहां से सीधे 40 km दूर बेणेश्वर धाम से है। कुछ लोगों ने कुछ दूरी तक इसके भीतर जाने की भी कोशिश की, लेकिन दम घुटने के कारण वापस बाहर आ गए। ऐसे ही मान्यता है कि भीमकुंड एक तरह से पातालतोड़ कुआं है। स्थानीय लोग कहते हैं पानी के भीतर भी पत्थरों के बीच गुफा है, जो सीधे घोटियां आंबा (तीर्थ स्थल) को निकलती है।
बरसात के बाद भीमकुंड के आगे बने दूसरे कम गहरे कुंड में यूं रहते हैं कमल।
यहां निकलता है बेशकीमती मार्बल और लाइमस्टोन
बांसवाड़ा में सबसे ज्यादा माइनिंग तलवाड़ा में है। यहां से बेशकीमती मार्बल और लाइमस्टोन निकलता है। जो विदेशों तक जाता है। साथ ही बांसवाड़ा में जितने भी मंदिर हैं। सभी की मुर्ति की तलवाड़ा में ही तैयार की गई है।
बेणेश्वर तक जाने वाली गुफा का दरवाजा।
कैमरा पर्सन: भरत कंसारा
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