नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और हेट स्पीच का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में उठाया गया। इस पर जवाब देते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि CAA एक ऐसा कानून है जो पड़ोसी देशों के पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देता है।
दरअसल, CAA का विरोध करने वालों का कहना है कि इससे देश में रहने वाले मुस्लिमों को टारगेट बनाया जा सकता है। वहीं, सॉलिसिटर जनरल ने हेट स्पीच और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे पर भी जवाब देते हुए कहा- भारत का संविधान हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार देता है।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा- यह अधिनियम न तो किसी भारतीय नागरिक की नागरिकता छीनता है और न ही किसी भी देश की भारतीय नागरिकता देने वाली प्रक्रिया में संशोधन करता है।
CAA किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता नहीं छीनता
जिनेवा में चल रहे UNHRC यूनिवर्सल पीरियॉडिक रिव्यू में कई सदस्य देशों ने भारत में CAA के मुद्दे को लेकर चिंता जताई थी। इसको लेकर तुषार मेहता ने कहा- CAA कानून बिलकुल वैसा कानून है जो अलग-अलग देशों में नागरिकता के लिए क्राइटेरिया तैयार करता है।
CAA कानून धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर भारत के पड़ोसी देशों अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय- हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई धर्म के लोगों को भारतीय नागरिकता दिलाने में मदद करता है। इससे किसी भी नागरिक की नागरिकता छितनी नहीं है। न ही किसी भी देश की भारतीय नागरिकता देने वाली प्रक्रिया में कोई बदलाव होता है।
भारत में अभिव्यक्ति की आजादी, लेकिन कुछ प्रतिबंध भी
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है लेकिन इससे जुड़े कुछ कानून हैं जिनका का पालन करना जरूरी है। आजादी तब तक है जब तक भारत की संप्रभुता और अखंडता पर आंच नहीं आ रही है। उचित प्रतिबंध लगाने से हेट स्पीच और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को विनियमित करने में मदद मिलती है।
भारत में CAA के खिलाफ 4 दिसंबर 2019 को आंदोलन शुरू हुआ था जो 14 मार्च 2020 को खत्म हुआ।
CAA कानून क्या है?
देश में दो साल पहले CAA कानून बना तो देशभर में इसका विरोध हुआ। दिल्ली का शाहीन बाग इलाका इस कानून के विरोध से जुड़े आंदोलन का केंद्र बिंदु था। कानून में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के प्रवासियों के लिए नागरिकता कानून के नियम आसान बनाए गए। इससे पहले नागरिकता के लिए 11 साल भारत में रहना जरूरी था, इस समय को घटाकर 1 से 6 साल कर दिया गया।
1955 के कानून में किए गए बदलाव
2016 में नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 (CAA) पेश किया गया था। इसमें 1955 के कानून में कुछ बदलाव किया जाना था। ये बदलाव थे, भारत के तीन मुस्लिम पड़ोसी देश बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देना। 12 अगस्त 2016 को इसे संयुक्त संसदीय कमेटी के पास भेजा गया। कमेटी ने 7 जनवरी 2019 को रिपोर्ट सौंपी थी।