राजस्थान एक-एक टीके को तरस रहा है। हालात ये हैं कि मंगलवार को हमारे 48761 में से सिर्फ 1047 साइट्स तक ही टीका पहुंचा। यानी 98% वैक्सीन केंद्रों पर एक भी टीका नहीं लगा। वैक्सीन उपलब्ध नहीं होने के कारण सिर्फ 2.14 प्रतिशत वैक्सीनेशन केंद्रों पर टीकाकरण हो पाया।
15 जिलों के पास तो एक भी टीका नहीं बचा है। किसी सीएमएचओ ने पड़ोसी जिले से मंगवाकर 100-200 टीके लगाए तो सीएम के जिले जोधपुर और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के झालावाड़ सहित 6 जिलों तक तो नए टीके पहुंचे भी नहीं। एक दिन पहले राज्य सरकार को केंद्र से 2 लाख टीके मिले थे। लेकिन मंगलवार को एक भी टीका नहीं मिला।
राजस्थान देश का सबसे बड़ा क्षेत्रफल वाला राज्य है। जैसलमेर से जयपुर की दूरी 557 किलोमीटर है तो गंगानगर 470, सिरोही 414 और बांसवाड़ा 523 किलोमीटर हैं। जिलों के सीएमएचओ का कहना है कि टीके नहीं मिलने के कारण पिछले दो माह से हर दूसरे दिन 3-3 वाहन जयपुर भेजने पड़ रहे।
1.20 लाख क्षमता की गाड़ी जयपुर जाती है और वहां से सिर्फ 1000 से 5 हजार टीके मिल रहे हैं। इससे राज्य पर हर माह करीब 80 लाख से 1 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार पड़ रहा है। इतने में तो 30 से 33 हजार टीके राज्य सरकार अपने स्तर पर हर माह खरीद सकती है।
टीका वैन के साथ 2 गाड़ियां एस्कॉर्ट में चलती हैं यानी महीने में 1485 वाहन आते हैं, इनके डीजल के खर्चे से ही हर महीने 49,500 डोज खरीदी जा सकती हैं
- केंद्र ने 21 जून से 18+ के लिए फ्री टीका देने का निर्णय किया है। लेकिन उसके बाद से अब तक वैक्सीन की कुल 12 लाख डोज भी नहीं भेजी गई हैं। यानी हर दूसरे दिन सिर्फ 1-2 लाख की खेप भेज दी जाती हैं, जिसका नुकसान ये है कि डोज को बार-बार दूरदराज के इलाकों में पहुंचाना पड़ता है। मात्रा इतनी कम होती है कि 24 घंटे में ही खत्म हो जाते हैं। नतीजा ये होता है कि कभी तो टीके बिल्कुल खत्म हो जाते हैं, कभी बहुत कम बचते हैं।
- राज्य के 32 जिलों को हर दूसरे दिन 3-3 वाहन जयपुर भेजने पड़ रहे हैं। हर जिले के टीका वाहन की क्षमता 1.20 लाख है। लेकिन जयपुर से जिलों को 1000 से 5000 टीके ही दिए जा रहे हैं।
- दिक्कत- वाहन जिस दिन पहुंचते हैं, उसी दिन टीके लग जाते हैं। हर दूसरे दिन वाहन जयपुर भेजे जा रहे।
- खर्च- हर जिले से 3 वाहन जयपुर भेजने का औसत खर्च 15 हजार से 30 हजार रु. है। ये वाहन माह में 15 बार जयपुर भेजे जा रहे। 32 जिलों से 1485 वाहन जयपुर के चक्कर काटने को मजबूर हैं। 1.48 करोड़ रु. तो डीजल के ही खर्च हो रहे हैं। इतने पैसे में 300 रु. प्रति टीका की दर से 49,500 टीके आ सकते हैं। हिसाब लगाएं तो दिसंबर तक ट्रांसपोर्ट पर ही ~9 करोड़ खर्च होंगे।
इधर जिलों से भेदभाव; 200 किमी दूर वाले चूरू को 25 हजार डोज दीं, 414 किमी दूर वाले सिरोही को सिर्फ 5 हजार
केंद्र जहां राज्य से भेदभाव कर रहा है, वहीं स्टेट वैक्सीनेशन नोडल अफसर और अधिकारियों का जिलों के प्रति भारी भेदभाव भी सामने आया है। दो दिन से विभाग ने टीकों का वितरण अपने नियंत्रण में ले रखा है। अब एक-एक टीका विभाग के अफसरों की मर्जी से जिलों को मिल रहा है।
एक दिन पहले मिले 2 लाख टीको में से अकेले चूरू को मंगलवार को 25 हजार टीके दे दिए गए। सिरोही 414 किलोमीटर है, उनको 5 हजार भी नहीं दिए गए। जयपुर को भी सिर्फ 2500 टीके ही मिले थे। हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, जैसलमेर, झुंझुनूं, सीकर, कोटा, अजमेर जैसे कई जिले शाम तक टीके नहीं पहुंचने से तरसते रह गए।
समय और ईंधन दोनों का नुकसान होता है
हमारे जिले चूरू को आज पहली बार 25 हजार टीके मिले हैं। अब तक बहुत ही कम मात्रा में दिए जा रहे थे। टीकों के लिए हमें तीन-तीन वाहन जयपुर भेजने पड़ते हैं। इसमें समय तो लगता ही है, ईंधन भी ज्यादा खर्च होता है।
- मनोज कुमार, सीएमएचओ, चूरू
एक बार टीके मंगाने में 300 ली. डीजल जाता है
सिरोही को कभी उदयपुर, कभी जोधपुर और अब जयपुर वाहन भेज कर कोरोना के टीके मंगवाने पड़ रहे हैं। एक गाड़ी जयपुर जाती है तो 100 लीटर डीजल लगता है यानी तीन गाड़ियों पर करीब 300 लीटर डीजल खर्च हो जाता है।
-डाॅॅ. राजेश, सीएमएचओ सिरोही
इन 15 जिलों में स्टॉक नहीं बचा
सीएम और पूर्व सीएम दोनों के जिलों के पास टीके नहीं