अमेठी, जहां से संजय गांधी ने अपनी चुनावी राजनीति की शुरुआत की और पहला ही चुनाव हार गए। इसी सीट की वजह से इंदिरा गांधी ने अपनी बहू मेनका को घर से निकाल दिया। ये सीट 5 दशक तक गांधी परिवार के सदस्यों का लॉन्चिंग पैड रही। 2019 में राहुल गांधी यहां से चुनाव हार गए। 25 साल में पहली बार अमेठी सीट पर गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ रहा है।
रायबरेली, जहां से जवाहर लाल नेहरू ने आजादी के बाद अपने दामाद फिरोज गांधी को चुनाव लड़वाया। इसी सीट पर इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द होने के बाद उन्होंने देश में इमरजेंसी लगा दी थी। सोनिया गांधी यहां से लगातार 20 साल सांसद रहीं। अब रायबरेली सीट से राहुल गांधी ने नामांकन किया है।
मंडे मेगा स्टोरी में अमेठी और रायबरेली की चुनावी राजनीति से जुड़े गांधी परिवार के सुने-अनसुने किस्से…
1857 की क्रांति को कुचलने के लिए जब अंग्रेज सेना दिल्ली में घुसी तो उस वक्त मोतीलाल नेहरू के पिता गंगाधर नेहरू शहर के कोतवाल थे। अंग्रेजों के खौफ से गंगाधर नेहरू परिवार समेत दिल्ली छोड़ आगरा जाकर बस गए।
मार्च 1861 में महज 34 साल की उम्र में गंगाधार नेहरू का निधन हो गया। उसके तीन महीने बाद 6 मई 1861 को मोतीलाल नेहरू पैदा हुए। मोतीलाल की परवरिश उनके बड़े भाई नंदलाल नेहरू ने की। नंदलाल पहले राजस्थान की खेतड़ी रियासत में दीवान थे और बाद में आगरा हाईकोर्ट में वकालत करने लगे।
अंग्रेजों ने हाईकोर्ट आगरा से इलाहाबाद शिफ्ट किया तो नेहरू परिवार भी इलाहाबाद में बस गया। यहीं पर मोतीलाल नेहरू ने भी वकालत शुरू कर दी। नेहरू-गांधी परिवार के अमेठी से रिश्ते की नींव इसी दौर में पड़ी।
अमेठी की वरिष्ठ पत्रकार और वकील शीतला मिश्रा बताती हैं कि गांधी परिवार का अमेठी से रिश्ता तब से है जब अमेठी के राजा रणंजय सिंह का राज्य ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त किया जा रहा था और उन्होंने मोतीलाल नेहरू से उनके लिए मुकदमा लड़ने को कहा था।
अमेठी रियासत के राजा रणंजय सिंह के साथ प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू
लेखक अनंत विजय अपनी किताब ‘डायनेस्टी टु डेमोक्रेसी’ में जिक्र करते हैं कि पंडित मोतीलाल नेहरू उस दौर के चर्चित वकीलों में एक थे। मोतीलाल नेहरू ने 1910 के केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषद चुनाव भी लड़ा था।
मोतीलाल नेहरू की तरह ही 1926 में जवाहर लाल नेहरू ने फैजाबाद-मछलीशहर संयुक्त सीट से चुनाव लड़ा। इसके बाद नेहरू ने अमेठी रियासत को ही अपनी राजनीति का केंद्र बनाया। यहीं से चुनावों का संचालन किया। कहा जाता है कि वो राजा रणंजय सिंह के पारिवारिक वकील भी थे।
1947 में देश आजाद हुआ तो 543 रियासतों की तरह अमेठी रियासत का भी देश में विलय हो गया। नेहरू ने उस समय रियासत के राजा रणंजय सिंह को मंत्री बनने का प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। हालांकि, बाद में वो अमेठी की राजनीति में सक्रिय रहे और नेहरू-गांधी परिवार से उनके रिश्ते मजबूत होते चले गए।
अमेठी में हार से शुरू हुआ गांधी परिवार की जीत का सिलसिला
