कांग्रेस का राज तो ज़्यादा राज्यों में अब रहा नहीं, लेकिन राज नीति चल रही है। गुजरात और हिमाचल चुनाव निबट गए और राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा में लगे हुए हैं। दरअसल, वे कुछ बड़ा सोच रहे हैं। छोटे-मोटे राज्यों की जीत-हार से भी बड़ा। लोकसभा चुनाव। जो 2024 में होने वाले हैं। शायद ठान चुके हैं कि बनेंगे तो प्रधानमंत्री। वर्ना कुछ नहीं। जैसा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने संकल्प लिया था।
चंद्रशेखर से कई प्रधानमंत्रियों ने आग्रह किया कि उप मंत्री बन जाइए, मंत्री बन जाइए, लेकिन उन्होंने हमेशा कहा- बनूँगा तो प्रधानमंत्री ही बनूँगा। … और वे बन कर माने। विश्वनाथ प्रताप सिंह के बाद खाड़ी युद्ध के समय उन्होंने देश की कमान सँभाली थी। हो सकता है राहुल गांधी भी ऐसा ही करें। सीधे पीएम ही बनें। फ़िलहाल तो वे भारत जोड़ो यात्रा के तहत राजस्थान में कठपुतलियाँ नचा रहे हैं।
राहुल गांधी फ़िलहाल तो भारत जोड़ो यात्रा के तहत राजस्थान में कठपुतलियाँ नचा रहे हैं।
कठपुतली असल में भी और परोक्ष रूप से भी। असल की कठपुतली तो काठ की होती है और जैसा नचाओ, नाचती रहती है, लेकिन जो हाड़-मांस की कठपुतलियाँ हैं, उनके अपने कांग्रेसी नेता, वे कभी नाचते हैं तो कभी मुकर जाते हैं। जैसे अशोक गहलोत मुकर गए थे, पार्टी अध्यक्ष बनने से या राजस्थान का मुख्यमंत्री पद छोड़ने से। कठपुतलियाँ और भी हैं। राजस्थान के प्रभारी महासचिव अजय माकन अपना पद छोड़ चुके हैं।
उन्हें मलाल था कि गहलोत ख़ेमे के लोगों ने जयपुर में उनका और पार्टी आलाकमान का अपमान किया है। सो तैश में आकर इस्तीफ़ा दे बैठे। वे समझ नहीं पाए कि राजनीति में काहे का मान और काहे का अपमान। जहां तक पार्टी आलाकमान की बात है वे तो बैठे ही हैं अपमान कराने के लिए! वे मान-अपमान देखते रहे तो पार्टी चलेगी कैसे? भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान में प्रवेश के दिन ही माकन का इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया गया और नया प्रभारी भी नियुक्त कर दिया गया।
भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान में प्रवेश के दिन ही माकन का इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया गया।पार्टी का यह कदम फ़िलहाल तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ईगो को संतुष्ट ही कर रहा है।
निश्चित रूप से पार्टी का यह कदम फ़िलहाल तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ईगो को संतुष्ट ही कर रहा है। यह भारत जोड़ो यात्रा की संभावित अड़चनों को टालने का उपक्रम भी हो सकता है। इस बीच गहलोत-पायलट विवाद में नई अड़चन भाजपा नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ ने खड़ी कर दी है। वे हाईकोर्ट चले गए हैं और उनकी याचिका पर कोर्ट ने स्पीकर सीपी जोशी से जवाब माँगा है कि जिन विधायकों ने आपको इस्तीफ़े सौंपे हैं, उन्हें अब तक स्वीकार क्यों नहीं किया?
सीपी इसका क्या जवाब देंगे, पता नहीं, लेकिन बैक डेट में इस्तीफ़े अस्वीकार कर दिए तो गहलोत के हाथ से तुरुप का पत्ता निकल जाएगा। कांग्रेस अभी तक गहलोत के सामने इसीलिए चुप है क्योंकि उन इस्तीफ़ों के ज़रिए वे सरकार गिरा सकते हैं। देखना यह है कि गहलोत ख़ेमे का अगला कदम क्या होगा? स्पीकर आख़िर इन इस्तीफ़ों पर क्या, कब और कैसा निर्णय लेते हैं!