सिल्क की हल्की सुनहरी साड़ी में सतर कंधे और चुस्त जवाबों से लैस केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का वीडियो वायरल हो रहा है। बजट के बाद प्रेस से बातचीत के दौरान एक वाकया घटा। हुआ ये कि पुरुष पत्रकारों के दनादन आते सवालों के बीच एक महिला पत्रकार ने भी सवाल किया, लेकिन इससे पहले कि उसकी बात पूरी हो पाती, वहां मौजूद एक अधिकारी ने रिपोर्टर को टोक दिया। इस पर निर्मला ने अधिकारी को ही घेरते हुए पूछा- आपने महिला पत्रकार को ही क्यों एक सवाल करने को कहा? इससे पहले पुरुषों को तो आपने नहीं रोका था।
बात हंसी-हंसी में कही गई, लेकिन इशारा तीर की तरह सीधे वहां मौजूद मर्दों के कलेजे में जा धंसा होगा। गहरे रंग के सूट-बूट में सात पुरुष अधिकारियों के बीच खुशरंग साड़ी में इत्मिनान से बैठी निर्मला सौम्यता के बीच भी जता चुकी थीं कि सवाल पूछने का हक केवल मर्दों के पास नहीं। तीन आम बजट पेश कर चुकीं निर्मला का वित्तमंत्री होना शायद कई भरम तोड़ने वाला साबित हो। शायद इससे मर्दों को समझ आ सके कि गणित कोई मर्द मानुष नहीं, जो केवल मर्दों की पांत में बैठकर ही जमेगा। वो औरतों के साथ भी गलबहियां कर सकता है। या फिर ये कि बड़ी-बड़ी संख्याएं देखकर महिलाओं को डर के दौरे नहीं पड़ते, बल्कि वे भी उनके साथ पुरुषों जितनी ही सहज होती हैं।
इससे पहले ऐसा कहा जाता रहा है कि गणित लड़कियों का विषय नहीं। मास्टर्स कर चुकी मेरी मां का किस्सा मुझे आज भी याद है। गणित में तेज मां तब उसी विषय में आगे बढ़ना चाहती थीं, लेकिन खुद स्कूल के हेड ने घर आकर घरवालों को मां का एडमिशन रुकवाने को कहा। वजह! स्कूल तो को-एड था, लेकिन गणित लेकर सिर्फ लड़के ही पढ़ते आए थे। लड़कियां या तो हाई स्कूल में घर बैठ जातीं या लड़कियों के विषय ले लेतीं, जैसे होम साइंस या आर्ट। ऐसे में मां लड़कों के साथ पढ़तीं तो शायद लड़कों या फिर हेडमास्टर का भी तप भंग हो जाता! आखिरकार घरवालों के दबाव में मां को गणित छोड़ना पड़ा, लेकिन बाद के समय में भी गणित से मां का छूटा हुआ इश्क जब-तब दिखता रहा।
घरेलू-किंवदंती की तरह ये किस्सा मेरे साथ चला। तब सोचती थी, मां को गणित लेने से रोकने के पीछे शायद उनका क्लास में अकेली पड़ जाना था। वक्त के साथ असल वजह समझ सकी। ये मां के अकेली पड़ने का डर नहीं, ये मर्दाना डर था। ये वो डर था, जो आज तक लड़कियों को गणित से दूर रखे हुए है। लड़कियों को गुणा-भाग आ जाएगा तो वे हिसाब की पक्की हो जाएंगी। तब अनाड़ी दुकानदार की तरह उधार देते हुए वे अपनी दुकान नहीं बैठाएंगी, बल्कि वापसी के तगादे करेंगी। फिर तो त्याग या ममता के नाम पर औरत से हरदम वसूलने के आदी पुरुषों की जागीर ही चली जाएगी।
बस इसके साथ ही लड़कियों को गणित से दूर रखने के लिए तमाम जतन हुए। न्यूरोसाइंटिस्टों ने यहां तक कह दिया कि लड़कियों के मस्तिष्क का बायां हिस्सा तेजी से काम करता है, जो उन्हें भाषा तो सरपट सिखाता है लेकिन गणित नहीं। गणित को मर्दाना विषय बनाने की साजिश इस हद तक गई कि औरतों के कपड़े तक नए सिरे से डिजाइन कर दिए गए। पहले जनाना-मर्दाना सारी पोशाकों पर जेब हुआ करते थे, लेकिन 17वीं सदी में जनाना कपड़ों से जेब हटा दिए गए। और इस तरह से संख्याओं और पैसों से औरतों का सीधा ताल्लुक ही खत्म हो गया। नतीजा ये कि हम औरतें आज तक बिना जेब वाले कपड़ों का खामियाजा उठाती चली आ रही हैं।