अमेठी लोकसभा सीट 1967 में अस्तिव में आई। शुरुआत के दो चुनाव यानी 1967 और 1971 में यहां से कांग्रेस के विद्याधर बाजपेयी ने जीत दर्ज की। इमरजेंसी के बाद संजय गांधी की लॉन्चिंग के लिए कांग्रेस को सुरक्षित सीट की तलाश थी। 1977 में संजय गांधी ने पहली बार अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ा। इमरजेंसी के दौरान जबरन नसबंदी कराने में उनकी भूमिका होने के कारण उनका स्थानीय लोगों ने विरोध किया। इसी वजह से जनता पार्टी के रवींद्र प्रताप सिंह से उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
इमरजेंसी खत्म होने के तुरंत बाद 1977 में लोकसभा चुनाव हुए। अमेठी सीट से संजय गांधी ने चुनाव लड़ा। चुनाव प्रचार की तस्वीर।
हालांकि, तीन साल बाद 1980 में हुए चुनाव में संजय गांधी ने करीब एक लाख 87 हजार वोट से रवींद्र प्रताप सिंह को हराकर हिसाब बराबर कर दिया। अमेठी और गांधी परिवार के लंबे रिश्ते की ये शुरुआत थी। हालांकि, संजय गांधी का अमेठी में कार्यकाल ज्यादा लंबा नहीं रहा।
संजय की मृत्यु के बाद इंदिरा ने राजीव गांधी को अमेठी भेजा
23 जून 1980 को एक विमान दुर्घटना में संजय गांधी के निधन की खबर आई। उस समय उनके बड़े भाई राजीव गांधी लंदन में थे। खबर पहुंचते ही राजीव भारत वापस लौटे और एक सप्ताह के भीतर ही राजनीतिक में शामिल होने का फैसला लिया।
1981 के अमेठी उपचुनाव में राजीव गांधी ने 2 लाख से ज्यादा वोटों के साथ जीत हासिल की। इस तस्वीर में राजीव के साथ उनकी पत्नी सोनिया गांधी भी मौजूद हैं।
4 मई 1981 को इंदिरा गांधी ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में राजीव का नाम अमेठी से कैंडिडेट के तौर पर प्रस्तावित किया। बैठक में मौजूद सभी नेताओं ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। इसके बाद राजीव गांधी ने अमेठी से उपचुनाव लड़ा और अपने प्रतिद्वंद्वी लोक दल प्रमुख शरद यादव को 2.5 लाख वोटों से हराया।
अमेठी से राजीव को उतारने पर भड़क गईं संजय की पत्नी मेनका गांधी
राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई अपनी किताब '24 अकबर रोड: ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ द पीपुल बिहाइंड द फॉल एंड राइज ऑफ द कांग्रेस' में लिखते हैं कि 1981 में अमेठी उपचुनाव में जब राजीव गांधी ने नामांकन दाखिल किया तो मेनका गांधी ने उन्हें हराने की कोशिश की थी।
किदवई की किताब के मुताबिक, गांधी परिवार के करीबी रहे एक पूर्व राजनयिक मोहम्मद यूनुस ने कहा था कि उस समय मेनका की उम्र 25 साल भी नहीं थी। वो चुनाव नहीं लड़ सकती थीं। ऐसे में मेनका चाहती थीं कि इंदिरा संविधान में संशोधन कर चुनाव लड़ने की न्यूनतम उम्र कम करें, लेकिन इंदिरा गांधी ने इससे साफ इनकार कर दिया। मेनका को लगा कि उनके दिवंगत पति की राजनीतिक विरासत अमेठी पर कब्जा किया जा रहा है।
गांधी परिवार की फैमिली फोटो। इसमें इंदिरा गांधी के साथ उनके दोनों बेटे राजीव-संजय, दोनों बहुएं सोनिया-मेनका और पोते-पोती राहुल, प्रियंका दिख रहे हैं।
इस घटनाक्रम के बीच 28 मार्च, 1982 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अचानक लंदन से भारत पहुंचीं। स्पेन के लेखक जेवियर मोरो अपनी किताब 'द रेड साड़ी' में लिखते हैं कि वो संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी को सबक सिखाने के इरादे से भारत लौटी थीं। दरअसल, इंदिरा गांधी अकबर अहमद द्वारा आयोजित लखनऊ कन्वेंशन में मेनका के शिरकत करने से नाराज थीं।
मोरो की किताब के अनुसार, इंदिरा के घर पहुंचते ही मेनका ने उनसे बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। इसके बाद मेनका ने खुद को कमरे में बंद कर लिया। उनका खाना भी हाउसहेल्प ने उनके कमरे में ही पहुंचा दिया। मेनका अपने कमरे से बाहर आकर सिटिंग रूम में बैठ गईं, वहां वो इंदिरा गांधी का इंतजार कर रही थीं।
