बिपरजॉय। ये एक तूफ़ान का नाम है। यह तूफ़ान 14-15 जून को गुजरात के तटीय इलाक़ों से टकराने वाला है। फिर वही आँधी, फिर वही बारिश। ये बारिश भी अब तो चुनाव की तरह हो गई है। जैसे चुनाव बारहों महीने चलते रहते हैं। चुनाव न हो तो उनका माहौल बना रहता है, उसी तरह इस बार तो बारिश भी बारहों महीने जब-तब होती रही है।
न ठण्ड में ठण्डी लगी, न गर्मी के मौसम में बहुत ज़्यादा तपिश। हर दस- पंद्रह दिनों में घूम फिरकर बारिश आती ही रही। जब कभी बारिश नहीं आई तो नेताओं, सरकारों ने घोषणाओं की बारिश शुरू कर दी। चूँकि कुछ राज्यों में चुनावी साल था, इसलिए मुफ़्त की रेवड़ियों की भी झड़ी लगी रही।
यह वीडियो गुजरात के द्वारका का है, यहां कई फीट ऊंची लहरें किनारे से टकराईं।
गुजरात और हिमाचल में पिछले साल हुए चुनावों से लेकर हाल में संपन्न कर्नाटक चुनाव और अब अगले नवम्बर-दिसंबर में होने वाले चार राज्यों के चुनावों के मद्देनज़र घोषणाओं की बाढ़ उतरने का नाम तक नहीं ले रही है। दरअसल, इन घोषणाओं के ज़रिए टैक्स पेयर की गाढ़ी कमाई का पैसा मुफ़्त में उड़ाया जा रहा है। उड़ाया भी कहाँ जा रहा है? सही हक़दार को उसका लाभ मिल भी पा रहा है या नहीं, इसका कोई हिसाब- किताब नहीं है। न सरकार के पास। न ही अफ़सरों या संबंधित विभागों के पास।
इसी आशय की एक चौंका देने वाली खबर राजस्थान से आई है। वृद्धा पेंशन बाँटने में यहाँ करोड़ों का घोटाला सामने आया है। कई ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जिनमें तेरह से सत्रह साल के बेटे-बेटियों के खातों में भी वृद्धा पेंशन की रक़म भेजी जाती रही। यही नहीं, कई अफ़सरों की पत्नियों के खातों में भी वृद्धा पेंशन की रक़म जा रही थी।
जब तक संबंधित विभाग या सरकार को इसका पता चला, कहते हैं लगभग तीन सौ करोड़ रुपए खातों में डाले जा चुके हैं। आख़िर टेक्स पेयर का पैसा तो ग़लत हाथों में चला ही गया। सरकार के पास तो इस रक़म की वसूली का भी कोई प्रबंधन या नेटवर्क नहीं है। चूँकि यह चुनावी साल है इसलिए वसूली का कोई रिस्क लेने की स्थिति में भी सरकार नहीं है।
यह राजस्थान में हुए वृद्धा पेंशन घोटाले का एक केस है।
ऐसा किया गया तो डर ये है कि वृद्धा पेंशन से जितनी पॉपुलैरिटी मिली है, वसूली से उतनी ही या उससे भी ज़्यादा निगेटिविटी फैल जाएगी। आख़िर सरकारें जब घोषणाएं करती हैं तो उनके कार्यान्वयन का फुल प्रूफ़ प्लान क्यों नहीं बनातीं? सरकारी ख़ज़ाने को इस तरह ग़लत हाथों में लुटाने का अधिकार सरकारों को दिया किसने?
मान लीजिए कम उम्र के बच्चों के खातों में वृद्धा पेंशन तो गलती से या टेक्निकल एरर की वजह से भी जा सकती है, लेकिन अफ़सरों की पत्नियों के खाते में तो गलती से नहीं गई होगी! आख़िर वे अफ़सर कौन हैं और उनकी पत्नियों के नाम वृद्धा पेंशनधारियों में किसने जुड़वाया, जाँच होनी ही चाहिए और वसूली भी।