अब जब गणित और फाइनेंस की बात चल निकली है तो एक नजर गीता गोपीनाथ मुद्दे पर भी डाल लें। चर्चित सीरियल कौन बनेगा करोड़पति (KBC) के दौरान अभिनेता अमिताभ बच्चन ने गीता गोपीनाथ पर अजब-सी कमेंट कर दी। हुआ यूं कि एक सवाल के दौरान गीता का चेहरा स्क्रीन पर था, जिसे देखते हुए अमिताभ के मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा- 'इतना खूबसूरत चेहरा इकोनॉमी के साथ कोई जोड़ ही नहीं सकता'। अर्थशास्त्री गीता ने इसे तारीफ बतौर लिया, लेकिन ये बताता है कि महानायक कहलाते अमिताभ भी स्त्रियों को लेकर पूर्वाग्रह से बरी नहीं। वे भले इनकार करें, लेकिन उनकी जबान से निकल चुका है कि जो औरतें खूबसूरत होती हैं, वे बुद्धिमान नहीं हो सकतीं। और अर्थशास्त्री तो कतई नहीं हो सकतीं।
औरत इकोनॉमी पर बात करेगी तो प्रेमी जम्हाइयां लेने लगेगा। वो सवाल करेगी तो भड़ककर चला जाएगा। नतीजा, अपने मनचाहे पुरुष की नजर में आकर्षक दिखने के लिए स्त्री को अपनी प्रतिभा तक छिपानी पड़ जाती है। वो न्यूक्लियर फिजिक्स की किताबें संदूक में डालकर उबटन लगाने के नुस्खे खोजती है। टैक्सटाइल डिजाइनिंग छोड़कर दर्जी से नए डिजाइन का कलीदार कुरता बनवाती है। तर्कशक्ति बिसारकर लंद-फंद शेरो-शायरियां रटती है। खुद को बदलने की ये कोशिश रंग लाती है और एक दिन वो वाकई में सुंदर, लेकिन मूर्ख राजकुमारी बनकर रह जाती है।
महानायक की टिपप्णी गीता तक पहुंची, लेकिन वे अपनी साथिन औरतों के साथ खड़ा होने से चूक गईं। क्या ही बढ़िया होता अगर वे शुक्रिया के साथ अमिताभ का पूर्वाग्रह भी धो पातीं! बता पातीं कि खूबसूरती का बुद्धि से कोई ताल्लुक नहीं। या फिर ये कि औरतों का खूबसूरत और सुरक्षित चेहरा जरूरी ही क्यों है!
ओहदेदार औरतों की बात चल ही पड़ी है तो साथ में एक खबर का जिक्र हो जाए। बीते सप्ताह बिहार में एक युवक ने भरी सभा में महिला विधायक से छेड़छाड़ की। महिला विधायक ने आव देखा, न ताव, लपककर युवक को थप्पड़ रसीद कर दिया। यहां तक मामला साफ है। लेकिन, आगे थोड़ा पेंचीदा हो जाता है। विधायक उस युवक की शिकायत की बात करती है तो साथी विधायकों से लेकर स्थानीय लोग उसे ही समझाइश देने लगते हैं। लोगों का तर्क है कि औरत को इलाके की बेहतरी के लिए चुना गया है, लिहाजा उसे बड़प्पन दिखाते हुए अश्लील हरकत को भुला देना चाहिए। तर्कवीर ये भी कहते हैं कि औरत का काम मारपीट नहीं, समस्या को प्यार से सुलझाना है।
लब्बोलुआब ये कि औरत भले विधायक बने या प्रधानमंत्री, रहेगी वो औरत ही। नर्क का द्वार, जिसे देखकर सज्जन से सज्जन पुरुष ईमान खो दे। लेकिन, यही औरत जब अपने औरतपन से बाहर निकल मर्द को तमाचा मारती है तो उसे उसका ओहदा याद दिलाया जाता है। बताया जाता है कि वो जिस पद पर है, दूसरी औरतों की तरह ऐसी 'छोटी-मोटी' बातों को तूल न दे। कुल मिलाकर कितनी ही कोशिश कर ले, औरत वो बास्केट है, जिसमें घर के गंदे कपड़े ही डाले जाते हैं। मर्द अपनी कमजोरी, काहिली और नाकामयाबी से लेकर अश्लीलता तक इसी बास्केट में फेंकते चले जा रहे हैं।
साल 2019 में फोर्ब्स ने दुनिया की 100 सबसे ताकतवर महिलाओं की लिस्ट निकाली। उनमें एक नाम निर्मला सीतारमण है। निर्मला का वित्त प्रमुख होना और प्रेस वार्ता में एक पुरुष अधिकारी को टोकना काफी कुछ बदल सकता है। महिला विधायक का अश्लील युवक को भरी सभा में जड़ा तमाचा, इस बदलाव की आवाज है। अब बारी है गीता गोपीनाथ की। और मुंह सिले, आंखें मींचे बैठी हम सारी औरतों की।