इंदिरा ने मेनका से कहा- यह तुम्हारा नहीं, देश की प्रधानमंत्री का घर है
मोरो अपनी किताब में लिखते हैं, ‘कुछ देर बार इंदिरा वहां पहुंचीं, तो वो बहुत गुस्से में थीं। उनके साथ उनके गुरु धीरेंद्र ब्रह्मचारी और सेक्रेटरी धवन भी थे। तभी इंदिरा ने मेनका की तरफ उंगली उठाते हुए कहा, इस घर से तुरंत निकल जाओ। इंदिरा चिल्लाते हुए कहती हैं, मैंने तुमसे कहा था कि लखनऊ कन्वेंशन में नहीं जाना, लेकिन तुम्हें वही करना होता है जो तुम चाहती हो। तुम्हें क्या लगता है मुझे कुछ समझ नहीं आता। यहां से तुरंत निकल जाओ।’
मेनका ने अपनी बहन अंबिका को बुलाया और सामान समेटने लगीं। तभी एक बार फिर से इंदिरा का गुस्सा फूटा और कहा, कोई कुछ नहीं लेकर जाएगा। जवाब में अंबिका ने कहा कि वो कहीं नहीं जाएगी। ये उसका भी घर है। गुस्से में इंदिरा ने चिल्लाते हुए कहा, ये उसका नहीं बल्कि भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का घर है।
प्रधानमंत्री आवास से निकाले जाने के बाद मेनका गांधी अपने बेटे वरुण गांधी के साथ से बाहर निकलती हुईं।
मोरो लिखते हैं कि मेनका रात के करीब 11 बजे कच्ची नींद में सोए 2 साल के वरुण गांधी के साथ सफदरजंग रोड स्थित प्रधानमंत्री आवास से बाहर निकलने लगीं। घर के बाहर पैर रखा ही था कि कैमरों की फ्लैश लाइट आने लगी। बाहर मीडिया खड़ी थी और अगले दिन अखबारों में मेनका की कार में बैठी फोटो फ्रंट पेज पर छपी थी।
उपचुनाव में राजीव की जीत के बाद मेनका गांधी ने लगातार अमेठी का दौरा किया। 1984 में राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से चुनाव लड़ा। हालांकि, 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा की हत्या के बाद चीजें बदल गईं। दिसंबर में हुए चुनाव में कांग्रेस को सहानुभूति मिली। राजीव गांधी ने मेनका को अमेठी से 3.14 लाख वोटों से हरा दिया। उसके बाद मेनका कभी भी अमेठी से चुनाव नहीं लड़ीं, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने गांधी परिवार में दरार पैदा कर दी जो आज तक बनी हुई है।
राजीव के शासन में अमेठी में शुरू हुईं बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां और प्रोजेक्ट्स
राजीव गांधी ने अमेठी से 1989 और 1991 का चुनाव भी जीता था। उनके कार्यकाल में अमेठी में इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट और इंस्टीट्यूशन स्थापित किए गए। राजीव गांधी ने 1980 के दशक में जगदीशपुर इंडस्ट्रियल एस्टेट बनाया।
1982 में संजय गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल, 1983 में कोरवा में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड का एवियोनिक्स डिवीजन और 1984 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विमानन अकादमी स्थापित किया गया।
अमेठी की लखनऊ और वाराणसी से सड़क कनेक्टिविटी को बेहतर किया। साथ ही बंजर और क्षारीय भूमि को खेती के लिए रिवाइव किया गया। 21 मई 1991 को आतंकी समूह लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) द्वारा राजीव गांधी की हत्या कर दी गई।
सोनिया का पॉलिटिक्स में आने से इनकार, गैर-गांधी बने सांसद
राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी ने चुनावी राजनीति में आने से इनकार कर दिया। 1991 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने गैर-गांधी संतीश शर्मा को उतारा और जीते। उन्होंने 1996 में भी सीट बचाई, लेकिन दो साल बाद 1998 में BJP के संजय सिंह से चुनाव हार गए।
माना जाता है कि 1988 से ही कांग्रेस केंद्र और उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर थी। इसकी वजह से अमेठी में परियोजनाएं रुक गईं। इस वजह से राजीव गांधी और सोनिया गांधी के कार्यकाल के दौरान उद्योगों और अन्य काम-काज में गिरावट आई।
हालांकि, 1997 में सोनिया गांधी कांग्रेस में शामिल हुईं और अगले ही साल 1998 में पार्टी अध्यक्ष बन गईं। सोनिया 1999 में अमेठी से पहली बार चुनावी मैदान में उतरीं और 4.18 लाख वोटों के साथ चुनाव जीता।
बेटे राहुल को लॉन्च करने के लिए सोनिया अमेठी से रायबरेली शिफ्ट हुईं
2004 में UPA गठबंधन आने से कांग्रेस की केंद्र में वापसी हुई। तत्कालीन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेठी से पहली बार चुनाव लड़ा और 2,90,853 वोटों के साथ जीत हासिल की। उनका सीधा मुकाबला BJP और BSP कैंडिडेट से था।
राहुल ने अमेठी से अपना पहला लोकसभा चुनाव 2004 में लड़ा था। इसके बाद 2009 और फिर 2014 में फिर से चुने गए।
इसके अगले दो चुनाव में भी राहुल गांधी ने आसानी से जीत हासिल की। 2009 में राहुल गांधी 3 लाख वोटों के अंतर से जीते। 2014 में राहुल के खिलाफ स्मृति ईरानी ने चुनाव लड़ा और राहुल की जीत का अंतर घटकर 1.07 लाख रह गया।
राहुल गांधी के कार्यकाल के पहले 10 वर्षों के दौरान केंद्र में UPA की सरकार थी। वहीं इस दौरान उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (BSP) और कांग्रेस की सहयोगी समाजवादी पार्टी सत्ता में रही थी। इस दौरान अमेठी में राहुल ने कई परियोजनाओं की घोषणा की, लेकिन मंजूरी में देरी के कारण कई पूरी नहीं हो पाईं।
गांधी परिवार की पारंपरिक सीट पर 2019 में हारे राहुल गांधी
कांग्रेस को बड़ा झटका 2014 में लगा जब BJP की कैंडिडेट स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को कड़ी टक्कर दी। ईरानी करीब एक लाख वोटों से हारी थीं। हार का यह अंतर 2009 की 3.70 लाख वोटों की तुलना में काफी कम था।
2014 की हार के बाद भी स्मृति ने अमेठी का लगातार दौरा किया और काफी एक्टिव रहीं। यही वजह रही कि स्मृति ने 2019 में राहुल गांधी को उनके ही गढ़ अमेठी में करीब 55 हजार वोटों से हरा दिया। हार के बाद राहुल गांधी ने अमेठी सीट छोड़ दी और इस बार रायबरेली से नामांकन किया है।
नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान कांग्रेस ने BJP पर अमेठी में परियोजनाओं को बंद करने का आरोप लगाया था। कांग्रेस ने जानकारी दी कि अमेठी में राजीव गांधी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन की ब्रांच, फूड पार्क प्रोजेक्ट और डिस्कवरी पार्क 2014 से रुका हुआ था, जबकि हिंदुस्तान पेपर मिल को 2015 में अमेठी से बाहर शिफ्ट कर दिया गया था।
हालांकि, 2017 में UP चुनाव से पहले अमेठी को केंद्र से 702 करोड़ रुपए की परियोजनाओं की सौगात मिली। इसमें फूड प्रोसेसिंग यूनिट, कोल्ड चेन, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (IIIT), होटल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट और फुटवियर डिजाइन और डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (FDDI) और पेपर मिल शामिल थे।
