ओमिक्रॉन के बढ़ते खतरे को देखते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना की 2 नई वैक्सीन और एक एंटी-वायरल ड्रग के इमरजेंसी इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने दो वैक्सीन - कोर्बेवैक्स, कोवोवैक्स और एंटी-वायरल ड्रग मोलनुपिराविर के इमरजेंसी यूज की मंजूरी दी है। 2 नई वैक्सीन को मंजूरी के बाद देश में कोरोना वैक्सीन की संख्या 8 हो गई है।
चलिए पहले नई वैक्सीन के बारे में जानते हैं और ये भी समझते हैं कि ट्रायल में कितनी कारगर रही और कितनी सेफ है?
कोर्बेवैक्स वैक्सीन
ये एक प्रोटीन सबयूनिट वैक्सीन है, जिसे हैदराबाद की कंपनी बायोलॉजिकल ई ने बनाया है। यह प्रोटीन बेस्ड देश की पहली और देश में ही विकसित तीसरी वैक्सीन है। प्रोटीन सबयूनिट वैक्सीन का मतलब है कि ये पूरे वायरस के बजाय उसके एक हिस्से का इस्तेमाल कर इम्यून रिस्पॉन्स जेनरेट करता है। इस वैक्सीन में कोरोना वायरस के ही S प्रोटीन का इस्तेमाल होता है। जैसे ही वैक्सीन के जरिए ये S प्रोटीन बॉडी में एंटर करता है बॉडी का इम्यून सिस्टम एक्टिवेट हो जाता है।
इस वैक्सीन को बायोलॉजिकल ई ने टेक्सस चिल्ड्रंस हॉस्पिटल के टीका विकास केंद्र के साथ मिलकर बनाया है।
ट्रायल में कितनी कारगर रही?
बायोलॉजिकल ई ने देशभर की 33 से ज्यादा साइट पर 3 हजार से ज्यादा लोगों पर वैक्सीन का ट्रायल किया है। ट्रायल के नतीजों में सामने आया है कि डेल्टा स्ट्रेन के खिलाफ सिम्पटमैटिक इंफेक्शन रोकने में वैक्सीन 80% से ज्यादा कारगर है।
यह वैक्सीन दो डोज में आएगी और 2 से 8 डिग्री सेल्सियस रेफ्रिजिरेटेड तापमान पर स्टोर की जा सकेगी।
कोवोवैक्स वैक्सीन
इसे अमेरिकी कंपनी नोवावैक्स ने बनाया है। भारत में इसे सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) कोवोवैक्स नाम से बना रही है।
ये भी एक प्रोटीन सबयूनिट वैक्सीन ही है लेकिन इसमें नैनोपार्टिकल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है। इसमें वायरस के ऐसे स्पाइक प्रोटीन को बनाया जाता है, जो आपको बीमार नहीं करते। बाद में इसे वायरस की तरह नैनोपार्टिकल के रूप में असेंबल कर लिया जाता है। 20 दिसंबर को WHO ने कोवोवैक्स को इमरजेंसी यूज की मंजूरी दी है।
ट्रायल में कितनी कारगर रही?
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने कहा है कि वैक्सीन की इफेक्टिवनेस पता करने के लिए फेज-3 के दो अलग-अलग ट्रायल किए गए हैं। ब्रिटेन में किए गए ट्रायल में वैक्सीन कोरोना के ओरिजिनल स्ट्रेन पर 96.4%. अल्फा पर 86.3% और ओवरऑल 89.7% इफेक्टिव रही है।
अमेरिका और मैक्सिको में किए गए ट्रायल में वैक्सीन की एफिकेसी 90.4% रही है। कोरोना से गंभीर और सामान्य लक्षणों को रोकने में वैक्सीन 100% कारगर रही है।
मोलनुपिराविर एंटीवायरल दवा
मोलनुपिराविर वैक्सीन नहीं बल्कि एक ओरल ड्रग है। इसे फार्मा कंपनी मर्क और रिजबैक ने मिलकर बनाया है। पहले इस दवा को सर्दी-जुकाम के मरीजों के लिए बनाया गया था। फिलहाल कुछ मोडिफिकेशन के साथ इसका इस्तेमाल कोरोना मरीजों पर भी किया जा रहा है। इसे कोरोना से संक्रमित 18 साल से ज्यादा उम्र के गंभीर मरीजों को दिया जाएगा। मोलनुपिराविर दवा वायरस के जेनेटिक कोड में गड़बड़ी कर उसकी फोटोकॉपी होने से रोकती है। ये गोलियों का एक कोर्स होगा। माना जा रहा है कि 800 mg की दवाओं को 5 दिन तक दिन में 2 बार दिया जाएगा।
भारत में इसे 13 फार्मा कंपनियां मिलकर बनाएंगी। उम्मीद है कि हफ्ते भर के अंदर ये उपलब्ध हो सकती है।
ट्रायल में कितनी कारगर रही?
फिलहाल अमेरिका और ब्रिटेन में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। ब्रिटेन ने 4 दिसंबर को इस दवा को मंजूरी दी थी। ब्रिटेन के स्वास्थ्य एजेंसियों ने कहा है कि मरीजों पर ये सेफ और इफेक्टिव है। वहीं, अमेरिका ने फिलहाल केवल 5 दिन तक ही इसको डोज देने का फैसला लिया है।
भारत में केवल उन्हीं मरीजों को मोलनुपिराविर दी जाएगी जिनका ऑक्सीजन लेवल 93% से ज्यादा है और जिन्हें गंभीर लक्षण होने का खतरा है। बिना डॉक्टर के प्रेस्क्रिप्शन के ये नहीं दी जा सकेगी।