भारत- पाक के बीच हुए कारगिल युद्ध को आज 23 साल पूरे हो गए है। दुश्मनों को धूल चटाते हुए भारत के 527 योद्धा शहीद और 1300 से ज्यादा घायल हो गए थे। राजस्थान की बात करें तो, 52 जवान वीर गति को प्राप्त हुए थे। इसमें सबसे ज्यादा शेखावाटी के वीर हैं। सीकर, झुंझुनूं और चूरू के 33 जवानों ने जान गंवाई थी।
1999 में 60 दिन तक चले इस युद्ध का हिस्सा बने जवानों के दिल में आज भी यादें ताजा हैं। अपने साथियों से बिछड़ने का दुख है तो वहीं दुश्मनों को अपने घर से खदेड़ने पर गर्व भी है। सीकर के भी योद्धाओं को इसका साक्षी बनने का मौका मिला था। आज कारगिल दिवस के मौके पर हम आपको उस युद्ध का आंखों देखा हाल बताने का प्रयास कर रहे हैं।
नीमकाथाना इलाके के डाबला के रहने वाले रिटायर नायक जयराम सिंह को कारगिल की लड़ाई लड़ने के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया जा चुका है।
सीकर के नीमकाथाना इलाके के डाबला के रहने वाले रिटायर नायक जयराम सिंह के दिल में आज भी लड़ाई का दर्द बसा हुआ है। दैनिक भास्कर से बात करते हुए उन्होंने बताया कि हर दिन जवान शहीद होते थे।
बटालियन में साथ रहने वाले साथियों के खून से लथपथ शव देखकर दिल भर आता था। दुश्मनों की एक गोली ने उनके पैर को भी जख्मी कर दिया था। उसका निशान आज भी पैर पर है। भारतीय सेना ने युद्ध में दुश्मनों को मुंह तोड़ जवाब देकर कारगिल में भारत का झंड़ा फहराया था। उन्होंने बताया कि सरकार ने उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया था।
भूखे-प्यासे चोटियों पर चढ़े
कारगिल वॉर के बारे बताते हुए रिटायर नायक जयराम कहते है कि, भूखे-प्यासे चोटियों पर चढ़े। हालत ऐसी कि, प्यास लगने पर बर्फ को पिघलाकर पीते थे। पीठ पर बैग लदा होता था। जिसमें ड्राई फ्रूट रखते थे। उसे खाकर ही पेट भरते थे। पूरी लड़ाई में उनके 4 अधिकारी, 2 जेसीओ और 18 जवान शहीद हुए थे।
कारगिल की लड़ाई का हिस्सा रहे जयराम सिंह 1997 में 19 साल की उम्र में सेना में भर्ती हुए थे। 15 साल नौकरी के बाद रिटायर हुए। ड्यूटी के दाैरान अमरनाथ बाबा के दरबार में अपने साथी के साथ।
आंखों के सामने ऑफिसर के सीने पर गोली लगी और शहीद हो गए
जयराम कहते है, 1997 में 19 साल की उम्र में सेना में भर्ती हुए थे। दो साल बाद ही कारगिल में लड़ने का मौका मिला। लड़ाई के दौरान 28 जून 1999 को ग्वालियर के रहने वाले ऑफिसर श्रवण सिंगर ने हमारी कंपनी को लीड किया था। दोनों ओर से गोलियां चल रही थी। इस दौरान एक गोली ऑफिसर श्रवण के सीने पर लगी। और वह चोटी से नीचे गिर गए। हमारी आंखों के सामने हमारे ऑफिसर वीर गति को प्राप्त हो गए थे।
ऑफिसर श्रवण के बारे में जवान ने बताया कि, वह हमेशा कहते थे कि, ट्रेनिंग में जितना पसीना बहाओगे। लड़ाई में उतना ही खून बचा पाओगे। कारगिल में लड़ाई पर जाने से पहले भी उन्होंने कहा था... आज वो वक्त आ गया है, जिसके लिए हम सेना में आए है।
रात को गाड़ियों की लाइट बंद कर गुजरते थे
वीर चक्र विजेता ने बताया कि, कारगिल लड़ाई में वह डेल्टा कंपनी में थे। 25 मई 1999 को जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में कंपनी को कारगिल की पोस्टों पर जाने का आर्डर मिला था। 26 मई को पूरी कंपनी सोना मार्ग पहुंची। इस बीच पाकिस्तानी सेना ने भारत के फाइटर जेट को खत्म कर दिया।
1 जून को लेह और श्रीनगर के बीच मीना मार्ग पूल पर पहुंचे। पाकिस्तानियों ने हर तरफ से रास्ते को घेर रखा था। इस कारण गाड़ियों के साथ रात के समय कम आवाज और लाइट बंद कर गुजरते थे। टाइगर हिल और तोलोलिंग के बीच 10-12 दिन से 18 ग्रेनेडियर के हमारे कई जवानों के शव पड़े थे। पाक सेना के घेराव के कारण साथियों का शव भी नहीं उठा पा रहे थे। हमारे चार अटैक फेल हो चुके थे।
युद्ध के 22 साल बाद आज भी रिटायर नायक के पैर में दुश्मनों की लगी गोली के निशान है।
तोलोलिंग पर भारत का तिरंगा फहराया
ऐसे में अल्फा कंपनी ने कमान संभाली। 12 जून की रात अल्फा कंपनी ने डिफेंस करते हुए लगातार फायरिंग की। इस बीच डेल्टा कंपनी के जवान दूर चले गए। पाकिस्तानी सेना ने अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगाए।
जवाब में भारतीय सेना ने राजारामचंद्र की जय बोलकर सीरीज तोलोलिंग पर हमला कर दिया। 13 जून की सुबह करीब 6 बजे तक लड़ाई चली। कई पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। भारत के भी कुछ जवान वीर गति को प्राप्त हो गए। तोलोलिंग पर भारत का तिरंगा फहराया गया। यह कारगिल की लड़ाई का सबसे मेन पॉइंट था। जब भारत पाक सेना से काफी कदम आगे हो गया था।
दुश्मनों को हराकर थ्रीपिंपल पोस्ट पर किया कब्जा
भारत ने तोलोलिंग फतह करने के बाद थ्रीपिंपल ( ब्लैकरॉक) पर हमले की तैयारी शुरू कर दी। 27 जून को जैसे-तैसे तीनों चोटियों के नीचे पहुंच गए। पूरे इलाके की रैकी की। रात करीब 8 बजे के लगभग आगे बढ़े। कुछ दूरी पर एक जवान दुश्मनों की बिछाई रस्सियों में फंसकर गिर गया।
पाकिस्तानी सेना ने फायरिंग करना शुरू कर दिया। जान की परवाह किए बिना भारतीय जवान आगे बढ़ते चले गए। 10 मिनट तक दोनों ओर खूब गोलीबारी हुई। 27 जून की रात करीब 1:30 बजे के लगभग थ्रीपिंपल पोस्ट पर कब्जा किया।
थ्रीपिंपल पोस्ट पर लड़ते हुए पैर में गोली लगी
जयराम ने बताया कि थ्रीपिंपल पोस्ट पर दुश्मनों से लड़ते हुए एक गोली उनके पैर पर भी आकर लगी थी। कई सैनिक गोली लगने के बाद चोटी से नीचे नालों में गिर गए थे। उनके पास ही वायरलैस था।
इस कारण अपने हथियार साथी सौरभ को देकर नाले में जाकर रेडियो सेट ऊपर लेकर आए। उसके बाद अधिकारियों को घायल जवानों की सूचना दी। 29 जून को रेस्क्यू टीम लेने पहुंची।