दिवाली से पहले दूध और मिठाइयों का बड़ा संकट देखने को मिल सकता है। लंपी के कहर ने राजस्थान में दूध सप्लाई के सबसे पुराने सिस्टम को तोड़कर रख दिया है। हालात ये हैं कि गांवों में ही दूध नहीं बचा। रोज बढ़ रही डिमांड के बीच दूध का प्रोडक्शन 30% तक घट गया है। ऑफ सीजन में भी मिठाइयों के दाम 20% तक बढ़ गए हैं।
इतना ही नहीं, सर्दियां शुरू होने से पहले ही सरकारी डेयरियों में घी का प्रोडक्शन 50 से 90% तक कम हो गया है। लंपी से राजस्थान में 40 हजार से ज्यादा गौवंश की मौतों ने आज की सबसे बड़ी जरूरत दूध, दही, घी, मक्खन जैसी चीजों की किल्लत पैदा कर दी है। दूध 4 से 6 रुपए तक महंगा होने के कारण मिठाइयां 20 से 80 रुपए तक महंगी हो गई हैं। वहीं घी करीब 100 रुपए प्रति लीटर तक महंगा हो गया। 8 लाख से ज्यादा गायों में फैले लंपी संक्रमण ने डेयरी कारोबार को 50% तक प्रभावित किया है।
भास्कर ने लंपी बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित 6 जिलों की पड़ताल की। जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, चूरू, अलवर और पाली के बाजारों से जुटाई ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आया कि मुंह में मिठास लाने वाली मिठाइयां मेन्यू से भी गायब हो गई हैं। अलवर का मिल्क केक, पाली का गुलाब हलवा, जयपुर का मिश्री मावा, जोधपुर में चतुर्भुज के गुलाबजामुन। जो भी मिठाइयां फेमस हैं, कारोबारियों ने उनका प्रोडक्शन घटा दिया है।
मंडे स्पेशल स्टोरी में आपको 6 जिलों की ग्राउंड रिपोर्ट के जरिए बताते हैं कि दूध का संकट कैसे फेस्टिव सीजन को फीका कर सकता है। सबसे पहले बताते हैं दूध की किल्लत कितनी बढ़ी है....
जयपुर: 25 हजार दुकानें, छेने और बंगाली मिठाइयां गायब
जयपुर जिले में छोटी-बड़ी मिलाकर मिठाई की 25 हजार से ज्यादा दुकानें हैं। शहर की बड़ी दुकानों में पहले मिठाइयों के लिए दूध की खपत 1 टन और छोटी दुकानों पर करीब 100 लीटर थी। लंपी फैलने से गाय के दूध में 40-50 परसेंट तक की कमी हो गई है। दूध मिष्ठान भंडार के डायरेक्टर रोहित शर्मा की मानें तो गाय के दूध से बनने वाली मिठाइयों में 40 प्रतिशत तक कमी आई है। रसगुल्ला, राजभोग, छेना, मुरकी की मिठाइयां, पनीर और दूध लड्डू, घेवर का प्रोडक्शन कम हो गया है। खासकर शुगर पेशेंट रसगुल्ला, राजभोग पसंद करते हैं, जो अब कम ही मिल रहा है। दाम भी बढ़ गए हैं।
गाय की जगह भैंस का दूध, मावे की जगह ड्राईफ्रूट्स की मिठाइयां
मिठाई कारोबारियों के मुताबिक लंपी के डर से भी लोगों ने मिठाई खरीदना कम कर दिया है। सेल 10 से 15 प्रतिशत घट गई है। हलवाई दूध की जगह ऑप्शनल मिठाइयां ज्यादा बना रहे हैं। जैसे- लड्डू, भैंस के दूध की बर्फी, काजू कतली, ड्राई फ्रूट और चॉकलेट बर्फी, पान गिलौरी, अंगूरी पेठा, नारियल बर्फी, रसमलाई। कारोबारी ऑप्शन पर ज्यादा काम कर रहे हैं ताकि दिवाली आने तक इन मिठाइयों का चलन बढ़ाया जाए और सेल पर भी असर नहीं पड़े।
जयपुर में चौमूं के मावे का असर
चौमूं में लंपी बीमारी से पहले दूध 52 रुपए प्रति लीटर था। अब दूध की रेट 65 रुपए प्रति लीटर हो गई है। चौमूं में दूध से मावा बनाया जाता है। यह मावा जयपुर और आस-पास के कई शहरों में मिठाई बनाने में काम आता है। दूध के बढ़ते दामों से मावा भी 260 रुपए से बढ़कर 280 रुपए किलो हो गया है। इस मावे से बनने वाली सभी मिठाइयां भी 20 रुपए प्रति किलो की दर से महंगी हो रही हैं।
जोधपुर: ऑफ सीजन में 480 वाली मिठाई 520 रुपए प्रति किलो हुई