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रायबरेली के वकील विजय विद्रोही के मुताबिक, रायबरेली ने ही कांग्रेस को पहली बार किसान, मजदूर और गरीबों की पार्टी बनाया था। दरअसल 7 जनवरी 1921 को मुंशीगंज गोलीकांड हुआ, जिसमें रायबरेली कूच कर रहे किसानों पर मुंशीगंज सई नदी तट के पास अंग्रेजों ने फायरिंग कर दी। नेहरू उसी समय रायबरेली आए थे और इस घटना के बाद उन्होंने रायबरेली को अपनी कर्मभूमि बना लिया।
आजादी के बाद नेहरू ने इलाहाबाद से जुड़ी फूलपुर सीट को चुनावी राजनीति के लिए चुना और रायबरेली से अपने दामाद फिरोज गांधी को चुनाव में उतारा। रायबरेली को इंदिरा का ससुराल तक कहा जाता है।
इंदिरा ने पति फिरोज के लिए रायबरेली में किया जमकर प्रचार-प्रसार
कांग्रेस के दिग्गज नेता रफी अहमद किदवई ने फिरोज गांधी से रायबरेली से चुनाव लड़ने का आग्रह किया था। स्वीडिश राइटर बर्टिल फाल्क ने अपनी किताब फिरोज: द फॉरगॉटन गांधी में लिखा है कि इंदिरा गांधी ने अपने पति फिरोज गांधी के लिए खूब प्रचार-प्रसार किया। इससे फिरोज गांधी को रायबरेली की जनता के साथ तालमेल बिठाने में मदद मिली। वोटर्स के बीच उत्साह का माहौल था। फिरोज गांधी चुनाव जीत गए।
रायबरेली में लोकसभा चुनाव के दौरान इंदिरा गांधी ने फिरोज गांधी के लिए प्रचार-प्रसार किया था।
फाल्क के मुताबिक, फिरोज गांधी के कार्यकाल के दौरान रायबरेली में सड़कों, जल-नहरों, मिल्क फैक्ट्रीज, स्कूल और एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स का विकास हुआ। 1957 में रायबरेली की जनता ने फिरोज गांधी को 1.62 लाख वोटों से दोबारा चुना। 1960 में उनके निधन के बाद कांग्रेस के आरपी सिंह ने 1960 उपचुनाव और बैजनाथ कुरील ने 1962 के आम चुनाव में सीट बरकरार रखी।
इंदिरा पर चुनावी धोखाधड़ी का आरोप और इमरजेंसी की नींव पड़ी
1967 में इंदिरा गांधी ने अपनी चुनावी राजनीति की शुरुआत करने के लिए रायबरेली सीट को चुना और 1.43 लाख वोटों से जीत दर्ज की। 1971 के चुनाव में भी इंदिरा करीब 2 लाख वोटों के साथ जीतीं। हालांकि, उनके प्रतिद्वंद्वी और समाजवादी नेता राज नारायण ने इंदिरा गांधी पर चुनावी धोखाधड़ी का आरोप लगाया।
12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनाव अभियान के दौरान राज्य की मशीनरी का उपयोग करने का दोषी ठहराया और 1971 का चुनाव अमान्य घोषित कर दिया। उनके अगले छह साल तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी।
उधर इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के बाद नेशनल सिक्योरिटी का हवाला देते हुए 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगा दी। इसके बाद उन्होंने संसद का सत्र बुलाया और चुनावी कानूनों में संशोधन करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया। साथ ही मामले को सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से भी हटा दिया।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 12 अप्रैल, 1976 को रायबरेली में अपनी 'पद यात्रा' के दौरान हलोर गांव से गुजर रही थीं। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी उनके दाहिनी की तरफ हैं।
दिसंबर 1975 में सुप्रीम कोर्ट ने संसद के 1971 चुनाव को वैध घोषित किए जाने के फैसले पर असहमति जताई, लेकिन इसके बाद भी चुनाव कानूनों में बदलाव को बरकरार रखा। इसकी बदौलत इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री पद पर बरकरार रहीं।
