अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में गुरुवार को फिदायीन हमले में 170 लोग मारे जा चुके हैं। हमले की जिम्मेदारी ISIS-K यानी खुरासान ग्रुप ने ली है। सवाल उठ रहे हैं कि तालिबान, ISIS और अल-कायदा सभी जिहादी ग्रुप हैं और सबका मकसद शरियत कानून लागू करना है तो फिर आईएस ने ये हमला क्यों कराया। वो भी तब जबकि हमले में 150 से ज्यादा अफगान नागरिक मारे गए जो सभी मुस्लिम थे। यही वजह है कि कुछ लोग इसे मूर्खतापूर्ण हरकत भी करार दे रहे हैं।
BBC में जिहादी मीडिया एक्सपर्ट मिना अल-लामी ने इस मामले पर अपना एनालिसिस दिया है। उनके मुताबिक, काबुल हमले के जरिए ISIS तालिबान की इमेज खराब करना चाहता है, उसे चैलेंज करना चाहता है। ISIS का कहना है कि कतर में हुए गुप्त समझौते की वजह से अमेरिका ने तालिबान को चांदी की तश्तरी में रखकर अफगानिस्तान गिफ्ट कर दिया है। यहां जानते हैं लामी के इस एनालिसिस की कुछ अहम बातें।
तालिबान और अमेरिका को चैलेंज
इस हमले का सबसे हैरान करने वाला पहलू ये है कि अलर्ट मिलने के बावजूद इसे टाला नहीं जा सका। ये अमेरिका और तालिबान को ISIS का सीधा चैलेंज है। तालिबान ये जाहिर करना चाहता है कि काबुल पर अफगानिस्तान में स्थिरता आ गई है। उसने राजधानी की सुरक्षा के लिए बदर 313 ब्रिगेड और फतह दस्ता बनाया। लेकिन, इस हमले को रोका नहीं जा सका।
पुरानी अदावत
खुरासान वास्तव में इस्लामिक स्टेट की स्थानीय और पुरानी यूनिट है। तालिबान से उसकी पुरानी या कहें 2014 से ही दुश्मनी है। इस ग्रुप को लगता है कि तालिबान ने अमेरिका के समर्थन वाली अफगान सेना के साथ मिलकर उसे कमजोर किया। अब वो बदला ले रहा है। तालिबान के लिए भी यह चुनौती है। हालांकि, कुछ जिहादी इसे ISIS का मूर्खता बता रहे हैं। इनका कहना है कि हमले में अमेरिकियों के साथ मुस्लिम भी मारे गए और इसीलिए यह इस्लाम के लिए नुकसानदायक है।
दो साल पहले यानी 2019 तक अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत में ISIS का तगड़ा होल्ड था। फिर तालिबान ने अफगान सेना के साथ उसे वहां से उखाड़ फेंका। यही वजह है कि आईएस तालिबान को अमेरिकी मोहरा करार देता है।
खुफिया एजेंसियों का मानना है कि इस्लामिक स्टेट अफगानिस्तान में अभी कुछ और हमले कर सकता है।
तालिबान से जलन
ISIS को इराक और सीरिया में शिकस्त मिली। दूसरी तरफ, तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। उसे पहले इस्लामिक स्टेट ने बधाई भी दी, लेकिन बाद में सुर बदल गए। अब लगता है कि ISIS तालिबान से चिढ़ गया है। एक तरफ तालिबान इस्लामिक अमीरात बनाने की राह पर है, दूसरी तरफ इस्लामिक स्टेट बिखर रहा है और उसका खिलाफत स्टेट का सपना भी टूटता जा रहा है। यही वजह है कि अब वो तालिबान को कामयाब होने नहीं देना चाहता और अफगानिस्तान में काबुल जैसे हमले आगे भी होने की आशंका है।
हालांकि, ये भी सही है कि काबुल एयरपोर्ट के अंदर और बाहर जिस तरह के हालात थे, उसकी वजह से ISIS को हमला करने का मौका मिल गया। अब वो कह रहा है कि उसके लड़ाके नए हमलों के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं।
मुश्किल में तो अल-कायदा
इस्लामिक स्टेट का कहना है कि तालिबान अब अफगानिस्तान में असली जिहादियों से जंग करेगा और वही करेगा जो अमेरिका चाहेगा। दो साल पहले अमेरिकी हमलों की वजह से ISIS कमजोर हुआ, लेकिन इस साल उसने वापसी की कोशिश की और कुछ हमले किए।
तालिबान और ISIS की इस नई जंग में अल-कायदा की स्थिती अजीब है। उसका सबसे बड़ा दुश्मन अमेरिका है। काबुल हमले में 13 अमेरिकी सैनिक मारे गए, इस पर तो अल-कायदा को खुश होना चाहिए, लेकिन अमूमन ऐसा नहीं है। इसकी वजह यह है कि ISIS को अल-कायदा अपना कॉम्पटीटर मानता है और उसकी कामयाबी पर खुश नहीं होगा। फिलहाल, उसके समर्थक कुछ कहने से बच रहे हैं। सीरिया के जिहादी संगठन हयात तहरीर के एक समर्थक ने हमले की निंदा की। कहा- ISIS तालिबान की कामयाबी से जलता है। वो सिर्फ खबरों में बने रहना चाहता है।