जोधपुर शहर में मिठाइयों की 125 के करीब रजिस्टर्ड दुकाने हैं। छोटी-बड़ी की संख्या 500 से भी ज्यादा है। एक मिठाई की दुकान पर करीब 300 किलो दूध रोजाना आता था। अब सप्लाई घट कर 150 किलो हो गई है। दूध की क्वालिटी पर भी असर आया है।
घंटाघर चौक स्थित मिश्रीलाल पेड़ा हाउस के संचालक संदीप अरोड़ा बताते हैं पहले जहां छेने, मावे की मिठाई 3 से 4 दिन खराब नहीं होती थी वह अब 2 दिन मुश्किल से टिक पाती है। बंदी का दूध 40 से 42 रुपए किलो मिलता था अब बढ़कर 50 रुपए से 55 रुपए किलो हो गया है। मिठाई बनाने की कॉस्ट भी बढ़ी है। अभी ऑफ सीजन है लेकिन 480 रुपए में बिकने वाले पेड़े 520 रुपए प्रति किलो हो गए हैं।
सेल हुई आधी, घी की मिठाइयां बना रहे
जोधपुर मिष्ठान भंडार के संचालक पदम सिंह राजपुरोहित ने बताया कि पहले हर दिन करीब 22 हजार की सेल थी। लंपी बीमारी के बाद अब घटकर 8 से 10 हजार की हो गई। दूध की डिमांड को देखकर लोकल डेयरियों ने दूध की रेट बढ़ा दी है। भैंस और मिक्स दूध के कारण छेना, रसगुल्ले, राजभोग, बंगाली मिठाई सॉफ्ट नहीं बन रही है, कड़कपन रहता है। ऐसे में अब घी वाली मिठाइयों ज्यादा बना रहे हैं। हालांकि दाम घी के भी बढ़े हैं। काजू कतली, बालूशाही, लड्डू, इमरती, जलेबी आदि मिठाइयां ही बिक रही हैं।
50 प्रतिशत तक सेल कम हुई
जोधपुर मिठाई नमकीन एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश का कहना है कि दूध के संकट का असर दिवाली पर दिखेगा। कोरोना के बाद व्यापार संभला था। लेकिन लंपी के कारण फिर अब दूध की 40 प्रतिशत कमी हो गई है। दूध के दाम बढ़ने से मिठाई के दाम भी बढ़ गए हैं। सभी मिठाई अब 500 रुपए किलो हो गई है। अभी ऑफ सीजन में यह हाल है तो आने वाले दिनों में फेस्टिव सीजन में क्या होगा।
डांगियावास में मावा के रेट बढ़ाने की तैयारी: जोधपुर-जयपुर हाईवे पर सबसे ज्यादा बिकने वाला फेमस डांगियावास का मावा भी जल्द ही महंगा होने जा रहा है। मावा कारोबारी नाथुराम डांगी ने बताया कि हर दिन यहां 6 क्विटंल मावे की खपत होती है। अभी तक तो दूध के बढ़ते भाव का असर मावे पर नहीं आने दिया। लेकिन जिस तेजी से दूध के भाव बढ़ रहे हैं, अब दुकानदार मावे का रेट बढ़ाने की तैयारी कर रही है।
बीकानेर: 20 रुपए किलो महंगे हुए फेमस रसगुल्ले
पूरे उत्तर भारत में रसगुल्ले का सबसे बड़ा हब बीकानेर बंगाली मिठाइयों की कमी से जूझ रहा है। शहर में करीब डेढ़ सौ मिठाई की दुकानें हैं। इनमें 50 बड़ी दुकानें और बाकी मिठाई की छोटी दुकानों पर रसगुल्ला सहित बाकी बंगाली मिठाइयों का बड़े लेवल पर प्रोडक्शन होता था। अब हालात ये हैं कि बंगाली मिठाइयां ढूंढने पर भी नहीं मिल रहीं। 10 से 15 दुकानों में घूमने के बाद किसी एक दुकान पर बंगाली, रसगुल्ला और राजभोग जैसी दूध की मिठाई मिलेगी। सेल कम होने के कारण हलवाई मिक्स दूध से दूसरी मिठाई बना रहे है। ड्राई फ्रूट और घी की मिठाइयां सबसे ज्यादा बन रही हैं।
160 से 170 रुपए किलो में बिक रहा रसगुल्ला
रसगुल्ला कारोबारी रवि पुरोहित बताते हैं कि छेना बनाने में गाय का दूध ही काम लिया जाता है। दूध की किल्लत से रसगुल्ले का प्रोडक्शन जितना कम हुआ है, लागत उतनी बढ़ी है। लंपी से पहले 130-140 रुपए थोक में बिकने वाला रसगुल्ला अब 160 से 170 रुपए किलो में बिक रहा है।
