श्रीगंगानगर के पढ़े-लिखे किसान मनजीत सिंह ने अपना ज्ञान खेतों पर इन्वेस्ट किया। अब इसका फायदा भी मिल रहा है। वे खेतों में सब्जियों की पौध विकसित कर 6 बीघा के खेत से 12 लाख रुपए हर साल कमा रहे हैं।
एमकॉम और एमफिल पढ़े किसान मनजीत सिंह की सरकारी नौकरी भी लगी थी, लेकिन उनका मन खेती-किसानी में ही था। मनजीत सिंह कहते हैं कि नई तकनीक की जानकारी और बेहतर वाटर मैनेजमेंट मेरी सफलता का राज है। म्हारे देश की खेती में इस बार मुलाकात श्रीगंगानगर के किसान मनजीत सिंह के साथ...
राजस्थान का उत्तरी जिला श्रीगंगानगर। पाकिस्तान और पंजाब से सटा इलाका। गर्मी और सर्दी दोनों भयंकर। सिंचाई नहर के पानी से होती है। औसत बारिश 20 मिलीमीटर से ज्यादा नहीं। ऐसे में यहां कम पानी में खेती करना चुनौती है। मिट्टी-पानी का मैनेजमेंट जरूरी है। जिले के गांव सोहनसिंहवाला के निवासी 47 साल के किसान मनजीत सिंह खेती में इसी मैनेजमेंट को लागू करते हैं।
खेत में पौध को संभालते मनजीत सिंह।
वे अपने खेत में सब्जियों की उन्नत पौध तैयार करते हैं। एक तरह से सब्जियों के पौधों की नर्सरी। अगर आप अपने घर में किचन गार्डन लगाना चाहते हैं तो मनजीत सिंह से पसंदीदा सब्जियों की पौध खरीद सकते हैं। वे जो पौध तैयार करते हैं, उनकी सब्जियों की क्वालिटी बेहतरीन होती है। मनजीत पूरी तरह परंपरागत खेती (गेहूं व नरमा) किया करते थे। अब गेहूं तो पैदा होता ही है। साथ ही सब्जियों की पौध ने मनजीत को समृद्ध किसान बना दिया है।
मनजीत सिंह ने बताया कि वे अपने 6 बीघा के खेत में एक्सपैरिमैंट करते रहते हैं। खेती उनका पैशन है। वे खेती की नई तकनीक की जानकारी लेते हैं और खेत में उसे अप्लाई करते हैं। मनजीत सिंह ने बताया- मेरे पिता कपूर सिंह हाकमाबाद के गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल में लेक्चरर थे। इसलिए मुझे बेहतरीन शिक्षा दिलाई। मैंने एमकॉम और एमफिल किया।
मनजीत पढ़े लिखे किसान हैं। नौकरी लगी थी, लेकिन जॉइन नहीं की। अब इलाके के किसान इनसे वेजिटेबल नर्सरी लगाना सीख रहे हैं।
क्वालिफाइड होने के बाद 2005 में ही खेती करना शुरू कर दिया। पिता चाहते थे कि नौकरी करूं। 2009 में हेल्थ डिपार्टमेंट में आशा सहयोगी फैसिलिटेटर की जॉब भी मिल गई। मेरा मन खेती में ही था, इसलिए नौकरी जॉइन ही नहीं की।
मनजीत ने 2005 में परंपरागत खेती करना शुरू किया। चार साल वे गेहूं और नरमा उगाते रहे। खेत में एक्सपेरिमेंट करना चाहते थे, इसलिए कुछ नवाचार करते हुए अनार के बाग लगाए, एलोवेरा की खेती की और फूलों की खेती भी की। शुरुआती दौर में बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिली। 2009 में विचार आया कि सब्जियों की पौध तैयार की जाए। उनके पास 6 बीघा खेत थे। परंपरागत खेती में मेहनत ज्यादा और मुनाफा कम हो रहा था।
किसान मनजीत सिंह गेहूं व नरमा भी पैदा करते हैं और सब्जियों की नर्सरी भी तैयार करते हैं, जिसकी अच्छी खासी डिमांड है।
2016 में वे गवर्नमेंट के एक एग्रीकल्चरल टूर पर गए। वहां खेती के नवाचारों के बारे में जानकारी दी गई। उसी टूर पर सब्जियों की पौध तैयार करने का मन बना लिया। टूर से लौटकर वेजिटेबल पौध को खेत में इंप्लीमेंट किया। पहले ही साल में एक बीघा की उपज में फायदा साफ नजर आया। फिर तो इसे स्थायी रूप से इसे ही अपना लिया। अब वे सब्जी की पौध तैयार करते हैं, जिसकी काफी डिमांड भी है।
