अफगानिस्तान की जाहिदा ने एक चिट्ठी लिखी है। ये साल भर बाद उसकी दूसरी चिट्ठी है। जाहिदा ने जब पहली चिट्ठी लिखी थी, तब तालिबान की फौज ने उनके शहर में घुसना शुरू किया था। अब देश में उसकी सरकार है।
एक साल पहले अगस्त की 15 तारीख को तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया था। तालिबान को 20 साल बाद दोबारा काबुल की सत्ता मिली थी। जाहिदा की उम्र भी 20 साल ही है। यानी इस एक साल को छोड़ उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी बिना पाबंदियों के बिताई थी।
ये फोटो 15 अगस्त 2021 की है। तब राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश से भागने के बाद तालिबान लड़ाकों ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया था।
इस एक साल में अफगानिस्तान में क्या बदला, इसे जाहिदा की जिंदगी से समझा जा सकता है।
ये चिट्ठी जाहिदा ने लिखी है…
मेरा नाम जाहिदा है। मैं 20 साल की हूं और फरयाब प्रांत के एक शहर में रहती हूं। पैदा होने के बाद से मैंने हमेशा अपने देश में युद्ध ही देखा है। एक साल पहले, जब देश पर तालिबान का कब्जा हुआ, तब मैंने यूनिवर्सिटी में दाखिले का एग्जाम पास किया था। मैं काबुल यूनिवर्सिटी में फार्मेसी मेजर में एडमिशन लेने वाली थी, लेकिन फिर यूनिवर्सिटी देख भी नहीं पाई।
परिवार को हमारी फिक्र थी, इसलिए हमने घर बदल लिया। मां नौकरी करती थीं। वे टीचर थीं। तालिबान की सरकार आते ही स्कूल बंद होने लगे। मां को कई महीने घर में बैठना पड़ा। दो-तीन महीने लगा कि सब कुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन हर दिन के साथ हालात बिगड़ते ही चले गए।
तालिबान के आने से पहले भी हमारा परिवार बहुत अमीर नहीं था, लेकिन वक्त अच्छा कट रहा था। खाने-पीने की कमी नहीं थी। अब एक साल में हमारी हालत बहुत खराब हो गई। सामान बेचकर खर्च चलाना पड़ रहा है। अपने खाने के लिए भले न हो, लेकिन तालिबान के लड़ाके घर में आ जाएं तो उन्हें खाने का सामान देना पड़ता है। ऐसा हर परिवार को करना पड़ता है।
तालिबान के नेता दो-तीन शादियां कर रहे हैं। कुछ ने तो चार शादियां तक कर ली हैं। मुसीबत तो ये है कि उनकी शादी का खर्च भी हमें उठाना पड़ता है। तालिबान के लड़ाके हमारे घरों से सामान तक ले जाते हैं। जिनकी 14-15 साल से ज्यादा उम्र की बेटियां हैं, वे डरे रहते हैं कि तालिबानी उनकी बेटी से शादी करने का इरादा न जाहिर कर दें।
मेरे पड़ोस में रहने वाली एक लड़की के साथ यही हुआ था। परिवार को उसकी शादी एक तालिबान लड़ाके से करनी पड़ी। दो महीने पहले उसके शौहर की लड़ाई में मौत हो गई।
तालिबान के राज में लड़कियों और महिलाओं का हाल सबसे बुरा है। कॉलेज जाने वाली लड़कियां घरों में कैद हो गईं। जो महिलाएं नौकरी करने लगी थीं, काम छूटने के बाद उनमें से कई भीख मांग रही हैं। महिलाओं को सिर्फ मेडिकल और एजुकेशन फील्ड में काम करने की थोड़ी छूट है। वहां भी वे वही काम कर सकती हैं, जिन्हें मर्दों के पास नहीं जाना होता।
मेरी एक रिश्तेदार हैं। वे एजुकेशन मिनिस्ट्री में काम करती थीं। उनकी भी नौकरी चली गई। उनकी बेटी यूनिवर्सिटी में मेडिकल की पढ़ाई कर रही है। वह काबुल में रहती है। तीन महीने पहले उन्होंने अपना घर बेच दिया, क्योंकि वे बेटी की फीस नहीं भर पा रही थीं। घर बेचते वक्त वे काफी रो रही थीं। तालिबान के आने के बाद कई लोग जमीन-जायदाद बेच रहे हैं। इस वजह से कीमतें बहुत कम हो गई हैं।
मेरे पड़ोस की एक लड़की काबुल में काम करती थी। एक दिन वह वापस आ गई। बताया कि उसकी नौकरी छूट गई है। अब वह भी मेरी तरह घर में ही रहती है। बाहर जाना हो तो किसी मर्द रिश्तेदार का साथ होना जरूरी है। तालिबान के आने से पहले मैं और मेरी सहेलियां काबुल जाकर पढ़ने का ख्वाब देखती थीं। उनमें से कुछ तो देश छोड़कर जा चुकी हैं। यहां लोगों के पास पैसे नहीं हैं। सब बहुत महंगा है। पेट भरने के लिए लोग चोरियां तक करने लगे हैं।
पढ़े-लिखे लोग दूसरे देशों में रिफ्यूजी बन गए। जो रह गए, वे भी भागना चाहते हैं, लेकिन उनके पास मौके नहीं हैं। डिप्रेशन में लोग नशा करने लगे हैं। किसी को नहीं पता कि आगे क्या होगा। सब नाउम्मीद हैं।
(हमने सुरक्षा कारणों से लड़की की पहचान जाहिर नहीं की है, न ही उसके रहने की जगह के बारे में बताया है।)
जाहिदा ने एक साल पहले लिखी चिट्ठी में उस वक्त का माहौल बताया था। लिखा था कि मुझे मौका मिला तो मैं भी देश से चली जाऊंगी। हालांकि, उसे ये मौका मिला ही नहीं। पढ़िए जाहिदा की पहली चिट्ठी...