एक मोटे अनुमान के मुताबिक रसगुल्ला का लोकल लेवल पर प्रोडक्शन 40% तक घटा है। बड़ी फैक्ट्रियों में भी प्रोडक्शन 10% तक प्रभावित हुआ है। यहां गुर्जरों के मोहल्ले में दूध के भाव रोज बदलते हैं। 42 रुपए प्रति किलो दूध अब 50 से 55 रुपए में मिल रहा है। मुंह मांगे दाम के बाद भी दूध नहीं मिल पा रहा है। बीकानेर शहर में आस-पास के गांवों से आने वाला दूध की आवक 25 प्रतिशत घट गई है।
अलवर: कलाकंद का सबसे बड़ा सेंटर, 25% प्रोडक्शन घटा
अलवर का कलाकंद पूरे देश में फेमस है। यहीं से तैयार होने वाली कलाकंद की सप्लाई देश के कोने-कोने तक होती है। शहर में 80 से अधिक मिठाई की दुकानें हैं। वहीं पूरे जिले में संख्या 1 हजार से ज्यादा मिठाई दुकानों पर रोज कई टन अलवर की कलाकंद और बाकी मिठाइयां बनती हैं।
जिले में 3 लाख लीटर से अधिक गाय के दूध का उत्पादन होता है। रसगुल्ले और बंगाली मिठाइयों का प्रोडक्शन करीब 25% कम हुआ है। बिक्री भी पहले से घटी है। हालांकि दुकानदारों ने मिठाई के दाम नहीं बढ़ाए हैं। इसकी जगह दूध से बनने वाली मिठाइयों की वैराइटी कम कर दी है। सादा बर्फी भी पहले कई प्रकार की मिलती थी जो अब एक ही प्रकार से बन रही है।
चूरू: डेयरी में 50% घटा प्रोडक्शन, दाम बढ़ाने से बच रहे दुकानदार
गोवंश में लंपी स्किन डिजीज बीमारी के कारण चूरू जिले में दूध, घी, दही व पनीर का उत्पादन 50 % ही रह गया है। इस संबंध में चूरू जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ के चेयरमैन लालचंद मूंड ने बताया कि जिले में सरकारी व निजी 15 डेयरी हैं। पशुधन में बीमारी होने के बाद दूध से निर्मित उत्पाद में बहुत कमी हो गई है। ज्यादा प्रभाव दूध, दही व घी में हुआ है।
पाली: 10-15% दूध कम हुआ, दुकानदारों में प्रोडक्शन घटाया
शहर में मिठाई की 40-50 बड़ी दुकान हैं। लंपी के बाद हर दुकान पर दूध की आवक 10-15 % घट गई है। मिठाई विक्रेता सुरेश पुरी और राजू भाई मेड़तिया ने बताया कि गाय के दूध की कमी के चलते जितनी डिमांड है, उससे 40% तक कम मिल रहा है। बंगाली मिठाइयां और गुलाब जामुन का प्रोडक्शन 15-20 कम हुआ है। इसका असर ग्राहकी पर भी पड़ रहा है। ऑफ सीजन में सेल जितनी रहती थी, उससे भी 10% गिर गई है। मेन्यू में जितनी मिठाइयां थीं, सब बना तो रहे हैं, उत्पादन घटा दिया है।
फेमस गुलाब हलवा का प्रोडक्शन 15% तक घटा
गुलाब हलवा के संचालक सुरेश पुरी बताते हैं जिलेभर में दूध के दाम तीन बार में 2-2 रुपए कर 6 रुपए प्रति लीटर बढ़े हैं। भैंस के दूध की डिमांड ज्यादा हो गई है, इसलिए गुलाब हलवा बनाने की कॉस्ट पहले से बढ़ गई है, मार्जिन घटा है। प्रोडक्शन 15% कम कर दिया है। पाली हलवे का हब है, हालांकि अभी तक रेट नहीं बढ़ाए हैं, लेकिन यही स्थिति लगातार रही तो दाम बढ़ाने पड़ेंगे।
सड़क तो दूर अब गांवों में नहीं दिखती हैं गायें
शहर में जहां सड़कों पर गायों का जमावड़ा लगा रहता था, वहीं गांवों में जाने पर आपको को खेतों में घरों में हर जगह गायें दिखाई देती थीं। लंपी बीमारी के कारण हर गांव में सैकड़ों की संख्या में गायों की मौत हो रही है। लंपी प्रभावित गावों की पड़ताल करने पर सामने आया कि हकीकत में हर दिन गायें कितनी मर रही हैं, किसी को पता नहीं है। गांव में गाय मरने पर जेसीबी से खाई में डालकर गांव के लोग ही दफना देते हैं। लंपी प्रभावित गांवों में सैकड़ों की तदाद में गायें मर गईं। घरों में गायों के बाड़े सूने पड़े हैं और गांव व खेतों में अब गायें दिखाई नहीं देती है। अब हर गांव के बाहर आपको मृत गायों के कंकाल और गायों के टीलों के श्मशान दिख जाएंगे।
ये हालात इसलिए बने, क्योंकि...