मनजीत सिंह लगातार प्रयोग करते रहते हैं। बेहतरीन क्वालिटी की पौध तैयार करने के लिए एक्सपैरिमैंट करते रहते हैं।
मनजीत की आय परंपरागत खेती की तुलना में 6 गुना तक बढ़ गई है। अपनी 6 बीघा जमीन पर वे गेहूं और नरमा अब भी उगाते हैं। उससे होने वाले मुनाफे के मुकाबले वेजिटेबल पौध से कमाई 6 गुना ज्यादा हो रही है। मनजीत ने कहा कि खेती में इनोवेशन किए जाएं, थोड़ी स्टडी करें और वाटर मैनेजमेंट सीख लें तो कम पानी से ज्यादा मुनाफे वाली फसलें ली जा सकती हैं।
ऐसे बढ़ी कई गुना कमाई
मनजीत सिंह ने बताया कि एक बीघा खेत में गेहूं करीब 15 क्विंटल हो जाता है। सरकारी कीमत 2 हजार रुपए प्रति क्विंटल मिल जाती है। इस तरह एक बीघा के खेत से 30 हजार रुपए की उपज एक सीजन में मिल जाती है। अब इसी एक बीघा खेत में वेजिटेबल पौध 40 क्विंटल तक हो जाती है। वेजिटेबल की एक क्विंटल पौध (100 किलो) 5 से 8 हजार रुपए तक बिकती है। इस तरह गेहूं से जो खेत एक सीजन में 30 हजार रुपए की कमाई दे रहा है, वही खेत एक सीजन में वेजिटेबल पौध से 3 लाख 20 हजार रुपए तक उपज दे देता है। खर्च घटाकर पौने दो लाख तक मुनाफा हो जाता है।
पौध को लेकर करते हैं प्रयोग
मनजीत ने कहा कि पौध को एक साथ खेत में नहीं लगाता। चेक करता हूं कि पौधा किस हिस्से में ज्यादा अच्छी क्वालिटी के साथ पैदा हो रहा है। अलग-अलग किस्म के बीज खेत के अलग-अलग हिस्से में बोता हूं। जिस हिस्से में अच्छी उपज मिलती है। उसी बीज से पूरे खेत में पौध तैयार करता हूं। एक्सपेरिमेंट के काम आने वाले पौधों से मिली सब्जियां या तो घर में काम आ जाती हैं या बेच देता हूं। इन दिनों मनजीत ब्रॉकली और ट्यूनिश जैसी विदेशी सब्जियों को खेत में उगाने का एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं। अभी इनका प्रोडक्शन कम है, लेकिन खेत के एक हिस्से में प्रयोग जारी है।
किसान के खेत में बनी क्यारियां।
5 से 6 महीने लगती है वैजिटेबल पौध
मनजीत सिंह ने बताया कि वे अब जनवरी से अप्रैल तक गेहूं की खेती करते हैं। इसके बाद जून से नवंबर तक वे पत्ता गोभी और फूल गोभी की पौध तैयार करते हैं। जुलाई में मिर्च, बैंगन और टमाटर की पौध के लिए खेत तैयार करते हैं। अगस्त में प्याज की पौध लगाई जाती है जो अक्टूबर से नवम्बर तक बिक्री के लिए चली जाती है।
अक्टूबर में हरे प्याज (पत्तेदार प्याज) की बिजाई होती है। मनजीत ने बताया कि उनकी वेजिटेबल पौध की डिमांड श्रीगंगानगर के अलावा हनुमानगढ़, हरियाणा के फतेहाबाद, पंजाब के कई जिलों तक है। इन इलाकों में किसान यह पौध खरीदकर बेचने के लिए सब्जियां उगाते हैं। कुछ लोग किचन गार्डन में सब्जियां उगाने के लिए भी यह पौध लेकर जाते हैं।
खेत में लगी गोभी की पौध।
मनजीत सिंह ने बताया कि वेजिटेबल का सीजन जून से दिसंबर तक रहता है। सालभर में वे टमाटर, बैगन, पत्ता गोभी, फूल गोभी, प्याज की 150 क्विंटल तक पौध बेच देते हैं। गंगानगर में पानी लिमिटेड है। पौधों को कम पानी चाहिए, लेकिन बार-बार पानी चाहिए। ऐसे में फव्वारा तकनीक का इस्तेमाल करता हूं। गेहूं से जहां 6 बीघा में सालाना 2 लाख तक की आय हो पाती है, वहीं सब्जियों की पौध से 12 लाख तक का मुनाफा हो जाता है। यानी 6 गुना तक प्रॉफिट मिलता है।
मनजीत सिंह की सरकारी नौकरी लग गई थी, लेकिन उन्होंने नौकरी जॉइन नहीं की। अब खेत से अच्छी आमदनी मिल रही है।