पश्चिमी राजस्थान के एक हिस्से में दिखाई दिया आग का गोला अब भी रहस्य बना हुआ है। रहस्य इस बात का है कि यह मिसाइल थी या खगोलीय घटना के तहत होने वाले उल्कापिंड की बौछार। वैज्ञानिक और आर्मी इसे लेकर दो तर्क दे रहे हैं।
दैनिक भास्कर ने इस घटना को लेकर पड़ताल की। आसमान में चमकता हुआ आग का गोला पाकिस्तान तक दिखाई दिया। वहीं राजस्थान से गुजरी यह आग की रोशनी पंजाब तक देखी गई।
वैज्ञानिक इसे खगोलीय घटना मानने को तैयार नहीं है। उनका कहना है यह आर्मी प्रैक्टिस का हिस्सा हो सकता है। वहीं वैज्ञानिकों के इस दावे को आर्मी के अधिकारी गलत बता रहे हैं। उनका कहना है कि यह उल्का पिंड की बौछार थी। आर्मी की ओर से यह जरूर दावा किया गया कि पाकिस्तान तक आसमान में आग का गोला दिखाई दिया।
पढ़िए साइंटिस्ट और आर्मी के अलग-अलग दावे...
इसरो साइंटिस्ट ने दो कारण बताए, क्यों नहीं हैं ये उल्का पिंड
इसरो से जुड़े रहे अंतरिक्ष वैज्ञानिक नरेंद्र भंडारी का कहना है कि ये उल्का पिंड नहीं हो सकते। इसके दो बड़े कारण हैं।
पहला: ये नीचे से ऊपर की ओर जा रहा है। उल्का पिंड सिर्फ ऊपर से नीचे की ओर आते हैं।
दूसरा: इसमें आगे का हिस्सा टूटकर अलग हो रहा है। उल्का पिंड में ऐसा नहीं होता। वो सीधा आग के गोले व चट्टान की तरह तेज गति से एक साथ नीचे पहुंचता है।
डॉ. भंडारी ने बताया कि ये मिसाइल हो सकती है। किसी सैन्य अभ्यास का हिस्सा हो सकता है। इसके अलावा कई बार अंतरिक्ष में चल रहे सेटैलाईट के टुकड़े भी पृथ्वी में प्रवेश कर जाते हैं। ये टुकड़े भी पृथ्वी की ओर आते हैं तो गुरुत्वाकर्षण घर्षण से इनमें आग लग जाती है। कुछ महीने पहले ऐसे टुकड़े महाराष्ट्र में मिल चुके हैं।
सेना इसरो का दावा मानने को तैयार नहीं
इस मामले में भास्कर रिपोर्टर ने सेना के प्रवक्ता कर्नल अमिताभ शर्मा से बातचीत की। शर्मा ने बताया कि सेना की तरफ से ऐसी कोई प्रैक्टिस नहीं की गई है कि ऐसा सीन आसमान में क्रिएट हो। ये meteor shower यानी उल्काओं की बौछार है, जो पृथ्वी पर गिरती है तो ऐसी ही नजर आती है।
बीएसएफ ने भी कहा उल्का पिंड है
इस तरह के किसी भी अभ्यास से बीएसएफ भी इनकार कर रही है। बीएसएफ से जुड़े अधिकृत प्रवक्ताओं का कहना है कि अगर सेना कोई अभ्यास भी करती है तो बीएसएफ को इसकी जानकारी दी जाती है। हमारे पास ऐसी कोई सूचना नहीं है। ये अभ्यास का हिस्सा नहीं है। बीएसएफ की बीकानेर रेंज के महानिरीक्षक पुष्पेंद्र सिंह भी इसे उल्का पिंड ही बता रहे हैं। उनका कहना है कि सेना की तरफ से कोई अभ्यास नहीं किया गया।
राजस्थान से सटे पाकिस्तान बॉर्डर में दिखी यह रोशनी
BSF के अधिकृत सूत्रों ने बताया कि ये दृश्य बीकानेर, सूरतगढ़ व श्रीगंगानगर तक ही नहीं बल्कि पंजाब तक नजर आया है। काफी ऊंचाई पर है, ऐसे में राजस्थान और पंजाब दोनों जगह ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे सिर्फ उनके शहर के ऊपर से जा रहा है। हकीकत में ऐसा नहीं है।
सुरक्षा एजेंसियों ने इस मामले में पाकिस्तान में भी पता किया। बताया जा रहा है कि वहां भी इसी तरह आसमान में रोशनी दिखाई दी। धमाका भी सुनाई दिया। दोनों तरफ से किसी तरह का अभ्यास नहीं होने की पुष्टि हो रही है।
नागौर में गिरे थे उल्का पिंड
इससे पहले नागौर के ढावा, जारोड़ा कलां, मेड़ता रोड, लाई, मेड़ता सिटी, खेडूली, पांडू खां, कलरु, जालसू नानक, सरसंडा, ईड़वा, सुंदरी, पालियास, बग्गड़ और जलवाना गांवों में इसरो ने अध्ययन किया था। उल्का पिंड के अवशेष इन गांवों में गिरने की इसरो को सूचना थी।
राजस्थान में पहले भी हो चुकी है ऐसी घटनाएं
राजस्थान में अब तक 21 उल्का पिंड गिर चुके हैं। । 2000 के बाद, 6 अलग-अलग प्रकार के उल्का पिंडों की पहचान की गई। उन्हें आधिकारिक नाम दिए गए हैं। उल्का पिंडों को उनके गिरने या खोजे जाने के स्थान के अनुसार नाम दिए गए हैं। इनमें इटावा भोपजी (2000), अरारकी (2001), भवाद (2002), कावरपुरा (2006), मुकुंदपुरा (2017), सांचौर (2020) नाम दिए गए हैं।
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