इन फोटोज से अफगानिस्तान का हाल जान लीजिए ..
अफगानिस्तान में पब्लिक स्कूल बंद हो चुके हैं। अब लड़कियों को मस्जिदों में कुरान पढ़ना सिखाया जा रहा है।
फोटो काबुल की है। यहां के बाजारों में निगरानी के लिए तालिबान लड़ाके तैनात हैं।
अफगानिस्तान की बड़ी आबादी भुखमरी की कगार पर है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 65% बच्चों को खाना नहीं मिल रहा है।
पंजशीर और अंदराब में विद्रोहियों से जंग जारी
तालिबान ने सत्ता में आने के बाद पूरे देश पर कब्जे का दावा किया था। हालांकि, अब भी अफगानिस्तान के कई उत्तरी इलाकों में कई गुट उसे चुनौती दे रहे हैं। पंजशीर में अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद के नेतृत्व में नेशनल रेजिस्टेंस फ्रंट तालिबान के खिलाफ लड़ रहा है। बगलान प्रांत के अंदराब में भी संघर्ष चल रहा है।
विद्रोह कुचलने के लिए कई हत्याएं
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान विद्रोह दबाने के लिए अपहरण और हत्याएं कर रहा है। ये हत्याएं विद्रोही गुट का समर्थक होने के शक में की गई हैं। ताजिक और उज्बेक मूल के लोगों को खासतौर से निशाना बनाया जा रहा है। पंजशीर में आम लोगों को हिरासत में लेकर यातनाएं दी गईं। ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान ने हेलमंद और बल्ख प्रांत में हजारा समुदाय के हजारों परिवारों को उनके घर और जमीन से निकाल दिया है।
मीडिया पर सख्त निगरानी, कई पब्लिकेशन बंद
तालिबान मीडिया पर भी सख्त हैं। पाबंदियों की वजह से कुछ मीडिया संस्थान ही रिपोर्ट कर पा रहे हैं। उन पर भी तालिबान की सख्त निगरानी है। सैकड़ों पब्लिकेशन बंद हो चुके। तालिबान के खिलाफ खबर दिखाने पर रोक है। स्क्रीन पर आने वाली महिलाओं के लिए चेहरा ढंकना जरूरी है। मीडिया पर सेंसरशिप की वजह से दुनिया को वहां के हालात पता नहीं चल पा रहे हैं।
तालिबान का दावा- बिना विदेशी मदद अच्छे से सरकार चलाई
तालिबान नेता अनस हक्कानी का कहना है कि बीते 40 साल में पहली बार केंद्र सरकार का पूरे देश पर कंट्रोल है। कोने-कोने और एक-एक इंच जमीन पर। सरकार के एक साल पूरे होने पर अल जजीरा को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि आप देख सकते हैं देश में कितना बदलाव आया है। हमने विदेशी कब्जे को खत्म कर दिया। सरकार बिना विदेशी मदद के अच्छा काम कर रही है। देश में अब कोई मिलिटेंट ग्रुप एक्टिव नहीं है।
भारत से गुजारिश- अपने अधूरे प्रोजेक्ट दोबारा शुरू करे
भारत ने 20 साल में अफगानिस्तान में करीब 22 हजार करोड़ रुपए का निवेश किया था। ये रकम 400 से ज्यादा छोटे-बड़े प्रोजेक्ट में लगी है। 1996 से 2001 के बीच जब देश में तालिबान का राज था, तब भारत ने अफगानिस्तान से संबंध तोड़ लिए थे। तालिबान दोबारा सत्ता में आया तो भारत के सभी प्रोजेक्ट रुक गए। अब तालिबान ने गुजारिश की है कि भारत अफगानिस्तान में अधूरी अपनी योजनाओं पर दोबारा काम शुरू करे। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल कहर बल्खी ने कहा कि हमने हमारी प्राथमिकताएं भारत को बताई हैं।
अफगानिस्तान से भागे पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी अबुधाबी में
फोटो 14 अगस्त 2021 की है। तब तालिबान ने काबुल को घेर रखा था। अगले दिन राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए थे।
अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी इन दिनों अबुधाबी में हैं। तालिबान के काबुल में घुसने से पहले उन्होंने देश छोड़ दिया था। CNN को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि बहुत उम्मीद है कि मैं एक दिन अफगानिस्तान लौटूंगा। वह मेरा घर है। गनी ने कहा कि तालिबान के राज में देश गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है। मैं अपने देश की मदद करना चाहता हूं। दुनिया को भी इस बारे में सोचना चाहिए।