करौली दंगों की डराने वाली सैकड़ों तस्वीरों के बीच एक तस्वीर उम्मीद की भी थी। जब एक कॉन्स्टेबल बच्ची और उसकी मां को आग की लपटों के बीच से सुरक्षित निकालकर ला रहे थे। कॉन्स्टेबल नेत्रेश शर्मा का नाम आज पूरा देश जानता है। भास्कर आज आपको उस तस्वीर के बाकी दो किरदारों से मिला रहा है। बच्ची पीहू और उसकी मां विनिता अग्रवाल।
पांच दिन हो चुके हैं, लेकिन विनिता (34) के जेहन में अब भी वो मंजर बिल्कुल ताजा है। वो अपनी ढाई साल की बेटी के साथ आग की लपटों में घिरी थीं। जब भी वो मंजर याद आता है, आंखें नम हो जाती हैं। कहती हैं, एक ही चिंता थी- मुझे कुछ भी हो जाए, मेरी बेटी को आंच भी नहीं आनी चाहिए। यही चिंता पति के लिए भी थी, यही वजह थी कि बार-बार पूछने के बावजूद विनिता ने पति को लोकेशन नहीं भेजी। बस एक ही प्रार्थना करती हैं- जिंदगी में कभी दोबारा भगवान ऐसा मंजर न दिखाए।
बच्ची पीहू को बचाकर ले जाता पुलिसकर्मी और पीछे उसकी मां विनिता अग्रवाल।
दैनिक भास्कर से बातचीत में विनिता ने बताया शनिवार की शाम का डरावना सच… पढ़िए, उन्हीं की जुबानी…
शनिवार को मेरी देवरानी का गणगौर पर सिंजारा जाना था। मैं अपनी बेटी पीहू, देवरानी वैशाली और देवरानी की भाभी बबीता के साथ शॉपिंग करने गई थी। 7 साल का बेटा घर पर था। दोपहर 3.30 बजे हम घर से रवाना हुए थे। पहले साड़ी और दूसरा सामान खरीदा। शाम 5:30 बजे फूटाकोट चौराहे पर चूड़ा खरीदने गए। हम चूड़ा देखने लगे तभी दुकानदार बोला- रैली आ रही है... यह कहकर उसने हमें दुकान से बाहर निकाल दिया और शटर गिरा दिया। कुछ ही पल में एक-एक करके सारी दुकानें बंद हो गईं।
हमें वजह पता नहीं थी, लेकिन अंदाजा हो गया था कि माहौल बिगड़ने वाला है। हम पास ही एक घर की ओर जा रहे लोगों के साथ उस घर के अंदर चले गए। थोड़ी देर बात दुकानों के शटर पर पत्थर फेंकने की आवाजें आने लगीं। 15 मिनट बाद हर तरफ आग की लपटें नजर आ रही थीं।
वह मकान (पीले कलर का गेट) जिसमें फंसे थे मासूम और परिजन। पुलिसकर्मी नेत्रेश शर्मा।
हर तरफ धुएं का गुबार था। हमारा दम घुटने लगा। घर में मौजूद बाकी लोग छत पर जाने लगे। पीहू सो रही थी और मैं उसे लेकर कहीं नहीं जाना चाहती थी। रोते हुए अपने पति (हरिओम) को फोन किया। वो चिंता में पड़ गए, मुझसे कहा- मैं अभी वहां आ रहा हूं। पति ने लोकेशन मांगी तो मैंने कह दिया फूटाकोट पर हूं। मैंने जानबूझकर लोकेशन नहीं भेजी, नहीं चाहती थी कि पति खतरे में पड़ जाएं।
पति से बात के बाद कॉल डिस्कनेक्ट होते ही नीचे से माइक की आवाज आई- कोई भी घरों में हो तो बाहर आ जाएं। घबराएं नहीं, सभी जगह पुलिस तैनात है, डरने की जरूरत नहीं है। जब पता चला कि पुलिस आ गई है तो हमारी जान में जान आई।
पथराव और आगजनी के बाद करौली में भारी पुलिस फोर्स तैनात कर दिया गया था।
घर के मालिक ने गेट खोला और हमने देखा कि एक सफेद कलर की गाड़ी आई थी, जिस पर पुलिस अधीक्षक लिखा हुआ था। कुछ पुलिसवाले फंसे हुए लोगों को घरों से निकाल रहे थे तो कुछ आग बुझा रहे थे। हर तरफ आग की लपटें थीं। सड़क पर पत्थर बिखरे हुए थे।
SP शैलेन्द्र सिंह इंदौलिया ने दो पुलिसवालों से हमें सुरक्षित निकालने के लिए कहा। एक पुलिसवाले ने मेरी देवरानी और उसकी भाभी को बाहर निकाला। काॅन्स्टेबल नेत्रेश कुमार ने कपड़े में लिपटी मेरी बेटी को गोद में लिया और मुझे पीछे आने के लिए कहा। दोनों तरफ आग की लपटें थीं, हम दौड़ते हुए वहां से निकले। बस एक ही चिंता थी, मेरी फूल सी बेटी को कुछ न हो।
काॅन्स्टेबल ने सुरक्षित स्थान पर पहुंचने के बाद मेरी बेटी को गोद से उतारा। उतारते ही पीहू मुझसे लिपट गई और रोने लगी। मेरी आंखों में भी आंसू थे। पुलिस ने हमें सुरक्षित स्थान पर बैठाया और मेरे पति के आने पर हमें उनके साथ भेज दिया।
मैं कहना चाहती हूं कि जब तक पुलिस में ऐसे जांबाज अधिकारी और सिपाही हैं, हम सुरक्षित हैं। मैं ऐसे लोगों को अपनी, अपनी बेटी और अपने परिवार की ओर से धन्यवाद देना चाहती हूं।
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