चूरू जिले के तारानगर तहसील के गांव में ऊंट गाड़ी और बैलगाड़ियों पर जहां देखो, वहां गायों की लाशों के ढेर लगे हैं।
लंपी के प्रकोप की वजह से ग्रामीण इलाकों में हालात बहुत खराब हैं। मवेशी इस तरह दम तोड़ रहे हैं।
गायों की इतनी ज्यादा मौतें हो रही हैं कि चूरू जिले के एक गांव में चार से पांच श्मशान बन गए हैं। गायों को दफनाने के लिए 8 फीट गहरी खाई खोदी जा रही है।
चूरू जिले के फोगां गांव में ग्रामीणों के पास बच्चों को पिलाने के लिए भी दूध नहीं है। थैली वाले दूध का जैसे-तैसे इंतजाम कर रहे हैं, लेकिन बच्चे गाय के दूध के लिए बिलख रहे हैं।
8 लाख संक्रमित पशु मौत के इंतजार में...
जुलाई के अंत में जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार तब प्रदेश के 11 जिलों में फैली लंपी के चलते कुल 2 लाख पशु संक्रमित थे। इस दौरान 70 से 80 हजार पशु उपचाररत थे। इस दौरान 4296 पशुओं की मौत हो गई थी। वहीं अगस्त के आखिर में जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब लंपी प्रदेश के हर जिले में फैल चुका है। कुल 9 लाख 46 हजार 665 पशु संक्रमित हो गए हैं। 41 हजार 731 पशुओं की मौत हो गई है। कुल 899531 पशुओं का इलाज चल रहा है। संक्रमित पशुओं की हालत ज्यादा खराब है। अधिकतर गांवों में संक्रमित पशुओं का इलाज देसी तरीके से किया जा रहा है। इसके लिए हल्दी, शहद का लेप और देशी दवाइयां देकर कर रहे हैं।
सहयोगी : नीरज शर्मा, पूर्णिमा बोहरा, धर्मेन्द्र यादव, नरेश भाटी, ओम टेलर, अनुराग हर्ष
गाय-बछड़ों का कलेजा नोंच रहे कीड़े:आंखें बाहर निकलने लगीं, मोहल्ले बने श्मशान; जयपुर सहित 10 शहरों में घी-दूध का बड़ा संकट
चारों तरफ दर्द और बेबसी की ऐसी तस्वीर कि पत्थर दिल व्यक्ति की आंख के साथ नाक और कान भी रो पड़ें। सभी जगह ‘लंपी’ बीमारी का ऐसा महाप्रकोप है कि ये इलाके दुर्गंध के टीलों में तब्दील होते जा रहे हैं। दैनिक भास्कर की टीम ने तीन दिन में 2000 किमी का सफर किया। पांच जिलों के 40 गांवों के ग्राउंड पर हालात जाने। राजस्थान में इस बीमारी के प्रकोप के चलते पांच जिलों में 1.40 लाख लीटर दूध की कमी हो गई है। जयपुर सहित 10 शहरों में घी और दूध की कमी हो गई है। जल्द ही अब बड़ा संकट देखने को मिलेगा....(पूरी खबर यहां क्लिक कर पढ़ें)