इमरजेंसी हटने के बाद इंदिरा गांधी की लोकप्रियता काफी कम हो गई। नतीजतन केंद्र में 30 सालों से चल रहा कांग्रेस का शासन समाप्त हो गया। इंदिरा गांधी खुद अपनी सीट रायबरेली करीब 55 हजार वोटों से हार गईं। यह इंदिरा की पहली और एकमात्र चुनावी हार थी। हालांकि, बाद में 1978 के उपचुनाव में चिकमंगलूर सीट से वो फिर से लोकसभा के लिए चुनी गईं।
इंदिरा गांधी ने छोड़ी रायबरेली, अरुण नेहरू को मिली सीट
1979 में जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद इंदिरा रायबरेली और मेडक दोनों सीटों से जीतीं। चूंकि एक ही सीट से सांसद रह सकते हैं इसलिए उन्होंने रायबरेली सीट को छोड़ दिया। इसके बाद गांधी-नेहरू परिवार के एक और सदस्य अरुण नेहरू (मोतीलाल नेहरू के बड़े भाई नंदलाल नेहरू के परपोते) के राजनीतिक करियर की शुरुआत रायबरेली से हुई। राजीव गांधी के करीबी अरुण नेहरू रायबरेली सीट से 1980 और 1984 में सांसद रहे।
1989 और 1991 के चुनाव में कांग्रेस की शीला कौल रायबरेली से जीतीं, जबकि BJP के अशोक सिंह ने 1996 और 1998 में ये सीट जीती। इन दोनों ही चुनाव में गांधी परिवार का कोई भी सदस्य चुनावी मैदान में नहीं था। 1999 में कांग्रेस के सतीश शर्मा ने BJP में शामिल हो चुके अरुण नेहरू को हराकर सीट जीती।
राहुल के लिए अमेठी सीट छोड़ रायबरेली से लड़ीं सोनिया
अमेठी को गांधी परिवार की पॉलिटिकल डेब्यू सीट भी कहा जाता है। संजय गांधी और राजीव गांधी की तरह राहुल गांधी के पॉलिटिकल करियर की शुरुआत भी अमेठी से ही हुई। 2004 में सोनिया गांधी ने राहुल गांधी के लिए अमेठी सीट छोड़ते हुए रायबरेली से लड़ने का फैसला लिया।
सोनिया गांधी करीब ढाई लाख वोट से विजयी हुईं। हालांकि, उन पर लाभ के पद पर रहने के आरोप लगने के बाद उन्होंने सांसद और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। फिर उसी वर्ष हुए उपचुनाव में सोनिया 4.17 लाख वोटों के भारी अंतर से दोबारा चुनी गईं। अगले तीन चुनाव में भी सोनिया गांधी रायबरेली सीट से जीतीं। अब उन्होंने राज्यसभा जाने का फैसला लिया है।
रायबरेली जीतने के लिए राहुल गांधी के सामने चुनौतियां भी कम नहीं
पिछले तीन लोकसभा चुनाव से रायबरेली सीट पर कांग्रेस का वोटिंग प्रतिशत लगातार कम हो रहा है…
- 2009 में कांग्रेस का वोटिंग प्रतिशत 72.2% रहा, जबकि BJP का मात्र 3.82% था।
- 2014 के चुनाव में कांग्रेस का वोटिंग प्रतिशत घटकर 63.8% और BJP का बढ़कर 21.1% हुआ।
- 2019 में रायबरेली सीट पर कांग्रेस का वोटिंग प्रतिशत 55.8% और BJP का 38.4% रहा।
2024 लोकसभा चुनाव के लिए रायबरेली सीट से नामांकन करते राहुल गांधी। साथ में सोनिया, प्रियंका और रॉबर्ट वाड्रा भी मौजूद हैं।
रायबरेली की कुल जनसंख्या करीब 18 लाख है, जिसमें 34% दलित हैं। हाल ही में चुनाव से ठीक पहले BJP ने पासी दलित बुद्धिलाल पासी को रायबरेली जिला अध्यक्ष बनाया। उन्होंने कहा था, 'मैं पासी समुदाय से आता हूं और यह भरोसा दिला सकता हूं कि अकेले यह समुदाय ही भाजपा को इस सीट पर जीत दिलाने के लिए पर्याप्त होगा।'
इसके अलावा सपा विधायक मनोज पांडे ने राज्यसभा चुनाव में BJP के लिए क्रॉस वोटिंग की। इससे BJP को ब्राह्मण वोटर्स के साधने की उम्मीद है। रायबरेली सीट से कांग्रेस विधायक और बाहुबली नेता अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह ने भी 2021 में BJP का दामन थाम लिया। हालांकि, इन सब चुनौतियों के बावजूद राहुल गांधी को अपनी लेगसी के सहारे जीत की पूरी उम्मीद है।