अशोक लवासा को निर्वाचन आयोग से दूर किए जाने के कयास तो तभी से लगाए जा रहे थे जब से आयोग की बैठकों में उनके बाकी दोनों आयुक्तों से अलग विचार बाहर आने लगे थे.
निर्वाचन आयोग की बैठकों में अपने अलग विचार और ठोस तर्कों की वजह से चर्चा में बने रहने वाले निर्वाचन आयुक्त अशोक लवासा को एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है. अशोक लवासा को निर्वाचन आयोग से दूर किए जाने के कयास तो तभी से लगाए जा रहे थे जब से आयोग की बैठकों में उनके बाकी दोनों आयुक्तों से अलग विचार बाहर आने लगे थे.
2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान विपक्ष ने प्रधानमंत्री मोदी के भाषण को लेकर आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी. चुनाव आयोग इस पर विचार करने बैठा. बाकी दोनों आयुक्त पीएम को क्लीन चिट दे रहे थे, लेकिन अशोक लवासा अड़े रहे. तब फैसला सर्वसम्मति से नहीं, बल्कि बहुमत से हुआ और पीएम मोदी को क्लीन चिट मिली. ऐसे कई मौके आए जिन पर अशोक लवासा का रुख सरकार को चुभता रहा.
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उनमें से कई बातें तो लोगों को अच्छी लगी, लेकिन सरकार को पंसद नहीं आई. अशोक लवासा के विचारों में कानून सबके लिए समान है. कानून के मुताबिक सबके साथ एक जैसा बर्ताव करना चाहिए चाहे आरोपी सत्ता में हो या विपक्ष में. ऐसे में इस वरिष्ठ नौकशाह को कहीं दूर भेजने की सुगबुगाहट तो पीएम मोदी के भाषण के मामले के बाद से ही चल रही थी. 31 अगस्त को अशोक लवासा एडीबी के उपाध्यक्ष दिवाकर गुप्ता की जगह लेंगे.
निर्वाचन आयोग के इतिहास में अशोक लवासा दूसरे ऐसे आयुक्त होंगे जिन्हें कार्यकाल पूरा करने से पहले ही इस्तीफा देकर जाना पड़ रहा है. अशोक लवासा से पहले 1973 में मुख्य निर्वाचन आयुक्त नागेन्द्र सिंह ने तब इस्तीफा दिया था जब उनको अंतरराष्ट्रीय न्यायिक अदालत में जज बनाया गया था.
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अगर सब कुछ सही रहता तो अशोक लवासा अप्रैल 2021 में मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनते और 2022 अक्टूबर तक यूपी, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव कराते. अब वरिष्ठता क्रम में तीसरे नंबर पर सुशील चंद्रा हैं. माना जा रहा है कि सुनील अरोड़ा के बाद सुशील चंद्रा ही नए मुख्य निर्वाचन आयुक्त होंगे.